तोन्द
गिरीन्द्र
मोहन मिश्र ,
फ़ोटो जर्नलिस्ट
वो तोन्द को समझा
रहे हैं,
बाहर जाने
से रोक रहे
हैं,
वो लाक डाउन बता
रहे हैं,
लेकिन तोन्द
नहीं मान रहे हैं.
तोन्द भी विवश
लाचार है,
वो राजनीति
का शिकार
है,
उसे खाने का लत
लगा है,
पचाने का औकात
कहाँ है.
जी.एम.गौण हो देख
रहे हैं,
तोन्द की चाहत
बढ़ रहे है,
रोकने का
ज्ञान लुप्त हुये है,
लोभ लालच
में बढ़े हुये हैं.
आकार अब बेकार
हो रहा है,
खुद से
ही तकरार हो रहा है,
वक़्त का इंतजार
हो रहा है,
लेकिन
धारक खूब
रो रहा है.