विषय पर अनुसंधान मलेशिया की आंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में प्रस्तुत !
भाषा की सात्त्विकता उसका अभ्यासक्रम में समावेश करने का पहलू हो !
* संस्कृत भाषा सर्वाधिक सात्त्विकता प्रक्षेपित करती हैं ! - अनुसंधान का निष्कर्ष
मलेशिया - अभिव्यक्ति और आपस में संवाद के लिए ‘भाषा’ यह जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग है । हमारी मातृभाषा कौनसी हो, यह हमारे हाथ में नहीं है; परंतु सात्त्विक भाषा सीखना हमारे हाथ में है । शैक्षणिक संस्था अपने अभ्यासक्रम में भाषा का चयन करते समय भाषा की सात्त्विकता एक प्रधान पहलू रख सकते हैं, तथा अनुसंधान हेतु चयन की गई 8 राष्ट्रीय और 11 विदेशी भाषाआें में से ‘संस्कृत’ भाषा सर्वाधिक सात्त्विकता प्रक्षेपित करती हैं, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के पूजनीय रेन्डी इकरान्टिओ ने किया । वे सरावक, मलेशिया में 5 से 8 फरवरी 2020 में हुए The CALA 2020 - Conference on Asian Linguistic Anthropology इस आंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में बोल रहे थे । वे परिषद के तीसरे दिन ‘सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा और उनकी लिपि के सूक्ष्म स्पंदन’ यह शोधप्रबंध प्रस्तुत कर रहे थे । इस परिषद का आयोजन The CALA Association ने किया था । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी इस शोधप्रबंध के लेखक हैं और पूजनीय रेन्डी इकरान्टिओ और श्री. शॉन क्लार्क सहलेखक हैं ।
उपरोक्त शोधप्रबंध महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषद में प्रस्तुत किया गया 63 वां शोधप्रबंध था । इससे पूर्व विश्वविद्यालय ने 15 राष्ट्रीय और 47 आंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोधप्रबंध प्रस्तुत किए हैं । इनमें से 4 आंतरराष्ट्रीय परिषदों में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय को ‘सर्वोत्कृष्ठ शोधप्रबंध’ के पुरस्कार प्राप्त हुए हैं ।
पूजनीय रेन्डी इकरान्टिओ ने आगे कहा कि दृश्य और अदृश्य जगत से नकारात्मक अथवा सकारात्मक स्पंदन कम-अधिक प्रमाण में प्रक्षेपित होते हैं । व्यक्ति की जीवनशैली सात्त्विक होगी, तो उसका कल्याण होकर उसे मनःशांति प्राप्त होगी, तथा समाज की सात्त्विकता भी बढने लगती है । इसके विपरीत उसकी जीवनशैली रज-तमप्रधान होगी, तो उसकी परिणिती शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता में होती है । इसका कारण है, ‘नकारात्मक स्पंदनों का हमपर विविध स्तरों पर परिणाम होकर हममें तनाव, उदासीनता, व्यसनाधीनता, कर्करोग जैसी अनेक व्याधियां उत्पन्न होती हैं’ । लिखित अथवा बोलने के माध्यम से भाषा में से भी सकारात्मक अथवा नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । हम और ‘जिनसे हम संवाद करते हैं वे’ उनपर भी हमारी भाषा के स्पंदनों का परिणाम होता है । व्यापक स्तर पर किसी समाज की प्रमुख भाषा का वहां की संस्कृति पर परिणाम होता है ।
