नरेन्द्र सिंह तोमर
कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास
तथा पंचायती राज मंत्री,
भारत सरकार
भारतीय
संस्कृति में नारी को सम्मानजनक स्थान देने की परंपरा प्राचीनकाल से रही है। हमारे
शास्त्रों और धर्म ग्रंथों ने भी उनके सामाजिक महत्व पर यह कहकर बल दिया है कि यत्र
नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता। सनातन धर्म में मां दुर्गा को जगत का
पालन करने वाली, विश्व कल्याण की प्रणेता और दुष्टों का संहार करने वाली
अधिष्ठात्री देवी माना गया है। हमारा समाज आज भी सीता, सावित्री, तारा, कुन्ती और
गार्गी जैसी अनेक महान और विदुषी नारियों के व्यक्तित्व, त्याग और साहस की गाथाओं
से प्रेरणा लेता है। वैदिक समाज की यह धारणा नारी के अपरिमित महत्व को रेखांकित
करती है कि उनके बगैर पुरूष को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो
सकती। हालांकि मध्यकालीन युग में महिलाओं की स्थिति सोचनीय स्थिति में पहुंच गई।
आर्थिक पराधीनता, अशिक्षा, बहु-पत्नी प्रथा और दहेज जैसी कुप्रथाओं के साथ नारी
सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक रूढ़ियों में जकड़ गई। 19वीं शताब्दी में राजाराम मोहन
राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर एनी बेसेंट और महात्मा गांधी जैसे समाज सुधारकों ने
महिलाओं को समाज की मुख्यधारा में लाने और उनके उत्थान के लिए संकल्पबद्ध होकर
प्रयास किए।
वर्तमान
परिदृश्य में महिलाओं की आर्थिक-सामाजिक और राजनीतिक स्थिति, उनकी गरिमा और नारी
सशक्तिकरण का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे देश में शिक्षा, स्वास्थ्य,
औद्योगिकीकरण और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के साथ नारियों के प्रति सकारात्मक
चेतना विकसित हुई है। महिला सशक्तिकरण में समाज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। देश
के समावेशी विकास की परिकल्पना उस समय तक साकार नहीं हो सकती, जब तक राजनीति से
लेकर स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की सशक्त भूमिका न हो। इसके
लिए परिवार और समाज की सकारात्मक सोच बहुत आवश्यक है। यह प्रसन्नता का विषय है कि
परिदृश्य बदल रहा है और महिलाओं की भागीदारी सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय रूप से
बढ़ी है। महिला सशक्तिकरण के लिए नारी के प्रति सम्मान की भावना के साथ लोगों की
मानसिकता परिवर्त्तन जरूरी है। इससे आम महिलाओं के जीवन और उनकी स्थिति में
परिवर्त्तन आसान हो जाता है। महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल और आर्थिक
स्वतंत्रता ही नारी सशक्तिकरण का रास्ता खोलती है। आज महिलाएं किसी भी क्षेत्र में
पुरूषों से पीछे नहीं हैं। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षाओं से लेकर
विश्वविद्यालयों की शिक्षा तक योग्यता सूची में बालिकाएं प्राय: बालकों से आगे
निकल रही हैं। सिविल सेवाओं और यहां तक कि पुलिस और सेनाओं में सक्षम अधिकारी के
रूप में उनका दबदबा लगातार बढ़ रहा है। आज महिलाएं चिकित्सा, विज्ञान, इंजीनियरिंग
और उच्च प्रौद्योगिकी से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान कर रही
हैं। इससे उन्हें गति मिली है, दिशा मिली है, उनका आत्म-अभिमान और आत्म-विश्वास
बढ़ा है। प्रसिद्ध विचारक हेरिएट बीचर स्टोव ने सच कहा है कि महिलाएं
समाज की वास्तविक शिल्पकार होती हैं। मेरा मानना है कि महिलाएं परिवार से लेकर
समुदाय, समाज और देश की भी वास्तविक शिल्पकार हैं और उन्होंने अपनी योग्यताओं,
कुशलताओं और क्षमताओं से यह प्रमाणित भी कर दिया है।
भारतीय संविधान देश
के सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता और विधि के समान संरक्षण की गारंटी देता
है। अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य किसी नागरिक के साथ धर्म, मूल वंश, जाति या लिंग
आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। अनुच्छेद 15(3) के अंतर्गत राज्य को महिलाओं
के लिए सकारात्मक विभेद से संबंधित विशेष प्रावधान करने की शक्ति दी गई है। यही
नहीं, भारतीय संविधान में पुरूषों और महिलाओं की समानता सुनिश्चित करने के लिए कई
अन्य प्रावधान भी मौजूद हैं। अनुच्छेद 39(घ) में पुरूषों और महिलाओं दोनों को समान
कार्य के लिए समान वेतन देने की व्यवस्था है। देखा जाए, तो हमारा संविधान महिलाओं
को न केवल समानता का अधिकार देता है बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर
सशक्त बनाने के उद्देश्य से सरकार को सकारात्मक विभेद के उपाय करने की शक्ति भी
देता है। महिला सशक्तिकरण वह प्रक्रिया है जो नारी-समुदाय को आर्थिक, सांस्कृतिक,
सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में समान अवसर प्राप्त करने और संपूर्ण क्षमता के साथ
अधिकारों का उपयोग करने की सामर्थ्य प्रदान करती है। घर के अंदर और बाहर
महत्वपूर्ण निर्णय लेने में पुरुषों के समान उनकी भागीदारी सामाजिक परिवर्त्तन की
गति बढ़ाने के लिए बहुत आवश्यक है। इसे दृष्टि में रखते हुए, महिलाओं को हर तरह से
सशक्त बनाने और उनकी सुरक्षा एवं गरिमा सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने विभिन्न
स्तरों पर गहन प्रयास किए हैं।
विकास
संबंधी प्राथमिकताओं को परिभाषित करने में सतत विकास लक्ष्यों की
महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गरीबी-उन्मूलन, असमानता, बेहतर स्वास्थ्य और आर्थिक
विकास जैसे सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महिला सशक्तिकरण को व्यापक
मान्यता दी गई है। महिलाओं का सशक्तिकरण और उनकी बेहतरी देश के जनसांख्यिकीय
लाभांश की प्राप्ति के लिए अपरिहार्य है। सतत विकास लक्ष्य 17 वैश्विक लक्ष्यों और
169 संबद्ध लक्ष्यों की व्यापक सूची है, जिसमें विकास के आर्थिक, सामाजिक और
पर्यावरण संबंधी आयामों का समावेश है। इन्हें वर्ष 2030 की समाप्ति तक हासिल किया
जाना है। केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने सतत विकास
लक्ष्यों की प्रगति की निगरानी के लिए विभिन्न मंत्रालयों के परामर्श से 306
विशिष्ट संकेतकों का एक राष्ट्रीय सूचकांक फ्रेमवर्क विकसित किया है। सतत विकास
लक्ष्यों की मौजूदा स्थिति के आकलन के लिए इस फ्रेमवर्क की बेसलाइन रिपोर्ट में
देश की महिलाओं और बच्चों के विकास को प्रमुखता दी गई है। इससे स्पष्ट है कि महिला
सशक्तिकरण की भूमिका केवल देश के आंतरिक विकास तक ही सीमित नहीं, बल्कि
विश्व-व्यापी है और यह वैश्विक विकास का मुख्य घटक है।
देश की महिलाओं को
विकास के हर क्षेत्र में पुरूषों के समान भागीदार बनाने और उनके समग्र कल्याण के
लिए सरकार के स्तर पर कई महत्वपूर्ण पहल की गई हैं। महिला और बाल विकास मंत्रालय
ने नीतियों और प्रभावी योजनाओं- कार्यक्रमों के जरिए इस दिशा में अनेक प्रयास किए
हैं। सरकार ने महिलाओं को घर और बाहर सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराने के लिए
अधिनियमों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया है। महिलाओं के लिए कार्य-स्थल
पर यौन-उत्पीड़न से मुक्त वातावरण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से यौन-उत्पीड़न
(निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोष) अधिनियम, 2013 लागू किया गया। इस कानून में
उम्र या रोजगार के स्तर पर ध्यान दिए बिना, संगठित और असंगठित दोनों ही क्षेत्रों
की सभी महिलाओं को कार्य-स्थल पर यौन-उत्पीड़न से संरक्षण दिया गया है। अधिनियम
में विद्यार्थियों, प्रशिक्षुओं, श्रमिकों, घरेलू सहायिकाओं और किसी कार्यालय या
कार्य-स्थल में अधिकारी से मुलाकात करने वाली महिलाओं को भी शामिल किया गया है।
कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने के प्रयोजन से सरकार ने कार्य-स्थल पर
