अवकाश प्राप्त अध्यापक
सी 5/10 यमुनाविहार दिल्ली
शनि से प्रभावित
व्यक्ति कई प्रकार के अनावश्यक परेशानियों से घिरे हुए रहते हैं। कार्य में बाधाओं
का होना, कोई भी कार्य आसानी से न बनना जैसी स्थितियों का
सामना करना पड़ता है। इस समस्या को कम करने हेतु शनिवार के दिन शनि से संबंधित
वस्तुओं का दान करना उत्तम रहता है। जिन लोगों की जन्म कुंडली में शनि का कुप्रभाव
हो उन्हें शनि के पैरों की तरफ ही देखना चाहिए, जहां तक हो
सके शनि प्रभु की द्रष्टि दर्शन से बचना चाहिए।
शनि से घबराने की आवश्यकता नहीं है बल्कि शनि को अनुकूल कर कार्य
सिद्ध करने के लिए विधिपूर्वक मंत्र जाप एवं अनुष्ठान जरूरी होते हैं।
वस्तुतः पूर्व कृत कर्मों का फल यदि आराधना के द्वारा शांत किया जा
सकता है, तो इसके लिए साधकों को पूरी तन्मयता से साधना और
आराधना करनी चाहिए। इस दिन शनि मंदिरों एवं हनुमान के मंदिरों में शनि जयन्ती को
पूरी निष्ठा के साथ विशेष अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं।नवग्रहों में शनिदेव का
स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ।
शास्त्रों में शनिदेव को सूर्य का पुत्र माना गया है । इनकी माता
का नाम छाया है । सूर्य की पत्नी छाया के पुत्र होने के कारण इनका रंग काला है ।
मनु और यमराज शनि के भाई हैं तथा यमुनाजी इनकी बहन हैं । शनिदेव का शरीर
इंद्रनीलमणि के समान है । इनका रंग श्यामवर्ण माना जाता है। शनि के मस्तक पर
स्वर्णमुकुट शोभित रहता है एवं वे नीले वस्त्र धारण किए रहते हैं । शनिदेव का वाहन
कौआं है । शनि की चार भुजाएं हैं ।
इनके एक हाथ में धनुष, एक
हाथ में बाण, एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में वरमुद्रा
सुशोभित है। शनिदेव का तेज करोड़ों सूर्य के समान बताया गया है। शनिदेव न्याय,
श्रम व प्रजा के देवता हैं । यदि किसी व्यक्ति के कर्म पवित्र हैं
तो शनि सुखी- समृद्धि जीवन प्रदान करते हैं ।
गरीब और असहाय लोगों पर शनि की विशेष कृपा रहती है । जो लोग गरीबों
को परेशान करते हैं, उन्हें शनि के कोप का सामना करना पड़ता है ।
सूर्यपुत्र शनि को न्यायाधीश का पद प्राप्त है । इस वजह से शनि ही हमारे कर्मों का
शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं ।
जिस व्यक्ति के जैसे कर्म होते हैं, ठीक वैसे ही फल शनि प्रदान करते हैं । शनिदेव सूर्य पुत्र हैं और वे अपने
पिता सूर्य को शत्रु भी मानते हैं। शनि देव का रंग काला है और उन्हें नीले तथा
काले वस्त्र आदि विशेष प्रिय हैं। ज्योतिष में शनि देव को न्यायाधीश बताया गया है।
व्यक्ति के सभी कर्मों के अच्छे-बुरे फल शनि महाराज ही प्रदान करते हैं। साढ़ेसाती
और ढय्या के समय में शनि व्यक्ति को उसके कर्मों का फल प्रदान करते हैं।
अमावस्या को मंदिरों में प्रातः सूर्योदय से पूर्व पीपल के वृक्ष
को जल चढ़ाना तथा दिन में शनि महाराज की मूर्ति पर तैलाभिषेक एवं यज्ञ अनुष्ठानों
के द्वारा हवनात्मक ग्रह शांति यज्ञ करने से मनुष्य को अपने पाप कर्मों से छुटकारा
प्राप्त होता है। किसी ने सच ही कहा है कि शनि जाते हुए अच्छा लगता है न कि आते
हुए। शनि जिनकी पत्रिका में जन्म के समय मंगल की राशि वृश्चिक में हो या फिर नीच
मंगल की राशि मेष में हो तब शनि का कुप्रभाव अधिक देखने को मिलता है।
अन्य राशियां सिर्फ सूर्य की राशि सिंह को छोड़ शनि की मित्र,
उच्च व सम होती हैं। शनि-शुक्र की राशि तुला में उच्च का होता है।
शनि का फल स्थान भेद से अलग-अलग शुभ ही पड़ता है। सम में न तो अच्छा न ही बुरा फल
