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हवन में आहुति देते समय क्यों कहते है ‘स्वाहा’??

अग्निदेव की दाहिकाशक्ति है स्वाहा’!

अग्निदेव में जो जलाने की तेजरूपा (दाहिका) शक्ति है, वह देवी स्वाहा का सूक्ष्मरूप है। हवन में आहुति में दिए गए पदार्थों का परिपाक (भस्म) कर देवी स्वाहा ही उसे देवताओं को आहार के रूप में पहुंचाती हैं, इसलिए इन्हें परिपाककरीभी कहते हैं।
सृष्टिकाल में परब्रह्म परमात्मा स्वयं प्रकृतिऔर पुरुषइन दो रूपों में प्रकट होते हैं। ये प्रकृतिदेवी ही मूलप्रकृति या पराम्बा कही जाती हैं। ये आदिशक्ति अनेक लीलारूप धारण करती हैं। इन्हीं के एक अंश से देवी स्वाहा का प्रादुर्भाव हुआ जो यज्ञभाग ग्रहणकर देवताओं का पोषण करती हैं।
सृष्टि के आरम्भ की बात है, उस समय ब्राह्मणलोग यज्ञ में देवताओं के लिए जो हवनीय सामग्री अर्पित करते थे, वह देवताओं तक नहीं पहुंच पाती थी।
देवताओं को भोजन नहीं मिल पा रहा था इसलिए उन्होंने ब्रह्मलोक में जाकर अपने आहार के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना की। देवताओं की बात सुनकर ब्रह्माजी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भगवान के आदेश पर ब्रह्माजी देवी मूलप्रकृति की उपासना करने लगे। इससे प्रसन्न होकर देवी मूलप्रकृति की कला से देवी स्वाहाप्रकट हो गयीं और ब्रह्माजी से वर मांगने को कहा।
ब्रह्माजी ने कहा–’आप अग्निदेव की दाहिकाशक्ति होने की कृपा करें। आपके बिना अग्नि आहुतियों को भस्म करने में असमर्थ हैं। आप अग्निदेव की गृहस्वामिनी बनकर लोक पर उपकार करें।
ब्रह्माजी की बात सुनकर भगवान श्रीकृष्ण में अनुरक्त देवी स्वाहा उदास हो गयीं और बोलीं–’परब्रह्म श्रीकृष्ण के अलावा संसार में जो कुछ भी है, सब भ्रम है। तुम जगत की रक्षा करते हो, शंकर ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की है। शेषनाग सम्पूर्ण विश्व को धारण करते हैं। गणेश सभी देवताओं में अग्रपूज्य हैं। यह सब उन भगवान श्रीकृष्ण की उपासना का ही फल है।
यह कहकर वे भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए तपस्या करने चली गयीं और वर्षों तक एक पैर पर खड़ी होकर उन्होंने तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए।
देवी स्वाहा के तप के अभिप्राय को जानकर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा–’तुम वाराहकल्प में मेरी प्रिया बनोगी और तुम्हारा नाम नाग्नजितीहोगा।
राजा नग्नजित् तुम्हारे पिता होंगे। इस समय तुम दाहिकाशक्ति से सम्पन्न होकर अग्निदेव की पत्नी बनो और देवताओं को संतृप्त करो। मेरे वरदान से तुम मन्त्रों का अंग बनकर पूजा प्राप्त करोगी। जो मानव मन्त्र के अंत में तुम्हारे नाम का उच्चारण करके देवताओं के लिए हवन-पदार्थ अर्पण करेंगे, वह देवताओं को सहज ही उपलब्ध हो जाएगा।
भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से अग्निदेव का देवी स्वाहा के साथ विवाह-संस्कार हुआ। शक्ति और शक्तिमान के रूप में दोनों प्रतिष्ठित होकर जगत के कल्याण में लग गए। तब से ऋषि, मुनि और ब्राह्मण मन्त्रों के साथ स्वाहाका उच्चारण करके अग्नि में आहुति देने लगे और वह हव्य पदार्थ देवताओं को आहार रूप में प्राप्त होने लगा।
जो मनुष्य स्वाहायुक्त मन्त्र का उच्चारण करता है, उसे मन्त्र पढ़ने मात्र से ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है। स्वाहाहीन मन्त्र से किया हुआ हवन कोई फल नहीं देता है।
देवी स्वाहा के सोलह नाम हैं
1. स्वाहा,
2.
वह्निप्रिया,
3.
वह्निजाया,
4.
संतोषकारिणी,
5.
शक्ति,
6.
क्रिया,
7.
कालदात्री,
8.
परिपाककरी,
9.
ध्रुवा,
10.
गति,
11.
नरदाहिका,
12.
दहनक्षमा,
13.
संसारसाररूपा,
14.
घोरसंसारतारिणी,
15.
देवजीवनरूपा,
16.
देवपोषणकारिणी।
इन नामों के पाठ करने वाले मनुष्य का कोई भी शुभ कार्य अधूरा नहीं रहता। वह समस्त सिद्धियों व मनोकामनाओं को प्राप्त कर लेता है।

