Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

हैजा का इलाज किसने ढूंढा

 हैजा का इलाज किसने ढूंढा 

हमारे संवाददाता नीरज पाठक का संकलन 
क्या आपको पता है उन्नीसवीं सदी में करोड़ो को ग्रसने वाली हैजा का इलाज किसने ढूंढा ??? नहीं न !!!

आइए उस गुमनाम नायक के बारे में जानते हैं।

"सन 1817" 1817 में विश्व में एक नई बीमारी ने दस्तक दी।  नाम था "ब्लू डेथ"  ब्लू डेथ यानि "कॉलेरा" जिसे हिंदुस्तान में एक नया नाम दिया गया........"हैजा"।

हैजा विश्व भर में मौत का तांडव करने लगा और इसकी चपेट में आकर कर उस समय लगभग 1,80,00,000(एक करोड़ अस्सी लाख) लोगों की मौत हो गयी। दुनिया भर के वैज्ञानिक हैजा का ईलाज खोजने में जुट गये।
"सन 1844" रॉबर्ट कॉख नामक वैज्ञानिक ने उस जीवाणु का पता लगाया जिसकी वजह से हैजा होता है और उस जीवाणु को नाम दिया वाइब्रियो कॉलेरी।
रॉबर्ट कॉख ने जीवाणु का पता तो लगा लिया लेकिन वह यह पता लगाने में नाकाम रहे के वाइब्रियो कॉलेरी को कैसे निष्क्रिय किया जा सकता है।

हैज़ा फैलता रहा ........लोग मरते रहे और इस जानलेवा बीमारी को ब्लू डेथ यानि "नीली मौत" का नाम दे दिया गया।

"1 फरवरी 1915" पश्चिम बंगाल के एक दरिद्र परिवार में एक बालक का जन्म हुआ। नाम रखा गया "शंभूनाथ"।  शुरुआत से ही शंभूनाथ पढ़ाई में अव्वल रहे। कोलकाता मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल गया। डॉक्टरी से अधिक उनका रुझान "रिसर्च" की ओर था। इसलिये 1947 में उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के कैमरोन लैब में पीएचडी में दाखिला लिया। मानव शरीर की संरचना पर शोध करते समय शंभूनाथ डे का ध्यान हैज़ा फैलाने वाले जीवाणु वाइब्रियो कॉलेरी की ओर गया।

1949  माटी का प्यार शंभूनाथ डे को वापिस हिंदुस्तान खींच लाया। उन्हें कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के पैथोलॉजी विभाग का निदेशक नियुक्त किया गया और वह महामारी का रूप ले चुके हैज़े का ईलाज ढूंढने में जुट गये।
बंगाल उस समय हैज़े के कहर से कांप उठा था। हॉस्पिटल हैजे के मरीजों से भरे हुये थे।

1844 में रॉबर्ट कॉक के शोध के अनुसार जीवाणु व्यक्ति के सर्कुलेटरी सिस्टम यानी कि खून में जाकर उसे प्रभावित करता है। दरअसल यहीं पर रॉबर्ट कॉख ने गलती की, उन्होंने कभी सोचा ही नहीं कि यह जीवाणु व्यक्ति के किसी और अंग के ज़रिए शरीर में जहर फैला सकता है।

शंभूनाथ डे ने अपने शोध के निष्कर्ष से विश्व भर में सनसनी फैला दी। शंभूनाथ के शोध से पता चला वाइब्रियो कॉलेरी खून के रास्ते नहीं बल्कि छोटी आंत में जाकर एक टोक्सिन/जहरीला पदार्थ छोड़ता है।इसकी वजह से इंसान के शरीर में खून गाढ़ा होने लगता है और पानी की कमी होने लगती है।

1953 शंभूनाथ डे का शोध प्रकाशित के पश्चात ही ऑरल डिहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ORS) को बनाया गया। यह सॉल्यूशन हैजे का रामबाण इलाज साबित हुआ। हिंदुस्तान और अफ्रीका में इस सॉल्यूशन के जरिये लाखों मरीजों को मौत के मुँह से निकाल लिया गया।

विश्व भर में शंभूनाथ डे के शोध का डंका बज चुका था। परंतु उनका दुर्भाग्य था के वह शोध भारत भूमि पर हुआ था। लाखों करोड़ों लोगों को जीवनदान देने वाले शंभूनाथ को अपने ही राष्ट्र में सम्मान नहीं मिला।

शंभूनाथ आगे इस जीवाणु पर और शोध करना चाहते थे लेकिन भारत में साधनों की कमी के चलते नहीं कर पाये।

उनका नाम एक से अधिक बार नोबेल पुरस्कार के लिए भी दिया गया। इसके अलावा, उन्हें दुनिया भर में सम्मानों से नवाज़ा गया लेकिन भारत में वह एक गुमनाम शख्स की ज़िंदगी जीते रहे।

शंभूनाथ की रिसर्च ने ब्लू डेथ के आगे से डेथ(मृत्यु) शब्द को हटा दिया। करोड़ों लोगों की जान बच गयी। इतनी बड़ी उपलब्धि के पश्चात भी वह "राष्ट्रीय नायक" ना बन सके। ना किसी सम्मान से नवाजे गये। ना सरकार ने सुध ली।

यही नहीं करोड़ों लोगों की ज़िंदगी बचाने वाले इस राष्ट्रनायक के विषय में हमें पढ़ाया तक नहीं गया।

हमें अपने असली नायकों को पहचाना होगा। उन्हें सम्मान देना होगा।

दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