देता है। मित्र की राशि में शनि मित्रवत प्रभाव देता है।
शत्रु राशि में शनि का प्रभाव भी शत्रुवत ही रहता है,
जो सूर्य की राशि सिंह में होता है।ज्योतिष में शनि देव को
न्यायाधीश बताया गया है। व्यक्ति के सभी कर्मों के अच्छे-बुरे फल शनि महाराज ही
प्रदान करते हैं। साढ़ेसाती और ढय्या के समय में शनि व्यक्ति को उसके कर्मों का फल
प्रदान करते हैं।
जनसामान्य में फैली मान्यता के अनुसार नवग्रह परिवार में सूर्य
राजा व शनिदेव भृत्य हैं लेकिन महर्षि कश्यप ने शनि स्तोत्र के एक मंत्र में सूर्य
पुत्र शनिदेव को महाबली और ग्रहों का राजा कहा है- ‘सौरिग्रहराजो महाबलः।’ प्राचीन ग्रंथों के अनुसार
शनिदेव ने शिव भगवान की भक्ति व तपस्या से नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त
किया है।
एक समय सूर्यदेव जब गर्भाधान के लिए अपनी पत्नी छाया के समीप गए तो
छाया ने सूर्य के प्रचंड तेज से भयभीत होकर अपनी आंखें बंद कर ली थीं। कालांतर में
छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। शनि के श्याम वर्ण (काले रंग) को देखकर सूर्य
ने अपनी पत्नी छाया पर यह आरोप लगाया कि शनि मेरा पुत्र नहीं है तभी से शनि अपने
पिता सूर्य से शत्रुता रखते हैं।
शनिदेव ने अनेक वर्षों तक भूखे-प्यासे रहकर शिव आराधना की तथा घोर
तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया था, तब
शनिदेव की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने शनिदेव से वरदान मांगने को कहा।
शनिदेव ने प्रार्थना की- युगों-युगों से मेरी मां छाया की पराजय
होती रही है, उसे मेरे पिता सूर्य द्वारा बहुत अपमानित व
प्रताड़ित किया गया है इसलिए मेरी माता की इच्छा है कि मैं (शनिदेव) अपने पिता से
भी ज्यादा शक्तिशाली व पूज्य बनूं।तब भगवान शिवजी ने उन्हें वरदान देते हुए कहा कि
नवग्रहों में तुम्हारा स्थान सर्वश्रेष्ठ रहेगा। तुम पृथ्वीलोक के न्यायाधीश व
दंडाधिकारी रहोगे। साधारण मानव तो क्या- देवता, असुर,
सिद्ध, विद्याधर और नाग भी तुम्हारे नाम से
भयभीत रहेंगे। ग्रंथों के अनुसार शनिदेव कश्यप गोत्रीय हैं तथा सौराष्ट्र उनका
जन्मस्थल माना जाता है।
शनैश्चर की शरीर-कान्ति इंद्रनीलमणि के समान है।
इनके सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। शनि गिद्ध पर सवार रहते हैं। ये हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते हैं।
इनके सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। शनि गिद्ध पर सवार रहते हैं। ये हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते हैं।
शनि के क्रूर होने के कारण???????
शनि की दृष्टि में जो क्रूरता है, वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्मपुराण के अनुसार बचपन से ही शनि
देवता भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। वे श्रीकृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा
करते थे। वयस्क होने पर इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया।
इनकी पत्नी सती-साध्वी और परम तेजस्विनी थी।
एक रात वे ऋतु-स्नान करके पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास
पहुँचीं, पर ये श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। इन्हें
बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी।पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उसका ऋतुकाल निष्फल
हो गया। इसलिए उसने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख
लोगे, वह नष्ट हो जाएगा।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com