धर्मो रक्षति रक्षित:' : 'रक्षित धर्म रक्षक की रक्षा करता है’।
- योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ( जे. पी. मिश्र)
सम्राट् अशोक द्वारा लिखवाया गया कान्धार के ऊपर प्रदर्शित द्विभाषी शिलालेख (258 ईसापूर्व) में संस्कृत में 'धर्म' और ग्रीक में उसके लिए 'Eusebeia' लिखा है, जिसका अर्थ यह है कि प्राचीन भारत में 'धर्म' शब्द का अर्थ आध्यात्मिक प्रौढ़ता,
भक्ति, दया, मानव समुदाय के प्रति कर्तव्य आदि था।
धर्मो रक्षति धर्म:
"यह वाक्यांश मनुस्मृति के 8वें अध्याय के 15वें श्लोक से लिया गया है। मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक प्राचीन ग्रन्थ है। यह सर विलियम जोन्स द्वारा
1776 में अंग्रेजी
में अनुवादित किया गया। यह उन प्रथम संस्कृत ग्रंथों में से एक था, जिसका उपयोग ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा हिंदू कानून
बनाने के लिए किया गया था। पूरा श्लोक इस प्रकार है –
'धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ।'
वाक्यांश का अर्थ है, जो लोग ’धर्म’ की रक्षा करते हैं, उनकी रक्षा स्वयं हो जाती है। इसे ऐसे भी कहा जाता है,
‘रक्षित किया गया धर्म
रक्षा करता है’।"
अभी महाभारत धारावाहिक दूरदर्शन पर दिखाया जा रहा है। महाभारत के अंतर्गत
श्रीमद्भभग्वद्गीता के प्रथम श्लोक में ही महाभारत युद्ध को धर्मयुद्ध कहा गया है, यथा-
'धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युजुत्सव:।
मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।'
महाभारत युद्ध धर्मभूमि कुरूक्षेत्र में धर्मरक्षा के लिए ही लड़ा गया और जीत
धर्म-रक्षक पाण्डव की हुई।
पुरुषार्थ चतुष्टय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में धर्म ही प्रथम स्थान पर है,
इसलिए धर्म की रक्षा करना किसी का प्रथम कर्तव्य है। यथा-
"धर्मार्थ काम मोक्षाणाम् प्राणा: संस्थिति हेतव:।
तन्निघ्नता किं न हतं रक्षता किं न रक्षितम्।।
- ४३/हितोपदेशे मित्रलाभ:।। अर्थात् ,
'धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इस पुरुषार्थ चतुष्टय की रक्षा में प्राण ही
कारण है,
इसलिए जिसने इन प्राणों का विनाश किया उसने सबका विनाश कर
डाला और जिसने इसकी रक्षा की उसने किसकी रक्षा नहीं की;
अर्थात् सबका रक्षण किया।'
अक्सर हम कहते हैं कि मात-पिता की सेवा करना, पीड़ित की पीड़ा दूर करना हमारा धर्म है।
धर्म को लौकिक एवं सामाजिक कर्तव्य भी कहा गया है। नैतिक और व्यवहारिक नियम
भी। सदाचार, पुण्य, सत्कर्म भी है। न्यायशीलता और विवेक भी!
