योगेन्द्र
प्रसाद मिश्र (जे. पी. मिश्र)
अभी कोरोना महामारी से
बचने के लिए ताला-बंदी (Lockdown) का दौर चल रहा
है. कुछ दुकानें तो आम जरूरत पूरी करने के लिए खुली हुई हैं, पर कुछ काम करने के लिए दुकान खोलकर बैठनेविलों पर रोक लगी
हुई है,
उसमें से नाई की दुकान या सैलून भी एक है. चूंकि, कोरोना बीमारी संपर्क और संसर्ग से फैलती है, अत: इससे बचने की सख़्त हिदायत है और सैलून का तो ऐसा स्थान
है,
जहाँ संपर्क सर पर सवार है! आप चाहें या नहीं चाहें, आपके मुख, सर, बाल,
मूंछ-दाढ़ी, सांसों से बात होगी ही,
जिसके माध्यम से छूत लगने की आशंका से ही मन सिहर उठता है
और इच्छार्थी इससे बचने के लिए कृत-संकल्प हो ही जाते हैं; कुछ मजेदार दृश्य भी सामने आ जाते हैं - कहीं अभिनेता के
बाल उसकी पत्नी द्वारा काटा/ठीक-ठाक किया जाता है, तो कहीं राजनेता पिता की दाढ़ी राजनेता पुत्र द्वारा ही करीने से सजायी जाती
है,
तो कहीं किसी पिता का मुंडन ही विद्यार्थी पुत्र द्वारा
अपनी माँ के सहयोग से कर दिया जाता है.
सबसे बड़ी विपदा तो तब आती
है,
जब अशौच कर्म से निवृत्ति के निमित्त कराये जाने वाले
क्षौर-कर्म भी या तो अदृश्य भय के वातावरण में कुछ लोग करा लेते हैं या कोई समय की
वाध्यता समझकर भी ऐसा नहीं करा पाते हैं और अपने मन की शुद्धि के लिए खुद ही, या किसी से थोड़ी बहुत सहायत लेकर, प्रतिकात्मक रूप से क्षौर-कर्म कर लेते हैं. पर, अभी तो विरोध में सार्वजनिक-स्थल पर, यहाँ तक कि किसी महिला द्वारा भी, मुंडन करा लेने के कार्यक्रम पर स्वत: रोक लग गई है. वैसे, कुछ अनजानों
की जानकारी को बताना यहाँ
प्रासंगिक ही होगा कि गांधी जी जब शुरू में ही दक्षिण अफ्रीका गये थे तो
अस्पृश्यता के चलते वहां उन्हें अपना बाल अपने से ही काटना पड़ा था.
अमेरिका में कोरोना के
फैलाव में सैलूनों की भूमिका भी है और कल ही मध्यप्रदेश के एक जिले में 6 नए पाए गए संक्रमण सैलून जाने से फैले। अमेरिका में तो
सलून की वजह से कोरोना काफी फैला है क्योंकि वहां शुरू मे लॉक डाउन नहीं था।
ऐसी स्थिति में पूरा बाल
मुड़ा लेने या मुंडन करा लेने के बारे में जानने की प्रबल इच्छा होनी स्वाभाविक ही
है! आयें मुंडन के बारे में और कुछ जानें!
मुंडन
"मुंडन हिन्दू
तथा मुस्लिम सम्प्रदायों दोनों में प्रचलित नवजात शिशुओं के बाल काटने की प्रथा है; जिसे मुस्लिम अक़ीक़ा के नाम से जानते हैं और जिसके बारे
में एक आम धारणा ये है कि बच्चे के मुंडन से बल, बुद्धि और आयु बढ़ती है.
