एक सफेद झुठ अल्पसंख्यक और धर्मनिरपेक्षता
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आज जो हमारे देश में जो हो रहा है वह किसी से छिपा हुआ नहीं है।सबको सब कुछ पता है।देश का हर कोना अशांत है और जनता भयभीत है। अमन चैन की बात करने वाले लोग हीं आज सबसे ज्यादा बेचैन हैंं।उनके बेचैनी का कारण क्या है?हालात ऐसा क्यों है? वर्तमान दौर में ये विचारणीय है।
भारतीय संविधान ने भारत को धर्मनिरपेक्ष गणराज्य घोषित किया है।बात चाहे जो हो पर संविधान निर्माताओं नें एक सुखद एहसास भरने का काम जरूर किया था अपने समय और परिस्थिति में। पर वह स्वप्न हीं रह गया।बाद के लोग इस धर्मनिरपेक्षता को अपने हित में प्रयोग करना शुरू किया।
हमारे देश के स्वार्थी नेताओं ने एक भ्रामक शब्द हमारे बीच प्रचारित किया सेकुलरिज्म।यह शब्द तो सुंदर है पर इसका व्यवहार बडा गडबड है।यह शब्द आज एक पंथ विशेष का हिमायती है।वर्तमान दौर में जो सेक्युलर कहे जा रहे हैं वे बडे हीं घातक और विध्वंसक है।
हमारे देश में बहुत से विद्यालय और विश्वविद्यालय हैं। फिर भी हमारे देश में तीन हीं विश्वविद्यालय का नाम लिया जाता है वह है--- जामिया मिलिया इस्लामिया,अलिगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय।इन तीनों का नामआखिर उपद्रव के कारण क्यों आता है। वह कारण क्या है?कि बाकि विद्यालय,महाविद्यालय या विश्वविद्यालय का नाम नहीं आता है।मैं सोंचता हूं और विश्वविद्यालयों का नाम कभी क्यों नहीं आता है?जबकि सब जगह वही मूलभूत सुविधाएं मौजूद है। वहां भी वैसे हीं छात्र-शिक्षक है जैसा की इन तीनों विश्वविद्यालय में है।कहने को आप कह सकते है कि यहां पर कुछ ज्यादा हीं संवेदनशील लोग है। पर ये गलत है। यदि यहां के रहने वाले इतने हीं संवेदनशील हैं तो आखिर वह कारण क्या है की वह अतिसंवेदनशील बन गया है। कुछ न कुछ कारण है।
हमारे देश में विविधता है। वह भी बहुतायत है।
भाषा,पंथ,रीति,खान-पान, रहन-सहन,पहनावा, आचार-विचार आदि-आदि।ये हमारा संविधान हमें सिखाता है की हम किसी के साथ भी किसी स्तर पर भेद भाव नहीं करेंगें। पर हमारे देश में कुछ तथाकथित रहनुमा हीं ये सब करते हैं। ओ भी अपनी पार्टी, विचारधारा और वोट को लेकर।अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के नाम पर। हिन्दू और मुसलमान के नाम पर। मंदिर और मस्जिद के नाम। अगडा और पिछडा के नाम पर।
क्या हमारे देश में अल्पसंख्यक सिर्फ मुसलमान हीं है? सिख,ईसाई,पारसियन,बौद्ध,जैन आदि कहां गये।हम हिन्दू में भी अनेक ऐसी जातियाँ है जिसकी संख्या अत्यल्प है। उनके लिए इन सेक्युलरों के पास क्या है? ये सब विशेष लोगों के साथ हीं आखिर क्यों खडे होते है।कुछ तो बात है।
काश्मीर में जो हालात थे पूर्व में वही स्थिति आज देश के हर कोने में।काश्मीर कभी धरती का स्वर्ग कहा जाता था। जहां के मूल निवासी काश्मीरी पंडित थे। वे काश्मीरी पंडित आज काश्मीर में नहीं हैं।वे लोग आज अपने देश में हीं विस्थापित है। शरणार्थी है। क्या विडम्बना है।जब उन पर अत्याचार हो रहा था ये सब सेक्युलर लोग कहां थे।
