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बिहार में भ्रष्टाचार एक तरह से संगठित अपराध:-रमेश कुमार चौबे, राष्ट्रीय प्रवक्ता , भारतीय जन क्रांति दल (डेमोक्रेटिक)

 बिहार में भ्रष्टाचार एक तरह से संगठित अपराध का स्वरुप ले लिया है सुशासन साम्राज्य में फलता फूलता भ्रष्टाचार के लिए अगर कोई  जिम्मेवार है तो सिर्फ और सिर्फ नीतीश कुमार:- रमेश कुमार चौबे, राष्ट्रीय प्रवक्ता , भारतीय जन क्रांति दल (डेमोक्रेटिक)
विजय शुक्ल               रमेश कुमार चौबे 

हमारे संवाददाता विजय शुक्ल के साथ रमेश चौबे  की खास बातचीत
आज भारतीय जन क्रांति दल (डेमोक्रेटिक) के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री रमेश कुमार चौबे ने हमारे संवाददाता श्री विजय कुमार शुक्ल से वार्ता क्र उन्हें कहा  कि हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं बिहार की शिक्षा और चिकित्सा को गुणवत्ताहीन और भ्रष्टाचार का भेंट चढ़ाया है सुशासन सरकार ने I चाहे बिहार शिक्षा परियोजना संचालित कार्यक्रम हो चाहे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजनायों का क्रियान्वयन हो I चाहे राज्य स्वास्थ्य समिति द्वारा संचालित योजनायें हों वो कमीशनखोरी के कारण गुणवत्ता हीन हीं नहीं हुई है बल्कि भ्रष्टाचार के कारण कागजी खाना पूर्ति सरीखे कार्यक्रम बनकर रह गई हैं I यह सब सुशासन सरकार की दोहरी नीति का परिचायक है कि एक तरफ भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के बिना किसी लाभुक को बिहार में योजनाओं का लाभ प्राप्त नहीं होता वहीँ दूसरी ओर इस पर पर्दा डालने और जनता की आँखों में धुल झोंकने की नीति के तहत घूसखोर पकड़वाएं और 50 हजार इनाम पाएं का डंका पीट अभियान चलता है I जैसे ऐसा लगता है कि मानों बिहार में भ्रष्टाचारियों पर लगाम लगाने की राज्य सरकार की मंशा बिलकुल स्पष्ट है और यह कामयाब होगी I भ्रष्टाचार करने वाले कोई और नहीं वो भी राज्य के लोकसेवक हैं चाहे वो अधिकारी हों कर्मचारी हों,आदेशपाल हों या मंत्री से लेकर संतरी तक हों I जब भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्य करने वाला भी वहीँ भ्रष्टाचारी सिस्टम है तो ऐसे में भ्रष्टाचार ख़त्म करने की बात हीं अपने आप में कंट्राडिकट्री है I दिखाने के लिए कि भ्रष्टाचार को रोकने में आम जनता की मदद की दरकार है ताकि जनता समझे कि सुशासन की सरकार है और इसके अगुआ नीतीश कुमार की नियत में कोई खोंट नहीं है तो जनता आज इस सरकार को इसके मंसूबों को धीरे धीरे समझ रही है I अगर सरकार इसपर गंभीर होती तो उसे ऐसा करने की नौबत नहीं आती I जहाँ सत्ता और राजनीति अनीति और भ्रष्टाचार के सामंजस्य से चलता हो वहां सुशासन की बात हीं बेमानी है I अगर भ्रष्टाचार और लोकसेवकों के कामचोरी पर अंकुश लगाने की ओर सरकार इतनी हीं गंभीर है तो अधिकार प्राप्त जनता निगरानी समिति क्यों नहीं बनाती और उसे संवैधानिक अधिकार क्यों नहीं देती कि प्रत्येक स्तर पर दस निष्पक्ष नागरिकों को एक वर्ष का कार्यकाल वाली कमिटी बने और भ्रष्टाचार और लोकसेवकों के कामचोरी को पकड़कर यदि दो तिहाई से किसी के विरुद्ध अनुसंशा करे तो तत्काल प्रभाव से उसे नौकरी से बर्खास्त किया जाय तो फिर देखिये इसका असर I बामुश्किल साल भर में