"धर्म शब्द का अर्थ. धारयति इति धर्मः - धर्म का अर्थ होता
है “धारण करना”।
'धर्म' भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में किसी समतुल्य शब्द का पाना बहुत
कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं-
कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, 'धारण करने योग्य' सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिये'। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र
हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि
धर्म मानव को मानव बनाता है।
अब धर्म की संज्ञा पानेवाले कुछ समूहों के बारे में भी जानें:-
"हिन्दू धर्म
हिन्दू धर्म समूह का मानना है कि सारे संसार में धर्म केवल एक ही है,
शाश्वत सनातन हिन्दू धर्म। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से जो
धर्म चला आ रहा है , उसी का नाम हिन्दू धर्म है। इसके अतिरिक्त सब पन्थ ,
मजहब , रिलिजन मात्र हैं। हिन्दुओं की धार्मिक पुस्तक वेद,
अरण्यक, उपनिषद् , श्रीमदभगवतगीता, रामायण, पुराण आदि हैं।
सनातन धर्म अपने मूल रूप हिन्दू धर्म के वैकल्पिक नाम से जाना जाता है। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिये 'सनातन धर्म' नाम मिलता है। 'सनातन' का अर्थ है - 'शाश्वत' या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म मूलत: भारतीय धर्म है,
जो किसी ज़माने में पूरे वृहत्तर भारत (भारतीय उपमहाद्वीप)
तक व्याप्त रहा है। विभिन्न कारणों से हुए भारी धर्मान्तरण के बाद भी विश्व के इस
क्षेत्र की बहुसंख्यक आबादी इसी धर्म में आस्था रखती है। सिन्धु नदी के पार के
वासियों को ईरानवासी हिन्दू कहते थे, जो 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे। उनकी देखा-देखी अरब हमलावर भी तत्कालीन
भारतवासियों को हिन्दू और उनके धर्म को हिन्दू धर्म कहने लगे। भारत के अपने
साहित्य में हिन्दू शब्द कोई १००० (1000) वर्ष पूर्व ही मिलता है, उसके पहले नहीं। हिन्दुत्व सनातन धर्म के रूप में सभी
धर्मों का मूलाधार है क्योंकि सभी धर्म-सिद्धान्तों के सार्वभौम आध्यात्मिक सत्य
के विभिन्न पहलुओं का इसमें पहले से ही समावेश कर लिया गया था।
गौतम ऋषि कहते हैं - 'यतो अभ्युदयनिश्रेयस सिद्धिः स धर्म।'
(जिस काम के करने से अभ्युदय और निश्रेयस् की सिद्धि हो वह धर्म है। )
मनु ने मानव धर्म के दस लक्षण बताये हैं:
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥
धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना,
क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना),
अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरंग और बाह्य शुचिता),
इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना),
धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा),
सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न
करना) ;
ये दस मानव धर्म के लक्षण हैं।)
जो अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरे के साथ नहीं करना चाहिये -
यह धर्म की कसौटी है।
श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ॥
(धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये।)
वात्सायन के अनुसार धर्म
वात्स्यायन ने धर्म और अधर्म की तुलना करके धर्म को स्पष्ट किया है। वात्स्यायन मानते हैं
कि मानव के लिए धर्म मनसा, वाचा, कर्मणा होता है। यह केवल क्रिया या कर्मों से सम्बन्धित
नहीं है बल्कि धर्म चिन्तन और वाणी से भी संबंधित है।
महाभारत
महाभारत के वनपर्व (३१३/१२८) में कहा गया है-
'धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः। तस्माद्धर्मो न
हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ॥
मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश, और रक्षित धर्म रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन
कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले।'
"
स्वस्तिक चिह्न
