बुद्ध-जयन्ती
पर विशेष --
बुद्ध पूर्णिमा - बौद्ध-सनातन धर्म समन्वय।
- योगेन्द्र
प्रसाद मिश्र (जे. पी. मिश्र)
आज बैशाख पूर्णिमा है। इसे
बुद्ध पूर्णिमा प्रमुख रूप से कहा जाता है। इसी दिन महात्मा बुद्ध का सिद्धार्थ के
रूप में लुंबनी (नेपाल) में, इच्छवाकु-वंश
के शाक्य राजा शुद्धोधन और रानी महामाया के पुत्र के रूप में ईशा के 563 वर्ष पूर्व जन्म हुआ। सात दिन के बाद उनके माता की मृत्यु
हो गई और फिर उन्हें विमाता गौतमी ने
पाला। युवा होने पर यशोधरा से विवाह भी हुआ। कहा गया -
'निब्बुता नून
सा माता निब्बुतो नून सो पिता। निब्बुता नून सा नारी यस्सायमीदिसो पति॥('अवश्य ही परम शान्त है
वह माता, परम शान्त है
वह पिता, परम शान्त है वह नारी जिसका ऐसा पति हो।')
उन्हें एक पुत्र - राहुल भी हुआ; पर,
सबको सोता छोड़कर सिद्धार्थ ने ज्ञान की खोज में छोड़ दिया।
बिद में
वे गौतम बुद्ध भी कहलाये।
इसी पूर्णिमा तिथि को
उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया और बुद्ध रूप में जाने जाने लगे।
किसी महात्मा के जीवन में
ऐसा संयोग विरले ही मिलता है।
ज्ञान-प्राप्ति के बाद जो
बातें महात्म बुद्ध ने उपदेश के रूप में कहीं, वे ही बुद्ध धर्म में आई हैं।
गौतम बुद्ध को गया के एक उपनगर
बोधगया में एक पीपल पेड़़ के नीचे ज्ञान प्रप्त हुउआ था। उसके पहले वे पास की ही
निरंजना नदी के किनारे निराहार रहकर घोर
तपस्या कर रहे थे।
'सिद्धार्थ ने पहले तो केवल तिल-चावल खाकर तपस्या शुरू
की,
बाद में कोई भी आहार लेना बंद कर दिया। शरीर सूखकर काँटा हो
गया। छः साल बीत गए तपस्या करते हुए। सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई। एक दिन
कुछ स्त्रियाँ किसी नगर से लौटती हुई वहाँ से निकलीं, जहाँ सिद्धार्थ तपस्या कर रहे थे। उनका एक गीत सिद्धार्थ के
कान में पड़ा- ‘वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दो। ढीला छोड़ देने से उनका
सुरीला स्वर नहीं निकलेगा। पर तारों को इतना कसो भी मत कि वे टूट जाएँ।’ बात सिद्धार्थ को जँच गई। वह मान गये कि नियमित आहार-विहार
से ही योग सिद्ध होता है। अति किसी बात की अच्छी नहीं। किसी भी
प्राप्ति के लिए
मध्यम मार्ग ही ठीक होता है और इसके लिए कठोर तपस्या करनी पड़ती है।
ज्ञान की प्राप्ति
बुद्ध के प्रथम गुरु आलार
कलाम थे,
जिनसे उन्होंनेे संन्यास काल में शिक्षा प्राप्त की । 35 वर्ष की आयु में वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ पीपल
वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थे। बुद्ध ने बोधगया में निरंजना नदी के तट पर कठोर तपस्या
की तथा सुजाता नामक लड़की के हाथों खीर खाकर उपवास तोड़ा। समीपवर्ती गाँव की एक
स्त्री-सुजाता को पुत्र हुआ था। वह बेटे के लिए एक पीपल वृक्ष से मन्नत
पूरी करने के लिए सोने की थाल में गाय के दूध की खीर भरकर पहुँची। सिद्धार्थ वहाँ
बैठे ध्यान कर रहे थे। उसे लगा कि वृक्षदेवता ही मानो पूजा लेने के लिए शरीर धरकर
बैठे हैं। सुजाता ने बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा- ‘जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी हो।’
उसी रात को ध्यान लगाने पर
सिद्धार्थ की साधना सफल हुई। उन्हें सच्चा बोध हुआ। तभी से सिद्धार्थ गौतम 'बुद्ध' कहलाए।
जिस पीपल वृक्ष
के नीचे सिद्धार्थ को बोध मिला वह बोधिवृक्ष कहलाया और गया का समीपवर्ती वह स्थान बोधगया।
मुझे गया में, जो विष्णुपद मंदिर के लिए तथा मृतात्माओं के पिण्डदान के लिए विख्यात है, चार वर्ष तक बैंक-सेवा करने का अवसर मिला था, जिस अवधि में मुझे बोधगया जाने का भी अवसर मिलता था। आज