भाषा ‘उसके स्पंदन और उसका व्यक्तियों पर होनेवाला परिणाम’ में कैसे भिन्नता होती है, यह स्पष्ट करने के लिए पूजनीय रेन्डी इकरान्टिओ ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा ऊर्जा और प्रभामंडल नापने का यंत्र, तथा सूक्ष्म परिक्षण के माध्यम से किए गए कुछ प्रारंभिक परीक्षणों की (Pilot studies) जानकारी दी । इन परीक्षणों के लिए युनिवर्सल ऑरा स्कैनर इस सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा, तथा कुल प्रभामंडल नापनेवाले आधुनिक वैज्ञानिक यंत्र का उपयोग किया गया । इनमें से कुछ परीक्षण आगे दिए अनुसार हैं ।
परीक्षण 1 - ‘सूर्य पूर्व में उगता है और पश्चिम में अस्त होता है’, यह वाक्य 8 राष्ट्रीय और 11 विदेशी भाषाआें में भाषांतरित किया गया । प्रत्येक भाषा के वाक्य का अलग प्रिंटआऊट निकाला गया । उसके पश्चात प्रत्येक प्रिंटआऊट की सूक्ष्म ऊर्जा का अध्ययन युनिवर्सल ऑरा स्कैनर के माध्यम से किया गया । देवनागरी लिपि की भाषाआें में अन्य भाषाआें की तुलना में सर्वाधिक सकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी । इसके विपरीत अन्य भाषाआें में नकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी । संस्कृत भाषा के वाक्य के प्रिंटआऊट में सर्वाधिक सकारात्मकता दिखाई दी। उसके पश्चात सकरात्मकता मराठी भाषा में थी ।
परीक्षण 2 - सात्त्विक और असात्त्विक फॉन्ट (संगणकीय अक्षर) का परिणाम परीक्षण 1 में संस्कृत भाषा के वाक्य का महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा निर्मित सात्त्विक अक्षरों में और संगणक पर सामान्य अक्षरों में प्रिंटआऊट निकाला गया । सात्त्विक अक्षरों के प्रिंटआऊट में संगणक के अक्षरों के प्रिंटआऊट की तुलना में 146 प्रतिशत अधिक सकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी ।
परीक्षण 3 - भाषा के कारण व्यक्तियों के प्रभामंडल पर होनेवाला परिणाम इस परीक्षण के लिए संस्कृत सहित जग की सर्वाधिक बोली जानेवाली अंग्रेजी और मंदारिन (चीन में बोली जानेवाली भाषा) भाषाआें का चयन किया गया । पहले परीक्षण में वाक्य का तीनों भाषाआें में वह भाषा मातृभाषा जिसकी है ऐसे व्यक्ति से भाषांतर करवा लिया था । प्रत्येक भाषा उत्तम रूप से बोलनेवाले व्यक्ति की आवाज में उसका ध्वनिमुद्रण किया गया । उसके पश्चात आध्यात्मिक साधना न करनेवाले 2 व्यक्तियों ने प्रत्येक ध्वनिमुद्रण 10 मिनिट सुना । प्रत्येक ध्वनिमुद्रण सुनने के पश्चात उन व्यक्तियों पर हुआ परिणाम नापा गया । परीक्षण के किसी भी व्यक्ति का उस भाषा से भावनात्मक जुडाव नहीं था । दोनों व्यक्तियो पर मंदारिन और अंग्रेजी भाषा का नकारात्मक परिणाम हुआ; अर्थात उनकी नकारात्मक ऊर्जा बढ गई और सकारात्मकता नष्ट हुई । इसके विपरीत उन्होंने संस्कृत में किए गए वाक्य का ध्वनिमुद्रण सुनने पर उनकी नकारात्मकता बहुत प्रमाण में कम हुई और सकारात्मक प्रभामंडल उत्पन्न हुआ ।
अंत में शोधप्रबंध का समापन करते समय पूजनीय रेन्डी इकरान्टिओ ने कहा कि ‘‘वक्ता का आध्यात्मिक स्तर बढने पर भाषा कोई भी हो, उन्हें उच्चरित शब्दों से सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । अर्थात उनके द्वारा संस्कृत अथवा मराठी भाषाआें में बोलने पर वक्ता का आध्यात्मिक स्तर और भाषा की सात्त्विकता ऐसा दोहरा सकारात्मक लाभ मिलता है ।’’