तालाबंदी से क्या गँवाया, क्या पाया!
(लॉकडाउन का लौस-गेन - Loss & Gain of Lockdown)
- योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे. पी. मिश्र)
जिधर देखो लॉकडाउन की ही चर्चा है। चौथा लॉकडाउन खत्म हो गया है, तो पाँचवाँ अनलॉक-1 के रूप में सामने खड़ा है। वैसे 30/5/20 को केन्द्र सकार ने नई गाईडलाइन जारी कर दी है। जिसके अनुसार 8 जून से लॉकडाउन में बहुत अधिक ढील दी जा रही है। लेकिन, 65 वर्ष से ऊपर के वरीय नागरिक, 10 वर्ष तक के बच्चे और गर्भवती महिलाओं को बहुत आवश्यक होने पर ही घर से बाहर निकलने की सलाह दी गई है।
केंद्र सरकार ने लॉकडाउन पांच यानी अनलॉक-1 एक जून से लेकर 30 जून तक के लिए जो गाइडलाइंस जारी किया है।
पहले चरण में आठ जून के बाद से धर्मस्थलों, होटलों, रेस्त्राओं, शॉपिंग मॉल को खोलने की अनुमति दे दी जाएगी. इसके लिए सरकार अलग से दिशानिर्देश जारी करेगी.
दूसरे चरण में स्कूलों, कॉलेजों, शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाओं को राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों से विमर्श के बाद जुलाई महीने में खोलने की अनुमति दी जाएगी.
आम जनता की तो यह स्थिति है कि 'धड़कने लगता है मेरा दिल, तेरे नाम से!' इस लॉकडाउन ने क्या-क्या दिन नहीं दिखाये! जो जहाँ गया, वहीं टंग गया। बात मुंबई की है। बैंक-चलानेवालों को रोज बैंक जाना पड़ा तो मुँह से निकल गया कि लॉकडाउन में भी हम जनसेवा कर रहे हैं, तभी उनको तीखी चुभन भी लगी, जिनका परिवार अन्यत्र गया था, वह वहीं रहने को मजबूर हो गया। अब वे ही जब संक्रमणके इस काल में बीमार पड़ गये हैं, तो देखनेवाला कोई नहीं! जो बीमार है, वे और उसका परिवार, सभी अपनी-अपनी जगहों पर घोर संकट में हैं। जिसको शुरू-शुरू में कुछ अंदेशा हुआ, वह भी ठीक-ठाक रहने के बावजूद स्वयं अपने को अलग-थलग रखे हुए है। नतीजा है कि पूरा घर परेशान! तभी आस की एक किरण फूटी कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री श्री मनीष सशिशोदिया और स्वास्थ्यमंत्री श्री सत्येन्द्र जैन इंडिया टीवी को बता रहे थे कि कोरोना पोजीटिव घर में भी रह रहे हैं और उन्हें तीन बातें करनी चाहिए - 1. अलग रहना, एक-दूसरे से 6फीट की दूरी पर रहना, 2.मास्क-पहनना, 3. साबुन से बराबर हाथ धोते रहना। स्वास्थ्यमंत्री श्री जैन का कहना था कि अधिकतर लोग ठीक हो रहे हैं और घर में रहकर भी कोई कोरोना पोजीटिव भी बिना दवाई के ही ठीक हो जा रहा है।
मेरा एक निकटस्थ ही पूणे से ऑफिस के काम से नई दिल्ली गया तो लॉकडाउन ने उसकी घेराबंदी वहीं कर दी। इसी तरह एक मित्र गुरुग्राम (गुड़गाँव) में ही फँसे हुए हैं।
उसी तरह एक बेटी अपने दो बच्चों के साथ, माँ से मिलने पटना आई तो अबतक लौट नहीं सकी, क्योंकि 25 मार्च से ही लॉकडाउन जो लग गया।
लाखों मजदूर जो कमाने देश के कोने-कोने में गये थे, वे काम-काज बंद होने से भूख से बिलबिलाने लगे और घर जाने के लिए भी! जाने का कोई साधन नहीं, तो सैकड़ों लोग 1000/1500 किलोमीटर या अधिक की दूरी भी तय करने पैदल ही निकल गए! रास्ते में भले सरकारों ने और स्वयंसेवी संस्थाओं/जनों ने उनके भोजन, सवारी आदि की भी व्यवस्था की। बाद में केन्द्र सरकार ने इन श्रमिकों के लिए अलग से रेलगाड़ी भी चलाई और गृह पहुंचकर भी उन्हें 14 से 21 दिन तक कोरेन्टीन में रहना पड़ा। महाराष्ट्र के औरंगाबाद के कुछ लोग पैदल चल पड़े थे और असावधानीवश मालगाड़ी से कट गये। लॉकडाउन की कितनी व्यथा कहूँ 'हरि अनन्त हरिकथा अनन्ता'! 'प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा वास्तव में बहुत पीड़ादायक है। प्रवासियों के आने-जाने के लिए लगभग 3500 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई गईं। प्रवासियों की स्क्रीनिंग के लिए मानवीय प्रावधान किए गये, क्वारंटीन सुविधाएं प्रदान करने के लिए केन्द्र से राज्य सरकारों को सहयोग और मुफ्त राशन की व्यवस्था की गई।' राज्यों ने अपने-अपने राज्य में रेल स्टेशन से गृह क्षेत्र तक पहुँचाने के लिए बहुत बसें भी चलाईं!