पूरी तरह से भ्रष्टाचार और कामचोरी की प्रवृति जड़ से समाप्त हो जायेगा I सरकार बस एक ही कानून बनाये कि भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति चाहे लोकसेवकों द्वारा अर्जित हो चाहे किसी नागरिक द्वारा अर्जित हो वैसी प्रमाणित संपत्ति को पकडवाने वाले को आधी यानि पच्चास प्रतिशत संपत्ति दे दी जायेगी फिर तो भ्रष्टाचार का नामोनीसान मिट जायेगा I तब किसी का भाई और रिश्तेदार भी भ्रष्टाचार से नाजायज संपत्ति अर्जित करना भूल जायेगा क्योकि उसे डर बना रहेगा कि उसकी नाजायज संपत्ति को पकडवाने वाले को आधी मिल जायेगी I बिहार में सुशासन की आड़ में पुरे सूबे में चल रही भ्रष्टाचार की सरकार I चाहे बाढ़ राहत राशि हो ,सुखाड़ राहत राशि हो, कृषि सब्सिडी योजनायें हो,सामाजिक पेंशन हो ,इंदिरा आवास योजना हो, नलजल योजना हो,नरेगा योजना हो एक सिरे से कहा जाय तो सब में कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार समाहित है I,आज सिस्टम में भ्रष्टाचार शरीर के रक्त संचार की भांति घुसमिल गया है I इसलिए इस कुकृत्य और विकृति के उपचार के लिए सख्त नीति की जरुरत है जो आज के दूषित राजनीति से नियंत्रित नहीं होगा बल्कि ईमानदार और सद्चरित्र से हीं नियंत्रित होगा I इसके लिए सुस्पष्ट दंड और न्याय नीति, रामराज नीति व स्वराज नीति जो समाज नियंत्रित दंड विधान सिस्टम से गाईडेड होगा I प्रदेश की ज्वलंत समस्याओं पर तमाशाई बने हुए हैं सुशासन बाबू I आज जहाँ देखिये बाढ़ राहत राशि और शौचालय राशि के भुगतान के नाम पर कमीशनखोरी का धंधा चल रहा है। नल-जल योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, किसान फसल बीमा योजना, स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड व बांधों की मरम्मत में भारी लूट-खसोट व भ्रष्टाचार व्याप्त है, जिससे आम जनता त्रस्त है। यहीं कारण है कि आज प्रशासनिक भ्रष्टाचार के मामले में बिहार अव्वल बना हुआ है I एक शोध में हुए खुलासे के अनुसार भी बिहार भ्रष्टाचार के मामलों में अव्वल राज्यों में शुमार हो चुका है। कभी देश के अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक चुस्त-दुरुस्त प्रशासन देने वाले राज्यों में शुमार रहा अपना बिहार आज नीतीश कुमार के शासनकाल में नौकरशाही लुट की पूरी छुट मिली हुई है और यह छुट सत्ता संरक्षण बल्कि मुख्यमंत्री के वरदहस्त प्राप्त होने के कारण मिली हुई है I दुनिया के तीन सबसे बड़े विश्वविद्यालयों यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के स्कॉलर गुओ जू, मैरिएन बंट्रेंड और रॉबिन बर्गीज के भारत की भ्रष्ट नौकरशाही पर किए गए शोध में यह खुलासा हुआ है कि वैसे तो संपूर्ण भारत की नौकरशाही में भ्रष्टाचार है लेकिन इन मामले में बिहार प्रथम पादान पर है I इसका प्रमुख कारण नौकरशाहों का अपने गृहराज्य में पोस्टिंग पाना है I अन्य प्रदेशों में अपनी सेवाएं देने वाले नौकरशाह अपने गृहराज्य में पोस्टिंग के मुकाबले कम भ्रष्ट हैं I करीब डेढ़ दशक से नीतीश कुमार ने सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ली है और कहते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका जीरो टॉलरेंस रहा है तो ऐसी स्थिति में बिहार में आखिर इनके ही शासनकाल में आरसीपी टैक्स का