पेड़
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मैं जी लेता हूँ पेड़ों के साथ
सिर्फ इसलिए नहीं
कि इनसे जुड़ी हैं सांसें
या मिलती है शीतल छाँव
बल्कि ये साक्षी हैं
मेरे सच्चे प्यार के
उसकी ओट में छुपकर किया था
कभी किसी के आने का इंतजार
उसकी छाँव में बैठकर
रोये थे, मुस्कुराये थे
खाई थी कस्में साथ रहने की
आज जब कि
नहीं है किसी का साथ
यह पेड़ मुझे बुलाते हैं
कहते हैं मुझसे--
यदि मैं बचा रहा
तो पलता रहेगा सदियों तक
मेरी छांव में तुम्हारा प्यार
जो भी आयेगा मेरे करीब
मैं बताऊँगा उसे
सच्चे प्यार की परिभाषा
तुम्हारा मन जब भी हो उदास
मेरे तनों में लगाकर गले
सुन लेना
अपने प्यार की आहट ।
-- वेद प्रकाश तिवारी
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