यौन-उत्पीड़न से संबंधित शिकायतें दर्ज कराने के लिए “शी-बॉक्स” नामक एक ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन-प्रणाली विकसित
की है। यह प्रणाली कार्य-स्तर, संगठित या असंगठित, निजी या सार्वजनिक क्षेत्र जैसे
पहलुओं पर ध्यान दिए बिना, प्रत्येक महिला को कार्य-स्थल पर यौन-उत्पीड़न से
संबंधित शिकायतें दर्ज कराने का ऑनलाइन प्लेटफार्म उपलब्ध करा रही है। जो महिलाएं
पहले ही कार्य-स्थल पर यौन-उत्पीड़न अधिनियम के तहत गठित की गई आंतरिक समिति या
स्थानीय समिति के पास लिखित शिकायत दे चुकी हों, वे भी इस पोर्टल पर अपनी शिकायत
दर्ज करा सकती हैं। इससे यौन-उत्पीड़न का सामना करने वाली महिलाओं को तत्काल राहत मिल
रही है। सरकार बाल-विवाह की प्रथा समाप्त करने के लिए भी कठोर कदम उठाती रही है।
बाल-विवाह को बढ़ावा देने वाले और उकसाने वाले व्यक्तियों को दंडित करने के लिए बाल-विवाह
प्रतिषेध अधिनियम कड़ाई से लागू किया जा रहा है। बाल-विवाह की रोकथाम और
बेटियों का संरक्षण राष्ट्रीय बाल कार्ययोजना, 2016 का प्रमुख उद्देश्य है।
महिलाओं से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस और राष्ट्रीय
बालिका दिवस जैसे अवसरों का व्यापक उपयोग किया जा रहा है।
महिलाओं
के लिए घर से बाहर सुरक्षित माहौल पर ध्यान केन्द्रित करने के साथ, उन्हें घर के
अंदर भी उचित संरक्षण देने पर बल दिया गया है। इसके लिए घरेलू हिंसा से महिलाओं
का संरक्षण अधिनियम, 2005 तत्परता से लागू किया गया है। इस कानून का उद्देश्य
घरेलू हिंसा पर रोक लगाना और प्रतिवादी के साथ महिला के संबंधों पर ध्यान दिए बगैर
पीड़ित महिला को तत्काल एवं आपात-राहत प्रदान करना है। इस अधिनियम की मूल भावना
महिलाओं के अपने घर जैसे निजी स्थान में हिंसामुक्त जीवन जीने के अधिकार पर आधारित
है। दहेज-रूपी सामाजिक कलंक को दूर करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए सरकार दहेज
प्रतिषेध अधिनियम के माध्यम से दहेज प्रथा के उन्मूलन की दिशा में निरंतर
प्रयासरत है। दहेज देने या लेने और ऐसे लेन-देन के लिए उकसाने वाले व्यक्तियों के
लिए कड़े दण्ड का प्रावधान किया गया है। दहेज लेने और देने से हतोत्साहित करने और
इस बारे में लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाने के लिए रेडियो, अखबार, दूरदर्शन
और सोशल मीडिया के जरिए समय-समय पर व्यापक अभियान चलाया जाता है। महिलाओं के
अश्लील रूपण वाली किसी पुस्तक, पैम्फलेट और इस तरह की अन्य सामग्री की बिक्री,
वितरण और परिचालन पर रोक लगाने के लिए महिला अश्लील रूपण अधिनियम में कठोर
प्रावधान किए गए हैं। मीडिया और संचार माध्यमों की भी महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण
में प्रमुख भूमिका है और पिछले कुछ वर्षों में इनकी सक्रियता के सकारात्मक परिणाम
सामने आए हैं। महिला उत्थान एवं सशक्तिकरण, बालिका शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, महिला
स्वास्थ्य, गर्भिणी और स्तनपान कराने वाली माताओं के कल्याण से जुड़ी योजनाओं और
महिला-संरक्षण से जुड़े विभिन्न कानूनों के बारे में आकाशवाणी और दूरदर्शन सहित
विभिन्न चैनलों पर कार्यक्रमों के प्रसारण से समाज में महिलाओं के अनुकूल चेतना
मजबूत हुई है और नारी-सशक्तिकरण में मदद मिली है।
महिलाओं के सामाजिक कल्याण पर केन्द्रित प्रधानमंत्री
मातृ-वंदना योजना में महिलाओं को गर्भधारण और स्तनपान कराने के दौरान कुछ
विशेष शर्तें पूरी करने पर 5,000/- रु. की नकद प्रोत्साहन राशि तीन किश्तों में
सीधे उनके बैंक या डाकघर खाते में भेजी जाती है। लाभार्थी को जननी सुरक्षा
योजना के तहत भी लाभ मिलते रहते हैं, ताकि प्रत्येक लाभार्थी को औसतन 6,000/-
रु. प्राप्त हो सकें। इस योजना का लाभ प्रवासी नागरिकों को भी दिया जा रहा है।
वर्ष 2019-20 के दौरान प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के लिए 2500 करोड़
रु. का बजट प्रावधान रखा गया था। 11 से 14 वर्ष आयु वर्ग की स्कूली बालिकाओं को