बोलबाला सुनाई क्यों देता है ? जबकि आरसीपी उनके सबसे अधिक विश्वासपात्र और चहेते हैं I जाहिर है भ्रष्टाचार मुख्यमंत्री के रूट में भी समाहित है लेकिन उनका भ्रष्टाचार समाप्ति के लिए उनका पाखण्ड जारी है I अगर नीतीश कुमार का भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति सचमुच में है तो वे हीं बताये कि अपने डेढ़ दशक के शासनकाल में बिहार में लोकसेवकों के कितनी राशि अब तक जप्त किये हैं I डेढ़ दशक में बामुश्किल से करीब 20 करोड़ की संपत्ति हीं अब तक नीतीश कुमार की सरकार ने जब्त किये हैं I क्या यह आंकड़ा उनकी असफलता का प्रमाण नहीं है I निगरानी विभाग या फिर विशेष निगरानी इकाई या फिर न्यायपालिका में जो भ्रष्टाचार के मामले वर्षों से लंबित हैं उनका स्पीडी ट्रायल नहीं कराने के पीछे नीतीश सरकार की दोहरी नीति हीं परिलक्षित होती है I इनके कार्यकाल में अब तक संपूर्ण घोटाले जो प्रकाश में आये हैं उनमें संलिप्त लोगों की पूरी संपत्तियों को अगर जप्त किया गया होता तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का स्पष्ट मैसेज जाता लेकिन क्या हुआ वहीँ ढांक के तीन पात अर्थात टांय टांयफ़ीस फ़ीस I नीतीश कुमार का भ्रष्टाचार के खिलाफ दोहरी नीति और दोहरे चरित्र का भरपूर फायदा कायदे से दूसरे प्रदेशों के नौकरशाहों ने जमकर उठाया है I जिनको मालदार पदों पर चहेता समझकर उन्होंने हीं बैठाया था I आखिर उनको आज तक फरार हीं क्यों छोड़ा गया I जाहिर है कि वे सब जेल जाते व कोर्ट जाते तो अपनी पीड़ा परेशानियों से अजीज आकर राजनीतिक संरक्षण प्राप्त आकाओं या फिर मुख्यमंत्री का नाम हीं घसीटते I अगर हम पिछले 15 वर्षों के दौरान बिहार में भ्रष्टाचार निरोधी चंद कार्रवाइयों को भी देखें तो भी तस्वीर साफ दिखाई देती है कि बिहार में भ्रष्टाचार की गंगोत्री में कौन कौन गोता लगाया है और कौन किसका चहेता रहा है I भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों में विभागीय कार्रवाई की गति कछुआ चाल की है और लीपापोती की भी रही है I अनुसूचित जाति व जनजाति कल्याण विभाग के तत्कालीन सचिव एसएम राजू मूलरूप से कर्नाटक के रहने वाले हैं। उनपर आरोप है कि उन्होंने अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के छात्र-छात्राओं की छात्रवृत्ति में बड़ा भ्रष्टाचार किया है। राजू समेत विभाग के कई अधिकारियों को इस मामले में अभियुक्त बनाते हुए निगरानी ब्यूरो ने अपनी जांच लगभग पूरी कर ली है लेकिन इतने दिनों के बाद भी सबके सब खुल्ला घूम रहे हैं क्या यह बताने के लिए काफी नहीं है कि नीतीश कुमार का दोहरा चरित्र है । बिहार में एक के बाद एक सामने आ रहे घोटाले और वे सबके सब घोटाले सुशासन सरकार की कलई खोल रहे हैं I अगर आरटीआई आवेदकों को सही सूचनाएं मिलनी शुरू हो जाय तो घोटालों की सूचि बिकराल रूप ले लेती I परन्तु सूचना आयोग में अपने चहेते चमचों को आयुक्त और मुख्य आयुक्त पदों पर बैठाया गया है कि वे वैसी सूचनाओं को निर्गत होने से रोकें I अगर हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज या फिर ईमानदार आरटीआई एक्टिविस्ट को सूचना आयुक्त बनाया गया होता तो बहुत हीं सार्थक परिणाम देखने को मिलता I लेकिन चुकि नीतीश कुमार इसके प्रति संजीदा नहीं हैं इसलिए उन्होंने भ्रष्टों को चाटुकारों को सूचना आयोग में बैठा दिया I
