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दुखिया का दुख

दुखिया का दुख


बस्ती का दुखिया दिहाड़ीदार मजदूर है,
आर्थिक तौर पर  वो  लाचार  मजबूर है,

उसकी  पत्नी  जो  सालों  से  बीमार है,
ऊपर  से रूढ़िवादी रिवाजों की  मार है,

उसके घर उसकी एक बेटी कमसिन है,
गरीब  की  बेटी  है , लेकिन  हसीन  है,

रईसजादों  की  भी  उस  पर  नजर  है,
उसके माता-पिता जी  को पूरा  डर  है,

दुखिया की पत्नी डाक्टर के  पास  गई,
खङी घर आगे महंगी लग्जरी  कार हुई,

दुखिया  की  बेटी  की  चीख-पुकार थी,
सदा की तरह मूकदर्शक भीड़अपार थी,

कुछ देर बाद पुलिस की भी गाङी आई,
मिडिया  कर्मियों  ने  भी  गश्त   लगाई,

नेताजी  भी  जांच का आश्वासन दे गए,
गरीब  एक  नया  दर्द  दिल  पर खे गए,

सबूताभाव  में  सब  आरोपी  हुए  बरी,
दुखिया  के  दिल  में  पीड़ा  रही  खङी,

पीङिता  हालात  के  फंदे  पर झूल गई,
सिल्ला ये  बस्ती फिर सबकुछ भूल गई,

-विनोद सिल्ला
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