-सुबोध सिंह  दिव्य रश्मि  के गौरवशाली ५ वर्ष पूरे होने पर मैं पूरी संपादकीय और तकनीकी टीम को बधाई देता हूं। शत्-शत् अभिनंदन और आभार व्यक्त करता हूं। 

दिव्य रश्मि  का एक लेखक, पाठक होने के नाते मैं जानता हूं कि आपकी टीम ने हमारी मातृभाषा हिंदी और हमारी अन्य  भाषाओं के लिए कितना बड़ा काम किया है और कर रही है। कई बार मुझे अमेरिका या ब्रिटेन जैसे देशों से चौंकाने वाली  प्रतिक्रियाएं मिलती हैं। दिव्य रश्मि  के माध्यम से जब अप्रवासी भारतीय अपनी भाषा में समाचार पढ़ते हैं। वो आत्मीयता  से भर उठते हैं। दूर देश में उन्हें अपनेपन और करीब होने का अहसास होता है। कई बार सोशल साइट्स पर दिव्य रश्मि   को लेकर सहर्ष प्रतिक्रियाएं भी ज़ाहिर करते हैं। 

दिव्य रश्मि  ने ना सिर्फ भारतीय भाषाओं के लिए महत्वपूर्ण काम किया है। सूचना और समाचारों के स्तर पर अपनी  प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराने का बड़ा काम किया है। यही वजह है कि मैं एक दिव्य रश्मि  पर गर्व करता हूं। अपने  भारत को महसूस करता हूं। दिव्य रश्मि  कई मामलों में अग्रणी है, इसकी वजह से ही दूसरी हिंदी वेबसाइट को प्रेरणा  मिली, निजी ब्लाग्स पर काम हुआ। इसके प्रति बढ़ती दिलचस्पी ने बड़े-बड़ों को सोचने पर मजबूर कर दिया। गूगल जैसे  बड़े सर्च इंजनों ने हिंदी के महत्व को समझा। आज तो सब हिंदी की जय-जय कर रहे हैं। दिव्य रश्मि  ने इस सबका कभी  बढ़-चढ़कर श्रेय भी नहीं लिया, बस सविनय अपना काम किया। 

मुझे खुशी है दिव्य रश्मि  ने बहुत से नए आयाम जोड़े हैं, कई सीमाओं को पार किया है, इस विस्तार में मेरे कई साथी  भी दिव्य रश्मि  के संपादकीय टीम का हिस्सा हैं। मैं सभी को दिव्य रश्मि  के इस नये पड़ाव पर फिर बधाई देता हूं।  दिव्य रश्मि  के हमेशा शीर्ष पर होने और दसों दिशाओं में अपने नए-नए कामों की ध्वजा लहराने की शुभकामनाएं देता हूं।  इस अवसर पर मैं पूर्व प्रधान संपादक स्व हिमांशु मिश्र जी को भी याद करता हूं आज उनकी कमी खल रही है ।