महालेखाकार कार्यालय ने कई दफे जब अपनी रिपोर्टों में बिहार के विभागीय घोटालों और हेरफेर को उजागर किया है तो उनपर अंतिम कार्रवाई अब तक क्यों नहीं हुई I विगत 15 साल में महालेखाकार कार्यालय ने जो जो उजागर किया है उनको बिहार सरकार सार्वजानिक करे और उनपर कृत कार्रवाई का भी लेखाजोखा रखे तो बिहार में नीतीश कुमार के शासनकाल कालखंड के एक एक घोटाले का पर्दाफाश किया जा सकता है और उनके दोहरे चरित्र को समझा जा सकता है कि वास्तव में वे हीं घोटाले संस्कृति के पोषक हैं I महालेखाकार (सीएजी) ने अपने निरीक्षण रिपोर्ट्स में बिहार शहरी आधारभूत संरचना विकास निगम (बुडको) के भ्रष्टाचार को उजागर कर अपनी रिपोर्ट सरकार और लोक लेखा समिति को सौंपी थी । इसमें 13 अरब से अधिक के वित्तीय अनियमितता का मामला सामने आया था लेकिन आज उसका हस्र क्या हुआ I बुडको की स्थापना 2009 में नीतीश कुमार के हीं शासनकाल में हुई थी तब से लेकर जून 2017 के बीच भारी वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कई बार इन गड़बड़ियों पर आपत्तियां उठाई हैं। बावजूद इसके बुडको ने इसका जवाब तक देना उचित नहीं समझा है। इससे साफ़ जाहिर होता है कि नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के खात्मा के प्रति गंभीर कदापि नहीं हैं बल्कि घोटालों का संरक्षण कर रहे हैं I शहरी लोगों को तेजी से विकास करने के सपने दिखाकर नीतीश सरकार ने लगातार घोटाला किया है और घोटालों के रकम का इन्होने बंदरबाट किया है I
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार में बिहार में भ्रष्टाचार का खुला खेल इस कदर जारी है कि सार्वजनिक उपक्रम के संस्थानों में बड़ी बड़ी गड़बड़ियाँ सामने आई हैं I 74 में से सिर्फ 12 निगमों और बोर्डों ने हीं अब तक अपने स्थापना काल से खर्च का ब्यौरा दिया है जबकि प्रत्येक वित्तीय वर्ष में वार्षिक आय व्यय का ऑडिट अनिवार्य होता है I फिर किस बिना पर नीतीश कुमार के शासनकाल में हीं गठित उन 62 बोर्ड व निगमों ने अब तक अपने वार्षिक आय व्यय का लेखा जोखा अपने स्थापना काल से हीं नहीं दिया है I अतः इससे बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि मुख्यमंत्री हीं भ्रष्टाचार और कदाचार के संरक्षक हैं I बिहार की सत्ता में सुशासन की वह सरकार काबिज है जिसके मुखिया नीतीश कुमार हैं जो भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं जबकि पिछले 15 साल में बिहार में हुए भ्रष्टाचार और घोटाले की जद में उनके पार्टी के कई राजनेता और उनके कई चहेता रहे नौकरशाह हैं I बिहार में लोकसेवा के नाम पर निगम और बोर्डों की स्थापना तो कर दी गई, लेकिन इनमें अधिकांश पर सत्ता संरक्षित काबिज लोगों ने साल दर साल नियमों को ताक पर रखकर उसे दूधारू गाय के रूप इस्तेमाल किया है I नीतीश कुमार के अब तक के शासनकाल में राज्य विधायिका से लेकर कार्यपालिका में भी पारदर्शिता का अभाव है और एक दुसरे को बचाने के लिए लीपापोती का खेल जारी है I केंद्र सरकार और बिहार सरकार संपोषित बिजली विभाग की योजनाएं और बिजली विभाग की सरकारी नौकरियों जो स्थाई और संविदा दोनों आधारित हैं किस तरह से भ्रष्टाचार और लुट खसोट है उसको समझा जा सकता है I

