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सुगनी का बेटा

सुगनी का बेटा।(लघु कथा)

तेगा सोना के साथ गाँव आया।नई चमचमाती हुई गाडी दरवाजे लगी।गाँव में लहक फैला।बच्चे दौडने लगे गाडी देखने के लिए।गाडी को दरवाजे देखकर सुकन बस देखते रहा।उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।वह भाव शुन्य युँही बैठा रहा।तेगा झपटकर पाँवो में लोट गया।सुकन बस टुकुर-टुकुर देखते रहा।सुगनी तो आँगन से ही निहार रही थी।
        हिम्मत बटोर कर सुकन पुछा---के बाबु।ई का करईत ह।तु जरूर भटक गेल हे।का नाम हव।बेचारा तेगा सुनकर कलपने लगा।अपने बाप को पकडकर रोने लगा।वह बार-बार अपने भाग्य को कोस रहा था,कि हे!भगवान ये कैसा दिन है की आज बाप भी बेटा को नहीं पहचान रहा है।वह भरे गले से बोला....बाबुजी हम तेगा।आपका बेटा।आप हमें पहचान भी नहीं पाये।और बस रोते रहा।सुगनी सुनकर बाहर आई और अपनी ममता को आँचल में छिपाकर रोने लगी।
         वैसे तो रोते हुए हम सब को देखे।हमेशा देखते हैं पर खुशी की रूलाई शादी के बाद पहली बार देख रहा हुँ।जो भी था सब के सब बस रोने लगे।मिलने की खुशी कुछ ऐसी हीं होती है।सुकन-सुगनी और तेगा को देखकर आज सब खुशी-खुशी आंसू बहा लिये।गाँव में बात जंगली आग की तरह फैल गई-- तेगा आया है।आज तेगा आया है।
         इस पारिवारिक मिलन दृश्य को देखकर गाडी में बैठी-बैठी सोना भी आँसू बहा रही थी।वह तो कभी ऐसी स्थति देखी नहीं थी।पर मानवीय संवेदना से वह भी रिक्त नहीं थी।माँ का हाथ पकडे तेगा गाडी की ओर बढा।बेचारी सुगनी तो बस खींची चली जा रही थी।नजदीक जाकर वह देखती क्या है?बस देखती रह गई मुँह बाये।बिल्कुल किंकर्तव्यविमूढ़ की तरह।जब कुछ चेत हुआ तो तेगा से मचलकर पुछी....अरे ये कउन रे?तेगा ने कहा..तेरी बहु।वह तो आँखे फाड दी।बोली...बहु?नहीं रे तेगा काहे मजाक करता है बाबु।तबतक सोना गाडी से उतरकर सास को पाँव लगी की।सुगनी उसे अकवार मे लेकर रोने लगी।
       परंपरा में ऐसी किसी नई नवेली का स्वागत नहीं देखा और न सुना।आज पहली बार देखा सुना।सुगनी अपनी बहु को लेकर घर में गई।बहु घर को बडी अचरज से निहार रही थी।और इधर बेचारी सुगनी बस सकुचा रही थी।सोना इस बात को समझ गई...हमारी सासु माँ घबरा रही है।वह बोली--माँ जी! चिंता न करें।अब बस ठीक हो जायेगा।हम आ गये है।अब किसी तरह की चिंता नहीं करनी है।
                  
         ----:भारतका एक ब्राह्मण.
            संजय कुमार मिश्र"अणु"
           वलिदाद,अरवल(बिहार)
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