हिन्दू धर्म का प्रतीक स्वस्तिक चिन्ह है और कई पीढ़ियों से इस्तेमाल में है।
"जैन धर्म
जैन धर्म भारत का एक धर्म है। जैन धर्म का मानना है कि यह संसार अनादिकाल से
चला आ रहा है, वह अनंत काल तक चलता रहेगा एवं सभ्यता का निरंतर विकास होता रहेगा जो एक विंदु
है। जिन्होंने स्वयं को जीत लिया हो अर्थात मोह राग द्वेष को जीत लिया हो वो जैन
अर्थात् उनका अनुसरण करने वाले। जिन धर्म कहता है भगवान कोई अलग से नहीं होते वरन्
व्यक्ति निज शुद्धात्मा की साधना से भगवान बन सकता है। भगवान कुछ नहीं करता,
मात्र जानता है। सब अपने कर्मों के उदय से होता है। जैन
धर्म कहता है कोई बंधन नहीं है तुम सोचो समझो विचारो फिर तुम्हें जैसा लगे वैसा
शीघ्रातिशीघ्र करो। जैन धर्म संसार का एक मात्र ऐसा धर्म है जो व्यक्ति को
स्वतंत्रता प्रदान करता है।जैन धर्म में भगवान को नमस्कार नहीं है अपितु उनके
गुणों को नमस्कार है।
इस्लाम धर्म
'इस्लाम अरबी: الإسلام अर्थ: अमन, शांति) प्रेषित परंपरा से निकला एकेश्वरवादी मजहब है। अंतिम प्रेषित की शुरुआत 7वीं सदी के अरेबिया में हुई जबकि मुस्लिम मानते हैं कि यह सृष्टि की रचना से ही
विद्यमान है। इस्लाम अल्लाह के अंतिम रसूल हजरत मुहम्मद के द्वारा मनुष्यों तक पहुंचाई गई अवतरित किताब क़ुरआन की शिक्षा पर आधारित है, तथा इसमें हदीस, सीरत उन-नबी का तरीका व शरीयत धर्मग्रन्थ कुरआन हैं। इस्लाम में सुन्नी, शिया व सूफ़ी समुदाय प्रमुख हैं। इस्लाम की धार्मिक स्थल मस्जिद कहलाती हैं। इस्लाम विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है।'
इस्लाम धर्म क़ुरान पर आधारित है। इसके अनुयाइयों को मुसलमान कहा जाता है।
इस्लाम केवल एक ही ईश्वर को मानता है, जिसे मुसलमान अल्लाह कहते है। हज़रत मुहम्मद अल्लाह के अन्तिम और सबसे महान सन्देशवाहक (पैग़म्बर या
रसूल) माने जाते हैं। इस्लाम में देवताओं की और मूर्तियों की पूजा करनी मना है।
ईसाई धर्म
ईसाई धर्म बाइबिल पर आधारित है। ईसाई एक ही ईश्वर को मानते हैं, पर उसे त्रिएक के रूप में समझते हैं -- परमपिता परमेश्वर,
उनके पुत्र ईसा मसीह (यीशु मसीह) और पवित्र आत्मा।
सिख धर्म
सिख धर्म सिख एक ही ईश्वर को मानते हैं, बराबरी, सहनशीलता, बलिदान, निडरता के नियमों पर चलते हुए एक निराले व्यक्तित्व के साथ जीते हुए उस ईश्वर में लीन हो जाना सिख का जीवन उद्देश्य है। इनका धर्मग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब है।
बौद्ध धर्म
"बौद्ध धर्म ईश्वर के अस्तित्व को नकारता और इस धर्म का केंद्रबिंदू
मानव है। बौद्ध धर्म और कर्म के सिद्धान्तों को मानते हैं,
जिनको तथागत गौतम बुद्ध ने प्रचारित किया था। बौद्ध गौतम बुद्ध को नमन करते हैं। त्रिपीटक बौद्ध धर्म ग्रंथ है।"
धर्म किसी व्यक्ति की आंतरिक भावना से जुड़ा है, जो उसे अपने माता-पिता से मिलता है। इसीलिए किसी के
जीवन-संस्कार उसके धर्म अनुरूप ही होते हैं। उसकी भक्ति-भावना इसी से संतुष्टि
पाती है। इसमें बदलाव लाना बहुत ही कठिन है।
धर्म जीवन से जुड़ा है।
शास्त्रों में भी कहा गया है :
चला लक्ष्मीश्चला: प्राणाश्चलं जीवित-यौवनम्। चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः॥
- चाणक्य नीति
'धन सम्पदा आती है जाती है, जीवन, यौवन भी जिंदगी से चले जातेहैं,
इस चलाचल (आने जाने वाले) जगत में मात्र एक धर्म ही निश्चल
है।'
वैसे भगवान् श्रीकृष्ण ने तो श्रीमद्भगवद्गीता में कह दिया है -
'सर्व धर्मान्परितज्य मामेकं शरणं व्रज।'
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आएं हम धर्म के सही स्वरूप को पहचानें और उस पर चलें!
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योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे. पी. मिश्र),
अर्थमंत्री-सह-कार्यक्रम-संयोजक,
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन, कदमकुआं, पटना-800003.
निवास : मीनालय, केसरीनगर, पटना 800 0024.दिव्य रश्मि समाज का दर्पण
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