बिहार में भ्रष्टाचार एक तरह से संगठित अपराध का स्वरुप ले लिया है I भ्रष्टाचारियों का जमीनी स्तर तक सत्ता संरक्षित सिंडिकेट बन चूका है  I आम जनता का कोई काम बिना रिश्वत के कहीं नहीं हो रहा है I किसी भी ठेकेदार को बिना कमीशन के न तो टेंडर मिलता है और न हीं उनके कराये कार्यों के बनिस्पत उनको उनका भुगतान मिलता है I बिहार में बिना रिश्वत के शायद हीं कोई नियुक्ति पत्र मिलता है यहाँ तक कि पदों पर पोस्टिंग होता है I
           बिहार में ग्रामीण विकास सहित सारी की सारी कल्याणकारी योजनायें भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर आरूढ़ हो गई हैं I बिना रिश्वत की आहुति दिए यह क्रियान्वित नहीं होती हैं I एक वार्ड कमिश्नर को तभी उसके वार्ड में प्रयाप्त फंड मिलता है जब वो कमीशन का परसेंटेज देने का पुख्ता भरोसा दिलाता है और फंडिंग की निकासी के समय उसको निर्धारित निश्चित कमीशन राशि देनी होती है I
           सरकार दावा करती है कि राज्य में सामाजिक सौहार्द एवं सांप्रादायिक सदभाव का वातावरण कायम है जबकि हकीकत यह है कि मिडिया मनेजमेंट के कारण सच्चाई सामने नहीं आता है । गनीमत है कि आजकल सोशल मीडिया पर एक्टिविस्ट एक्टिव हुए हैं तो बहुत कुछ हकीकत सामने आ जा रहा है I यहाँ भ्रष्ट लोकसेवकों को सुशासन सरकार का वरदहस्त प्राप्त है और महज दिखावे के लिए यह प्रचारित किया जाता है कि भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ निरंतर कार्रवाई की जा रही है। प्रशासन के निचले स्तरों पर भ्रष्टाचार की जो गंभीर समस्या बनी हुई है सरकार उसका निदान करना हीं नहीं चाहती है I
             बिहार लोक सेवाओं का अधिकार कानून के अंतर्गत करोड़ों आवेदन पेंडिंग पड़ा रहता है ऐसे कानून दिखावे के हांथी दांत की तरह है I लोक शिकायत निवारण कानून के अंतर्गत भी करोड़ों आवेदन बिना न्याय के लीपापोती कर समाप्त होते रहे हैं I प्रथम अपील से द्वितीय अपील का घनचक्कर लगा रहता है और परेशानी घटने की बजाय बढ़ हीं रहा है I लोक शिकायत निवारण कानून के अंतर्गत उन्हीं भ्रष्टाचारी, निकम्मे लोक सेवकों और कामचोर कर्मचारियों को लगाया गया है जो जनता की समस्याओं के निदान के बजाय लोक सेवकों के कुकर्मों को हीं प्रश्रय देते हैं I एक दो कुछ प्रतिशत अपवाद में शिकायतों का निवारण अलग बात है लेकिन अनेकानेक गंभीर मामलों में बहुत बुरा हाल है और यह भी भ्रष्टाचार का भेंट चढ़ गया है I सूचना का अधिकार कानून नीतीश सरकार में एक तरह से कुंद की गई है और भ्रष्टाचार से संबंधित सूचनाएं मिलती हीं नहीं है I स्थिति यह है कि कई सूचना अधिकार कार्यकार्ताओं की हत्याएं कर दी जाती है I
             मुख्यमंत्री का लोक संवाद कार्यक्रम तो एक तरह से वैसे हीं फ्लॉप शो हो गया है जैसे जनता दरबार में शिकायत कर्ताओं के आते आते पैर के जुत्ते घिस जाया करते थे फिर भी कोई निदान नहीं होता था I जिनका शिकायत वहीँ निदान कर्ता बनाने की वहीँ पुरानी परिपाटी से उनके इस बल को प्राथमिकता मिलता है कि कितना भी जाओ शिकायत करने कुछ नहीं होगा बल्कि शिकायत आवेदन उसी के पास आएगा और तब अधिक मूल्य चुकाकर काम करवाना होगा I ऐसी स्थिति में तो भ्रष्टाचार को जनता आत्मसात करना ही मुनासिब समझती है कि बेकार का समय नष्ट करने से भला भ्रष्टाचार को जीवन में स्वाकार कर अपना काम निकालने में ही अक्लमंदी है I मुख्यमंत्री खाली जनता दरबार ,लोक संवाद या फिर अपने भ्रमण कार्यक्रमों में बड़े लावलस्कर के साथ घूमकर इन माध्यमों से लोगों के महत्वपूर्ण सुझाव आमंत्रित तो करने में माहिर हैं लेकिन जनता को समस्याओं से निजात दिलाने में डपोरशंखी प्रवृति के हैं I