बोधगया (और बगल का राजगीर तथा नालन्दा विश्वविद्यालय,) अंतर्राष्ट्रिय ख्याति का हो गया है, पर जो निर्जन वन ईशा के लगभग 528 वर्ष पहले भी एक विश्व-प्रसिद्ध धर्म-बौद्धधर्म का
जन्मदाता बना,
वह बोधगया ही था।
यह बोधगया,
बिहार और आर्यावर्त के लिए भी गौरव की बात है।
पाटलिपुत्र के सम्राट्
प्रियदर्शी अशोक ने बौद्ध धर्म को राजकीय संरक्षण दिया और अपनी पुत्री संघमित्रा
तथा पुत्र महेन्द्र के हाथ उसी पीपल वृक्ष की टहनी भेजकर श्रीलंका, जावा, सुमात्रा आदि
द्वीपों में बौद्ध धर्म का प्रचार करवाया।
आज स्थिति यह है कि -
1. श्रीलंकाई इस दिन को 'वेसाक'
उत्सव के रूप में मनाते हैं जो 'वैशाख' शब्द का
अपभ्रंश है।
2. इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों
को सजाया जाता है।
3. दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और
प्रार्थनाएं करते हैं।
4. बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है।
5. मंदिरों व घरों में अगरबत्ती जलाई जाती है। मूर्ति पर
फल-फूल चढ़ाए जाते हैं और दीपक जलाकर पूजा की जाती है।
6. बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन
पताकाएँ सजाई जाती हैं। जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है। वृक्ष के आसपास
दीपक जलाए जाते हैं।
7. इस दिन मांसाहार का परहेज होता है क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा
के विरोधी थे।
8. इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है।
9. पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता
है।
10. गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं।
11. दिल्ली संग्रहालय इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर निकालता
है जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहां आकर प्रार्थना कर सकें।
दुनिया के विभिन्न हिस्सों
में बुधवार को बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कई आयोजन हुए. भारत से लेकर श्रीलंका, थाईलैंड से लेकर इंडोनेशिया और नेपाल तक.
काठमांडू में गौतम बुद्ध की 2558वीं जयंती पर स्वंयभूनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं ने पूजा
अर्चना की।
हर साल मई के महीने में
बुद्ध के जन्म,
ज्ञान प्राप्ति और निर्वाण की स्मृति में बुद्ध पूर्णिमा
हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।
श्रीलंका की सवा दो करोड़
की आबादी में बौद्धों की संख्या 70 फ़ीसदी से भी
ज़्यादा है. इसलिए वहां बुद्ध पूर्णिमा पर बड़े-बड़े आयोजन होते हैं।
उधर भारत के कोलकाता में
भी श्रद्धालुओं ने इस अवसर पर बुद्ध की प्रतिमाओं के सामने शीश नबाया।
बौद्ध धर्म का उदय भारत
में हुआ,
लेकिन देश की सवा अरब की आबादी में बौद्ध धर्म के
अनुयायियों की संख्या एक से डेढ़ प्रतिशत ही मानी जाती है.
दुनिया में मुख्य तौर पर
बौद्ध धर्म को मानने वाले देशों में श्रीलंका, म्यांमार,
थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, चीन और
मंगोलिया शामिल हैं।
मुख्य तौर पर इस्लामी देश
माने जाने वाले इंडोनेशिया में भी कुछ लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं. वहां भी बुद्ध
पूर्णिमा को मनाया गया।
कई लोग इस मौके पर बौद्ध
भिक्षुओं को दान भी देते हैं. इंडोनेशिया के सेंट्रल जावा द्वीप के मागेलांग में
ऐसा किया गया।
थाईलैंड में बुद्ध
पूर्णिमा को विसाक दिवस कहा जाता है और इसे मंगलवार को मनाया गया.
'महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया।
श्रावस्ती कोशल की राजधानी में बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश दिए थे .यहाँ पर उन्होंने 21 विश्राम स्थलों पर प्रवास किया था ।
मनुष्यों की अँगुलियों को
काटकर माला पहनने वाले कुख्यात डाकू अंगुलीमाल को श्रावस्ती में ही भगवान् बुद्ध
ने बौद्ध धर्म में दीक्षा दी थी ।
483 ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में,
देवरिया जिले के कुशीनगर में उन्होंने निर्वाण प्राप्त
किया।
महात्मा बुद्ध की शिक्षा -
भगवान् बुद्ध ने पाली भाषा
में अहिंसा,
सत्य, करुणा आदि की
शिक्षा दी. बुद्ध ने निर्वाण की प्राप्ति एवं दुखों से मुक्ति पाने के लिए अत्यंत
सरल एवं सहज मार्ग को प्रतिपादित किया, जिसे अष्टांगिक या मध्यम मार्ग कहते हैं जिनमें प्रमुख है -
1.
सम्यक दृष्टि
2.
सम्यक संकल्प
3.
सम्यक वाणी
4.
सम्यक कर्म
5.
सम्यक आजीव
6.
सम्यक व्यायाम
7.
सम्यक स्मृति
8.
सम्यक समाधि
बौद्ध धर्म का प्रचार -
भगवान् बुद्ध के अनुसार
मध्यम मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जिसमें अत्यधिक विलासिता या अत्यधिक तप दोनों ही
नहीं होने चाहिए . बौद्ध धर्म का विकास बहुत तीर्व गति से हुआ .इसके उद्भव से लेकर
12 वीं शताब्दी तक यह धर्म अन्तराष्ट्रीय धर्म बन गया .
तिब्बत,
चीन,
जापान, मध्य एशिया
में इसका व्यापक प्रचार हुआ। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद भी अशोक और कनिष्क
जैसे शासकों ने बौद्ध धर्म के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । हमें अपने जीवन में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं
को स्थान देना चाहिए . जीवन में सत्य ,अहिंसा ,करुणा आदि को महत्व देना चाहिए ! '
बुद्ध धर्म का अत्यधिक
प्रसार हो जाने से सनातन धर्मावलम्बियों ने अपने धर्म के क्षीण होते जाने की बात
देखी। वैसे गौतम बुद्ध का जन्म तो सनातन धर्म में ही हुआ था, अत: गौतम बुद्ध को उन्होंने विष्णु का नौवाँ अवतार मानकर
भगवान मान लिया और इस तरह सह - अस्तित्व की भावना लेकर वे भी आगे बढ़ते रहे।
महात्मा बुद्ध को महापुरुष
के रूप में भारतीय संविधान ने भी अपनाया है।
गौतम बुद्ध, अकबर से लेकर रानी लक्ष्मी बाई और महाराणा प्रताप तक की झलक
हमारे संविधान में मिलती है।
भारतीय संविधान के भाग
पांच की शुरुआत में गौतम बुद्ध की वह तस्वीर है, जिसमें उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इस अध्याय का शीर्षक 'संघ' है।
संविधान के जनक कहे
जानेवाले बाबा भीमराव अंबेदकर ने भी लगभग 10 लाख दलितों को साथ लेकर बौद्ध धर्म अपना लिया था।
आयें हम भी बौद्धधर्म के
बताये मध्यम मार्ग पर चलकर जन-कल्याण अपनाएं और बुद्ध जैसे करुणा मूर्ति के
आशीर्वाद तले बीमारी कोरोना को दूर भगायें!
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योगेन्द्र प्रसाद मिश्र
(जे. पी. मिश्र),
अर्थमंत्री-सह-कार्यक्रम
संयोजक,
बिहार-हिन्दी -साहित्य-सम्मेलन, पटना 800003.
निवास: मीनालय,
केसरीनगर, पटना 800024.दिव्य रश्मि समाज का दर्पण
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