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दुनिया आगे बढ़ रही थी

दुनिया बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही थी 

कवि चितरंजन 'चैनपुरा' , जहानाबाद, बिहार, 804425

दुनिया बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही थी ।

जिंदगी अपनी रफ्तार से भागी जा रही थी ।
गतिमान संसार में कोई कहीं रुकने का नाम नहीं ले रहा था ।
क्षण भर को ठहर जाने का समय किसी के पास नहीं था ।
भागमभाग की दुनिया में बर्तमान खो सा गया था ।
अतीत में झाँकने की फुर्सत किसी को भी नहीं थी ।
अनजाने भविष्य की ओर मुँह बाये सबकोई अपने आप ही खिंचा चला जा रहा था ।

पता नहीं कहाँ से एक वायरस आया 'कोरोना' ! 
लॉक डाउन लगा और बेलगाम दुनिया अचानक ही थम सी गई।
दौड़ती हुई जिंदगी ठहर सी गई ।
सहसा जो कुछ भी हुआ उसपर किसी को विश्वास नहीं होता ।
पीछे मुड़कर देखता हूँ तो तो सबकुछ बदला-बदला सा नजर आता है ।

जाने न पइली ई कइसे जहनमा में जिनगी के जीतब जंग
हो ! अब देखइत दुनिया ही दंग ।
पल-पल घड़ी-घड़ी बदलल जमाना क्षण-क्षण बदलइत रंग
हो ! अब देखइत दुनिया ही दंग ।।

हरबा में फरबा लगल करुअरबा लगना हरिस कहाँ गेल !
लगल पलोइआ में नाधा आउ जोती देखला बरिस बीत गेल!
खुँट्टा पर बान्हल बैला के जोड़ी साँवर शोकन रंग 
हो ! अब देखइत दुनिया ही दंग ।।

टी.व्ही. मोबाईल के आयल जमाना उड़इत नभ में विमान ।
बस ट्रक ट्रेन आउ कारो भी देखली मेट्रो के बहुते बखान ।।
कल करखनमा के सब अभिमनमा क्षणहीं में हो गेलइ भंग
हो ! अब देखइत दुनिया ही दंग ।

होड़ लगयले हे मानव मुदइया अपने से अपने बेचैन ।
दउड़इत-भागइत दुनिया में केकरो न देखली कहीं चितचैन ।।
क्षणहीं में देखइत थम गेलइ दुनिया दुबकल बड़-बड़ दबंग 
हो ! अब देखइत दुनिया ही दंग ।।