          राज्य सरकार अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों का संवर्द्धन नेक नियति से शायद हीं करती दिखाई दे रही है I इसी कारण तो अब तक राज्य सरकार में सुशासन एवं न्याय के साथ विकास के सिद्धांत को गति नहीं मिला है I परिणामस्वरूप सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार में उल्लेखनीय प्रगति हो गई है I विकास और कल्याण का पथ भ्रष्टाचार के कारण संक्रीण हो गया है जिसके कारण गति मंद पद गया है I बिहार में नीतीश कुमार के अब तक के संपूर्ण शासनकाल में क्षेत्रीय,जातीय,वर्गीय और भाषाई भेदभाव हुआ है I नीतीश सरकार सभी वर्गों जातियों धर्मों को इमानदारी और संवेदनशीलता के साथ लेकर चलने के लिए दिल से संकल्पित हुई हीं नहीं है ।
            राज्य में विकास की रणनीति छद्म समावेशीछद्म न्यायोचित और छद्म सतत है जिसके कारण अपेक्षित आर्थिक प्रगति नहीं हुआ है I इसी कारण अब तक बिहार विकसित राज्यों की श्रेणी में नहीं आ सका है I बिहार में नीतीश नेतृत्व सरकार की सुशासन के कार्यक्रम  एक तरह से ढ़कोसला है I 'सात निश्चययोजना के सही क्रियान्वयन के अभाव में कृषि रोडमैपशिक्षास्वास्थ्य तथा अन्य विभागों की योजनाओं भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गई है I संस्थागत व्यवस्था को जैसे घुन लग गया है कामचोरी की प्रवृति वाला कल्चर हावी हो गया है
बिहार में भ्रष्टाचार और बिहार में अपराध यह एक दूसरे का पूरक है I बिहार में बहार है क्योंकि यहाँ पर पूर्णरूपेण सत्ता संरक्षित भ्रष्टाचार है यह मिथ आज भी तथ्यों की कसौटी पर संपुष्ट है I नीतीश कुमार के शासनकाल के अनेकानेक भ्रष्टाचार को जब भारत के प्रधानमन्त्री ने एक एक कर गिनाया हो इससे बड़ी सच्चाई और क्या हो सकती है I इससे बड़ा आरोप और क्या हो सकता है कि एक प्रधानमन्त्री ने सार्वजनिक रूप से सुशासन सरकार के भ्रष्टाचार के नमूनों को नाम लेकर गिनाया जिसको देश दुनिया और बिहार के लोगों ने देखा सूना I

भ्रष्टाचार के खिलाफ तथाकथित जीरो टालरेंस की नीति पर बिहार सरकार कदापि नहीं चली है I बल्कि सुशासन सरकार में भ्रष्टाचार का जड़ रातदिन गहरा और मजबूत होता गया है I लेकिन इन पर से ध्यान हटाने के लिए यहाँ एक राजनीतिक जुमलेबाजी होती है कि यहाँ भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस है I सरकार की यह नीति महज एक छलावा के अलावा कुछ भी नहीं है I बिहार में न हीं अब तक कानून का राज स्थापित हुआ है और ना हीं सरकार की प्राथमिकता सूचि में यह कभी मिशन मोड के रूप में रहा है I हाँ दिखावे के लिए मीडिया के जरिये देश दुनिया या फिर यहाँ की भोलेभाली जनता से भावनात्मक सहानुभूति लेते रहने का यह नीतीश सरकार का कुटिल सकुनी चाल है I