वैदिक काल में 5 वर्ष पूर्ण करने के बाद गुरुकुल में प्रवेश के समय
चूड़ाकर्म संस्कार (मुंडन संस्कार) किया जाता था
हिन्दू धर्म संस्कारों में चूड़ाकरण (मुडंन, शिखा) संस्कार अष्टम संस्कार है। अन्नप्राशन संस्कार करने के पश्चात चूड़ाकरण-संस्कार करने का विधान है। यह संस्कार पहले
या तीसरे वर्ष में कर लेना चाहिये।
मनुस्मृति के कथनानुसार
द्विजातियों का पहले या तीसरे वर्ष में (अथवा कुलाचार के अनुसार) मुण्डन कराना
चाहिये—ऐसा वेद का आदेश है। इसका कारण यह है कि माता के गर्भ से
आये हुए सिर के बाल अर्थात केश अशुद्ध होते हैं। दूसरी बात वे झड़ते भी रहते हैं।
जिससे शिशु के तेज़ की वृद्धि नहीं हो पाती है। इन केशों को मुँडवाकर शिशु की शिखा
(चोटी) रखी जाती है। शिखा से आयु और तेज़ की वृद्ध होती है।
बालक का कपाल लगभग तीन
वर्ष की अवस्था तक कोमल रहता है। तत्पश्चात धीरे-धीरे कठोर होने लगता है।
गर्भावस्था में ही उसके सिर पर उगे बालों के रोमछिद्र इस अवस्था तक कुछ बंद-से हो
गये रहते हैं। अतः इस अवस्था में शिशु के बालों को उस्तरे से साफ कर देने पर सिर
की गंदगी,
कीटाणु आदि तो दूर हो ही जाते हैं, मुडंन करने पर बालों के रोमछिद्र भी खुल जाते हैं। इससे नये
बाल घने,
मजबुत व स्वच्छ होकर निकलते हैं।
सिर पर घने, मज़बूत और स्वच्छ बालों का होना मस्तिष्क की
सुरक्षा के लिए आवश्यक है अथवा यूं कहें कि सिर के बाल सिर के रक्षक हैं, तो ग़लत न होगा। इसलिए चुडाकर्म एक संस्कार के रूप में किया
जाता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार
किसी शुभ मुहुर्त एवं समय में ही यह संस्कार करना चाहिए। चूडाकर्म-संस्कार से बालक
के दांतों का निकलना भी आसान हो जाता है।
इस संस्कार में शिशु के
सिर के बाल पहली बार उस्तरे से उतारे जाते हैं। कहीं-कहीं कैंची से बाल एकदम छोटे
करा देने का भी चलन है। जन्म के पश्चात प्रथम वर्ष के अंत तथा तीसरे वर्ष की
समाप्ति के पूर्व मुंडन-संस्कार कराना आमतौर पर प्रचलित है, क्योंकि हिंदु मान्यता के अनुसार एक वर्ष से कम की उम्र में
मुडंन-संस्कार करने से शिशु की सेहत पर बुरा प्रभाव पडता है और अमंगल होने की
आशंका रहती है। फिर भी कुलपरंपरा के अनुसार पांचवें या सातवें वर्ष में भी इस
संस्कार को करने का विधान है।
मान्यता यह है कि शिशु के
मस्तिष्क को पुष्ट करने,
बुद्धि में वृद्धि करने तथा गर्भगत मलिन संस्कारों को
निकालकर मानवतावादी आदर्शों को प्रतिष्ठापित करने हेतु चूडाकर्म-संस्कार किया जाता
है। इसका फल बुद्धि,
बल,
आयु और तेज़ की वृद्धि करना है। इसे किसी देवस्थल या
तीर्थस्थान पर इसलिए कराया जाता है, ताकि वहां के दिव्य वातावरण का भी लाभ शिशु को मिले तथा उतारे गए बालों के साथ
बच्चे के मन में कुसंस्कारों का शमन हो सके और साथ ही सुसंस्कारों की स्थापना हो
सके।
तेन ते आयुषे
वपामि सुश्लोकाय स्वस्त्ये।
अर्थात चूडाकर्म से दीर्घ
आयु प्राप्त होती है। शिशु सुंदर तथा कल्याणकारी कार्यों की और प्रवृत्त होने वाला
बनता है। वेदों में
चूडाकर्म-संस्कार का विस्तार से उल्लेख मिलता है। यजुर्वेद में लिखा है -
नि
वर्त्तयाम्यायुषेड्न्नाद्याय प्रजननाय।
रायस्पोषाय
सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय।।
अर्थात हे बालक! मैं तेरी
दीर्घायु के लिए,
तुझे अन्न-ग्रहण करने में समर्थ बनाने के लिए, उत्पादन शाक्ति प्राप्ति के लिए, ऐश्वर्य वृद्धि के लिए, सुंदर संतान के लिए एवं बल तथा पराक्रम प्राप्ति के योग्य होने के लिए तेरा
चूडाकर्म संस्कार (मुंडंन) करता हूं।
उल्लेखनीय है की चूडाकर्म
वस्तुतः मस्तिष्क की पूजा या अभिवंदना है। मस्तिष्क का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना ही
बुद्धिमत्ता है। शुभ विचारों की धारण करने वाला व्यक्ति परोपकार या पुण्यलाभ पाता
है और अशुभ विचारों को मन में भरे रहने वाला व्यक्ति पापी बनकर ईश्वरीय दंड और कोप
का भागी बनता है। यहां तक की अपनी जीवन-प्रक्रिया को नष्ट-भ्रष्ट कर डालता है। अतः
मस्तिष्क का सार्थक सदुपयोग ही चूडाकर्म का वास्तविक उद्देश्य है।"
अपने चारो ओर होनेवाले
संस्कारों से परिचित तो हम हैं, पर ऐसा क्यों
किया जाता है,
बहुत से लोग नहीं जानते! अत: अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए
ही मुंडन-संस्कार के बारे में कुछ जानकारी दी गई, जिससे आप लाभान्वित होंगे, ऐसा विश्वास
है!
"ओम् त्वं जीव शरद: वर्धमान:॥"
योगेन्द्र प्रसाद मिश्र
(जे. पी. मिश्र), अर्थमंत्री-सह-कार्यक्रम संयोजक,
बिहार-हिन्दी- साहित्य-सम्मेलन, पटना 800003: निवास: मीनालय, 60, केसरीनगर, पटना 800024.