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मुश्किल के इस चार घड़ी में


मुश्किल के इस चार घड़ी में

डॉक्टर सच्चिदानंद प्रेमी,संरक्षक राष्ट्रीय आचार्य कुल ।
भारतीय संस्कृति की प्रशंसा जितनी की जाए कम ही होगी इसलिए कि भारतीय संस्कृति का उद्घोष यह
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चित् दुख भाग् भवेत् ।
सिर्फ भारत ही नहीं संपूर्ण जीवमंडल के लिए यह उद्घोष समान भाव से निर्धारित हुआ है ।ऐसा भी कहा जा सकता है कि उक्त कालखंड में जहां तक मानव भद्र होते थे वहां तक भारत का साम्राज्य था
महात्मा मनु ने एक संगीता लिखी -मनु स्मृति स्मृति ।स्मृति का अर्थ होता है स्मरण ।स्मरण उसी का हो सकता है जो घटना कभी घटी ।स्मृति यानि घटनाओं का अनुभव गम्य स्मरण ।आश्चर्य की बात तो यह है कि वे लोग उन्हें गाली देते हैं जिन्होंने इस पुस्तक को देखा भी नही है।मानव संहिता -क्या करें क्या न करें, उसमें स्पष्ट बताया गया है। ऐसी परिस्थिति में उसका अवलोकन अवश्य किया जाना चाहिए ।
हम किसी व्यक्ति, जाति, संप्रदाय ,धर्म, पंथ को गाली दे सकते हैं ,क्योंकि हम स्वतंत्र हैं ,परंतु यह भी नही भूले कि प्रकृति भी स्वतंत्र है ।नदी के किनारे अगर कमजोर होते हैं तो बाढ़ का पानी गांव में घुस जाता है ।कोई सत्य है जो प्रकृति के लिए समान है। जन्म, पुनर्जन्म ,पाप -पुण्य, धर्म -अधर्म -विधर्म सब अदृश्य है ।प्रकृति दृश्य है ।बरसात,आपत,शीत, आफत नहीं पहचानते कि यह क्षेत्र किस संप्रदाय धर्म व्यक्ति का है क्योंकि वह सत्य है। इसलिए मैं मानव जाति से देश -प्रदेश की सीमा तोड़कर संपूर्ण जगत की मानव- जाति के लिए अपील करना चाहूंगा कि भारतीय संस्कार एवं संस्कृति के शरण में जाएं और निरामय हो जाएॅ।बिना आवश्यक कार्य के कहीं बाहर नहीं जाएं। पूजा-पाठ निजी चीज है ।घर में रहकर एकांत भाव से अपने इष्ट देव की आराधना करें ।संप्रदाय जो हो परम शक्ति की आराधना ही पूजा है।
घर में रहकर एकांत भाव से की गई आपकी प्रार्थना प्राथमिकता से सुनी जाती है ।ऋषि कुल में यज्ञ हवन का प्रचलन था ।लोग शाकाहारी हुआ करते थे ।वैसे भी विषाणु को पनपने के लिए दो होस्ट चाहिए। यानी 2 शरीर चाहिए। एक ही शरीर पर समाप्त हो जाते है । सर्वे भवंतू सुखिनः के लिए लघु अंश पक्षियों के लिए योग्य मुनियों ब्राह्मणों पंछियों के लिए निकालते थे पके भोजन का अंश अग्नि को समर्पित किया जाता था। प्रथम रास गौ ,काक आदि पक्षियों को दिया जाता था ।भोजन उपरांत ग्रास का अंतिम अंश के लिए कुत्ते प्रतीक्षा करते थे । यही तो सर्वमान्य सामान्य प्राकृतिक नियम है। विषाणुओं (वायरस) का प्रसार बरसात में अधिक होता है ।गर्मी में अत्यधिक गर्मी पड़ने से वह एक बाहरी आवरण यानी शिष्ट बनाकर पड़ा रहता है ।अनुकूल वातावरण में तुरत फैलता है। बरसात का मौसम इसके लिए सबसे अनुकूल है। इसीलिए आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रा से आरंभ होकर कार्तिक पूर्णिमा तक विभिन्न तरह के अनुष्ठान आयोजित होते थे जिनमें हवन यज्ञ आदि का प्रचलन था ।घुमंतू साधु मुनि भिच्छू इस काल को चौमासा कह कर एक स्थान पर स्थिर हो जाते थे आना-जाना बंद हो जाता था ।-करंटाइन। हवन कुंड से निकलने वाला धुआं विषानुओ का समूल नाश कर देता था। वातावरण स्वच्छ हो जाता था। वैसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से धुआं गर्मी के दिनों में हल्का होकर ऊपर उठ जाता है ।,जाड़े में संगठित होकर नीचे रह जाता है ,बरसात में जाड़ा और गर्मी के मिश्रित मौसम होने से यह छोभ मंडल में स्थित रहता है जो जैविक संसार के लिए बहुत ही लाभप्रद है तथा रोगों के पनपने में अवरोध का काम करता है ।हमारा कर्तव्य है कि अपने-अपने घरों में रहकर हवन यज्ञ आदि का आयोजन कर प्राचीन सभ्यताओं को अपनाकर कोरोना से विजयी बने ।कल अक्षय तृतीया के अवसर पर शुभ मुहूर्त में सुबह 7:00 बजे से 9:00 बजे तक अपने अपने घरों में हवन यज्ञादि की व्यवस्था की जाए ।यह संदेश हम संपूर्ण भूमंडल में गया से ही आरंभ करें।