ये वही धर्मनिरपेक्ष लोग हैं जो एक विशेष लोग के पक्ष में खडे रहने वाले लोग हैं। ये लोग वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। उनके दिमाग में ये धारणा बन गई है कि अल्पसंख्यक वोट एकमुश्त वोट है। इसमें विखराव नहीं के बराबर है। बहुसंख्यक का वोट बिखर जाता है। हमें उनकी चिंता नहीं करनी है।ये तथाकथित सेक्युलर लोग उन अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों का डर दिखाकर रखते हैं।अपने शासन व्यवस्था को बचाये रखने के लिए उन्हें वह सब करने की आजादी दी गई जो नहीं होना चाहिए था।
आज देश की जनता जागी है। सच में धर्मनिरपेक्षता का मतलब समझ गई है। अल्पसंख्यक कौन है वह यह भी जान गई है। हमारा अधिकार और कर्तव्य क्या है किसी को बताने समझाने की जरूरत नहीं है। बस उन अवसरवादी नेताओं को अपनी लुटिया डुबती नजर आ गई है। वे लोगों को भडका रहे है।जगह-जगह भाडे पर उपद्रवियों को लगा रहे हैं।मनगढंत भय फैला रहे है।
हम पढ, देख, सुन रहे है। आज नागरिकता कानून बिल आने के विरोध में लोग धारना-प्रदर्शन कर रहे हैं।अच्छी बात है। ये सब सजग लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। लोकतंत्र के जीवंतता का प्रमाण है यह। पर ये क्या? जिसके लिए विरोध मार्च निकाला गया उसकी नहीं बल्कि निशाने पर बहुसंख्यक हिन्दु है।अरे जिसके लिए तुम विरोध प्रदर्शन कर रहे हो उस पर केंद्रित रहो। भटक क्यों गये? कुछ पता है। नहीं न।
आपका विरोध जायज है। करना है तो खुब करो। कौन रोकता है। आपको कोई रोक भी नहीं सकता है। ये आपका संवैधानिक अधिकार है। पर ये क्या? गाडियां जलाई जा रही है। राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। आखिर ये कौन सा विरोध प्रदर्शन है?एक ओर आप अशांति फैलाते है। पुलिस प्रशासन पर रोडेबाजी करते है और कहते है देश में अराजक माहौल है।
धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म हीन नहीं है बल्कि सर्वधर्म समभाव है।सभी धर्मों का समान रूप से आदर करना हम सबका कर्तव्य है। किसीको धर्म,जाति,पंथ,रंग, लिंग,भाषा के आधार पर कम या ज्यादा आंकना गलत है।अन्याय,अत्याचार,शोषण,दमन, भेदभाव जहां कहीं हो उनके खिलाफ खडा होना और उसके हक-हकूक के लिए आवाजें बुलंद करना हीं वास्तव में सेकुलरिज्म है।
सेकुलरिज्म को आज कुछ लोगों ने बदनाम कर दिया है।ये काला सच है। इसे मिटाने का हमसब को सार्थक प्रयास करना करना चाहिए। आज विरोधियों की गलत मानसिकता के कारण देश की छवि विदेशों में धूमिल हो रही है।विरोध सिर्फ विरोध के लिए न होकर गतिरोध समाप्त करने के लिए भी होना चाहिए।तभी देश और दश का कल्याण होगा।
दश और देश का कल्याण कैसे होगा।कौन करेगा वह।आज हमारे देश के पास बहुत सी समस्या है।जितना खतरा बाहरी लोगों से नहीं है उससे ज्यादा खतरा अपने लोगों से।हमारे नेता संविधान की कसमे खाकर संवैधानिकता की धज्जियां उडा रहे है।व्यवस्था चरमराई हुई है।लोगों को कुछ समझदारी नहीं है।आज देश संकट में है।संविधान संकट में और ये बात वही लोग बोल रहे हैं जो संविधान के विधान को नहीं मानते है।
हमें विचार करना होगा।नहीं तो देश की दशा और बदतर होगी।इसे बचाने सजाने कोई बाहर से आने वाला नहीं है।हमसबको ये कार्य करना है।विधान और संविधान के रक्षा के लिए कमरकस कर आगे आना होगा।
--:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
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