दिखावे के लिए तो नीतीश कुमार जोर जोर से उसी भांति चिल्लाते हैं जैसे चोर मचाये शोर I दावे के साथ यह यहाँ कहा जा सकता है कि न तो यहाँ कहीं कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति है और न हीं इसको ख़त्म करने के लिए सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है I सरकार भ्रष्टाचार के पोषक, संरक्षक और खुद भ्रष्टाचारी प्रवृति के नौकरशाहों की मंडली संस्कृति विकसित कर प्रमुख पदों पर उन्हें लम्बे समय से बनाये हुए है I बिहार सरकार में कुछ ऐसे हीं चुनिंदा नौकरशाह हैं जिनके बारे में बिहार की मिडिया और यहाँ तक कि प्रबुद्ध जन भी जान गए हैं कि नीतीश कुमार सरकार का तानाबाना इन्हीं चंद चुनिंदा नौकरशाहों के हेरफेर और गोरखधंधे पर टिकी है क्योकि इन्हीं के द्वारा सत्ताधारी दल को चुनावी फंडिंग इकठ्ठा किया जाता रहा है I
बिहार में कानून का राज भी नहीं है क्योकि पुलिस विभाग में ट्रांसफर पोस्टिंग सत्ताधारी पक्ष के राजनीतिक हस्तक्षेप और ट्रांसफर पोस्टिंग कमीशनखोरी उद्योग जो कार्मिक प्रसासनिक और गृह विभाग के झालमेल से होता है के रहमो करम पर नियंत्रित होता है I यहाँ के मुख्यमंत्री स्वयं अपने पास गृहमंत्रालय भी रखते हैं इसलिए सब झालमेल उनसे गाईडेड होता है I बिहार में गृह सचिव सहित गृहमंत्रालय के मंत्री के शागिर्द चहेते जो लम्बे समय से एक ही पद पर आसीन हैं बल्कि मालदार पदों पर अतिरिक्त प्रभार में भी रहते रहे हैं जिस पदों पर भ्रष्टाचार के गुंजाईश है वैसे से कैसे कानून व्यवस्था कंट्रोल होगा I बिहार में पूर्व नौकरशाह अफजल अम्मानुल्ला कई वर्षों तक लगातार गृहसचिव रहे I उनके बाद आमीर सुब्बानी लम्बे समय से गृहसचिव के पद पर लगातार आसीन हैं I उसी तरह पुलिस प्रमुख के पदों पर पूर्व डीजीपी अभयानंद और उनके बाद अब गुप्तेश्वर पाण्डेय को छोड़कर बीच में जो बने हैं बिलकुल निष्क्रिय बेजान या फिर सरकार के रब्बर स्टाम्प नेचर के रहे हैं जिन्होंने किसी तरह अपना कार्यकाल पूरा किया और खूब कमाया I यहाँ तक कि रिटायर्मेंट के बाद भी सेवकाई का रस मलाई लगातार खा रहे हैं I बिहार में पुलिस प्रमुख अगर किसी को बनाया भी गया है तो पुलिस डिपार्टमेंट पर अप्रत्यक्ष कंट्रोलिंग मुख्यमंत्री के खासमखास लोगों का रहा है जिनकी चर्चा बिहार में उनके निकनेम से होता रहा है I सुशासन सरकार में ट्रांसफर पोस्टिंग उद्योग के असर के कारण काबिल पुलिस अधिकारीयों और पुलिस कर्मियों को संटिंग पोस्ट पर बल्कि उन्हें हंसियें पर रखा जाता है I
बिहार में संगठित अपराध बिना सत्तारूढ़ दल के छाया में बिना इनके वरदहस्त प्राप्ति के पनप और फलफूल भी नहीं सकता है I इसलिए जाहिर है बिहार में सत्ता संरक्षित संगठित अपराधिक गिरोह है जो पुलिस कप्तानों के नियंत्रण के अधिकार क्षेत्र से बाहर है I इन संगठित गिरोहों से सत्ता अपने विरोधियों पर सदा के लिए अंकुश लगाता है और बदले में उन्हें संपोषित संरक्षित करता है I बदले में ये सत्ताधीशों को चुनाव में अपना बाहुबल से सहयोग करते हैं यहाँ तक कि चुनाव जिताने की गारंटी देते हैं I यहाँ सत्ता संरक्षित, सत्ता संपोषित, भेदभाव के कानूनी प्रावधानों का भी पुर्णतः अनुसरण होता है I बल्कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से होता है वैसी स्थिति में यहाँ पूर्ण अपराध नियंत्रण की बात करना हीं दिवास्वप्न दिखाने जैसा है I

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