इतना ही नहीं झारखण्ड ने तो अपने प्रवासी श्रमिकों को हवाई जहाज के द्वारा लद्दाख, चेन्नई,
अंडमान निकोबार से अपने घर मंगवा लिया!
पर, समस्या यह है जो लाखों श्रमिक अन्य क्षेत्रों में जाकर अन्य कामों में लगे हुए थे, उहें रोजगार से किस तरह लगाया जाय, ताकि रोजगार के लिए बाहर जाने की नौबत ही नहीं आये!
प्रवासियों के लिए गृह राज्य में ही रोजगार का प्रबंध करना भी एक बड़ी समस्या होगी। उदाहरण के लिए अगर बिहार को ही लें तो 2011 की जन गणना के अनुसार राज्य के लगभग 80 लाख से अधिक लोग बिहार से बाहर गये थे , अनुमानानुसार यह संख्या अब दुगुनी हो गई है। यह तो देश के एक राज्य का हाल है तो पूरे देश का क्या हाल होगा?
लॉकडाउन के चलते सारे स्कूल, कॉलेज बंद हैं। विद्यार्थियों का नये वर्ग में नाम लिखाना बहुत कठिन है। प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने के लिए जो छात्र-छात्राएं बाहर चली गईं थी, उन्हें घर लाने में विकट समस्याएँ आईं! आदि-आदि,----।
इसका यह अर्थ नहीं कि लॉकडाउन में सब खराब ही हुआ है! बहुत अच्छाइयाँ भी हुई है, जो अभूतपूर्व हैं। कहा भी गया है 'सीखे कहाँ, ठेसे जहाँ!' अनेकों में से कुछ ये हैं:
- कोविड का विस्तार अपेक्षाकृत कम हुआ है।
-कोरोना या कोविड को छोड़ अन्य बीमारियाँ कम हुई हैं।
- परिवार को एक साथ रहने का बड़ा अवसर मिला, जो किसी के जीवन का एकमात्र अवसर हो सकता है।
- रचनाकारों को रचना करने का पर्याप्त अवसर मिला और इसे वे लॉकडाउन की उपलब्धि में गिन सकेंगे।
- स्कूल-कॉलेज बंद हो जाने के कारण, उनका ऑनलाईन क्लास चला, परीक्षाएँ हुईं!
- छात्र-छात्राएँ ऑनलाईन पढ़ना, परीक्षा देना सीख गये।
- लॉकडाउन खुलते ही बची परीक्षाएं होंगीं और नया नामांकन भी।
- स्मार्ट फोन का चलन बहुत बढ़ गया।
- लोग आगे के लिए सतर्क हो गये।
- भारत में जिसका उत्पादन नहीं हो रहा था, उसमें भी उत्पादन शुरू होकर देश आत्मनिर्भर हो गया!
- विदेशों से (विशेषकर अमेरीका से) जान-रक्षक दवाइयों की माँग होने लगी।
- घर से ही काम करें अर्थात् वर्क फ्रॉम होम को बढ़ावा दिया गया ।
- कोरेन्टीन में रहनेवालों के रहन-सहन और खाना-पीना बनाने/आपूर्ति के काम में लगनेवालों को रोजगार मिला।
- एक नया नारा भी सामने आया कि -
'हमें कोरोना के संग जीना सीखना होगा!'
लॉकडाउन को हम कल्याणकारक मानकर चलें! हमने सुना है 'Blessings in disguise', 'अप्रत्यक्ष कृपादान'! हमें इसी भाव से तालाबंदी-Lockdown को लेना चाहिए! कभी एक युग था जब हम प्लेग, चेचक, क्षयरोग, पोलियो आदि घातक बीमारियों से हम लड़ रहे थे और हमने उनपर विजय पाई , उसी तरह हम कोविड-Covid (Coronavirous Disease) का भी टीका/दवाई निकाल लेंगे, ऐसा हमें विश्वास करना चाहिए!
आएँ, अनलॉक-1 की पूर्ण सफलता और मंगलकामना के साथ आगे बढ़ें!
सर्वे भवनतु सुखिन: सर्वे सन्तू निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:खभाग्भवेद्।।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com