पोषण, जीवन-कौशल और गृह-कार्य दक्षता के जरिये सशक्त बनाने और उनकी सामाजिक स्थिति
में सुधार लाने के लिए विशेष योजना चलाई जा रही है। इसमें आयरन और फोलिक एसिड की
गोली उपलब्ध कराना, स्वास्थ्य की नियमित जांच, स्कूल न जाने वाली बालिकाओं को
मुख्यधारा में लाकर स्कूल-शिक्षा से जोड़ना, सेतु-पाठ्यक्रम, कौशल प्रशिक्षण,
जीवन-कौशल शिक्षा, गृह-प्रबंधन और परामर्श एवं मार्गदर्शन जैसी सुविधाएं शामिल
हैं। राष्ट्रीय क्रेच योजना के तहत कामकाजी महिलाओं के 6 माह से 6 वर्ष तक
के बच्चों के लिए दिवस-देखभाल सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।
महिला शक्ति केंद्र
योजना के अंतर्गत स्वयंसेवी
छात्रों के सहयोग और सामुदायिक भागीदारी के जरिए ग्रामीण महिलाओं को सामर्थ्यवान
बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है। यह योजना विभिन्न स्तरों पर चलाई जा रही है।
राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर महिलाओं से जुड़े सरोकारों के लिए संबंधित सरकार को
तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई जाती है। दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों की शिकार ऐसी
महिलाएं जिन्हें पुनर्वास के लिए संस्थागत सहायता की जरूरत है, उन्हें गरिमा के
साथ जीवन बिताने में मदद देने के लिए स्वाधार गृह योजना चलाई जा रही है।
महिलाओं और बच्चों की मानव-तस्करी पर रोक लगाने, पीड़िताओं को मुक्त कराने में मदद
देने और उन्हें सुरक्षित वातावरण में पहुंचाने के उद्देश्य से उज्ज्वला नामक
योजना कार्यान्वित की जा रही है। इसमें पीड़ित महिलाओं और बच्चों को बुनियादी
सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं और परिवार तथा समाज के साथ एकीकरण कर उनके पुनर्वास
में मदद दी जाती है। कामकाजी महिलाओं को सुरक्षित वातावरण के साथ किफायती दरों पर
आवास सुविधा उपलब्ध कराने के लिए हॉस्टल योजना चलाई जा रही है। हॉस्टल स्थापित
करने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय, गैर-सरकारी संगठनों और राज्य सरकारों को
वित्तीय सहायता भी दे रहा है।
महिला और बाल विकास
मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय की
आपसी पहल के रूप में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना लागू की जा रही है जिसमें
बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने और गर्भधारण एवं प्रसवपूर्व निदान तकनीक अधिनियम को प्रभावी
तरीके से लागू करने जैसे विभिन्न पहलुओं पर जोर दिया जा रहा है। इस विषय में लोगों
की मानसिकता बदलने के लिए जागरूकता प्रसार पर भी ध्यान केंद्रित किया जाता है।
योजना का मुख्य उद्देश्य बालिका भ्रूण हत्या पर रोक लगाना, बालिका का जीवन और उसका
संरक्षण सुनिश्चित करना तथा शिक्षा में उनकी भागीदारी बढ़ाना है। हिंसा से
प्रभावित महिलाओं को अस्थायी आश्रय देने और पुलिस, चिकित्सा, कानूनी, मनोवैज्ञानिक
सहायता सहित विभिन्न सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वन स्टॉप सेंटर
चलाए जा रहे हैं। हिंसक अपराधों का सामना करने वाली अनेक महिलाओं को इस बात की
जानकारी नहीं होती कि वे मदद के लिए कहां जाएं। ऐसी स्थिति में वन-स्टॉप सेंटर
बहुत उपयोगी साबित हो रहे हैं।
ग्रामीण विकास
मंत्रालय की “दीनदयाल अंत्योदय योजना”- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत आज महिलाओं के साठ लाख से
अधिक स्वयं सहायता समूह देश के ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी घटाने और परिवारों की
आमदनी में पर्याप्त वृद्धि के अवसर पैदा करने में लगे हुए हैं। इसे निश्चित तौर पर
नारी-शक्ति और महिला सशक्तिकरण का प्रतीक माना जा सकता है। वर्तमान परिदृश्य में
यह कहने में जरा भी संकोच नहीं होना चाहिए कि नारी है तो कल है और सशक्त
नारी से ही सशक्त समाज का निर्माण संभव है।
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