विश्नोई
समाज को बारंबार नमन ।
अश्विनी तिवारी,कैमूर, बिहार
राजस्थान
की पारंपरिक वेशभूषा में एक पगड़ी भी होती है | वैसे
तो ये पूरे ही भारत में होती है लेकिन राजस्थानी पगड़ी कुछ ज्यादा ही रंग बिरंगी
होती है | दूर से ही दिख जाएगी | ऐसे
में जब आप राजस्थान से गुजरें और कोई सफ़ेद सी पगड़ी में दिख जाए तो थोड़ा अजीब लगेगा
| लेकिन जो लोग अक्सर राजस्थान से गुजरते हों, या दो चार बार भी गए हों उन्हें पता होता है की ये सफ़ेद वेश भूषा वाले लोग
बिश्नोई हैं | ये लोग हमेशा सफ़ेद कपड़े पहने होने के लिए भी
जाने जाते हैं |
इसके अलावा
ये लोग वनों और प्राणियों के संरक्षण करने के लिए भी जाने जाते हैं |
मेनका गाँधी और Green Peace के आने से बहुत
पहले ही ये कुनबा / कबीला जीव जंतुओं और पौधों को बचाने में लगा हुआ है | जोधपुर से करीब सौ किलोमीटर दूर एकलखोरी नाम का एक गाँव है | वहां राणाराम बिश्नोई रहते हैं | करीब पचहत्तर साल
के मजबूत कद काठी के इस युवा को मुख्य धारा की मीडिया ने कम ही जगह दी है |
इनके इलाके
को निगलने के लिए रेगिस्तान आ रहा था | शत्रु
मजबूत था रेत, गर्मी, तेज़ हवाओं के
हथियारों से लैस | इससे जा भिड़ने के लिए राणाराम बिश्नोई ने
किसी सरकारी मदद की प्रतीक्षा नहीं की | उन्होंने बबूल,
कीकड़, नीम और बोगनवेलिया के अपने परंपरागत
हथियार निकाले और रेगिस्तान का बढ़ना रोकने में जुट गए |
राणाराम
बिश्नोई उसी काबिले से आते हैं जिनका जिक्र आपने चिपको आन्दोलन में अपनी स्कूल की
किताबों में पढ़ा है | पड़ोस के एक कूएँ से
घड़े में पानी भर भर कर बरसों से राणाराम बिश्नोई नए पौधों को देते रहे हैं |
कुछ जंगली और कुछ पालतू जानवरों से पेड़ों को बचाने के लिए शुरू में
उन्हें झाड़ों से घेरना पड़ता है | मगर राणाराम बिश्नोई बताते
हैं की इनका सबसे बड़ा दुश्मन जानवर नहीं दोपाया है | वो
समझता ही नहीं की लालच का कोई अंत नहीं है | अपने पेड़ों और
जीव जंतुओं के बिना प्रकृति सबसे पहले मानव को ही लील लेगी |
जिन्हें “बिश्नोई” पता नहीं है उनके लिए सलमान खान और काले
हिरण का किस्सा भी है | शिकार से किसी बड़े आदमी को रोकने की
हिम्मत किसी और में है क्या ? रेगिस्तान को रोकने की तो
सोचते भी नहीं होंगे !
अपना
ए.सी. तो बंद करो कॉमरेड!
फ्रिज या
ए.सी. में जिस गैस को भरवाने या कॉम्प्रेसर खराब होने की बात करते हुए कभी कभी
मैकेनिक आपको लम्बा बिल थमाते हैं, ये
वो गैस होती है जो पृथ्वी के ओज़ोन लेयर में हो रहे छेद की सबसे बड़ी जिम्मेवार है |
हर साल गर्मी बढ़ती जा रही है, या ठण्ड के मौसम
का आने-जाने का समय बदल चुका है, ये समझने के लिए अब आपको
वैज्ञानिक होने की भी जरूरत नहीं | 35 वर्ष की भी उम्र जी
चुके लोग आसानी से बता देंगे कि ये कोई भविष्य का खतरा नहीं, ये हो चुका है |
ऐसे दौर
में जब पर्यावरण के संरक्षण के लिए उपायों की बात होनी शुरू हुई तो विकसित देशों
ने बिजली,
ए.सी. और फ्रिज के कम इस्तेमाल से मना करते हुए, विकासशील देशों की मदद से पल्ला झाड़ लिया था | आम
सहमती नहीं बनी तो कुछ भी नहीं हो पाया | तुलनात्मक रूप से
आम हिन्दुओं का पर्यावरण पर बहुत ध्यान रहता है | दूसरे
छोटे-मोटे, तुच्छ मजहबों-रिलिजन की तरह वो पर्यावरण को
मनुष्यों के उपभोग के लिए बनाई कोई बाप की जागीर नहीं समझते |
बिश्नोई
राजस्थान के वो लोग होते हैं जो हिन्दुओं की प्रकृति उपासना की पद्दति को थोड़ा
ज्यादा गंभीरता से लेते हैं | जाहिर है कि
प्रकृति को उपभोग के लिए बना संसाधन मानते #आदर्श_लिबरल गिरोहों को बिश्नोई फूटी आँख नहीं सुहाते | किसी
लफंगे-शराबी किस्म के फ़िल्मी अभिनेता के "बीइंग ह्यूमन" के प्रचार से
कहीं ज्यादा मानवता तो एक बिश्नोई अपने जीवनकाल की रोजमर्रा की हरकतों में ही दिखा
चुका होता है | प्रचार का लालच तो छोड़िये इतनी मानवता में
कुछ "महान" था ये भी वो नहीं सोचता |
कपटी
कॉमरेड जब बिश्नोई समुदाय पर अपने ए.सी. दफ्तरों में बैठ कर पोंगापंथी होने का
अभियोग लगाते हैं तो उन्हें पर्यावरण के हित में कम से कम अपने ऑफिस का फ्रिज और
ए.सी. ऑफ कर लेना चाहिए | बाकी पैसे के जोर
और बड़ा नाम होने के दम ख़म पर आप रडियो, टीवी, अखबार में जो मर्जी लिख भरिये, मेरा समर्थन तो
बिश्नोई को ही जाएगा !
पश्चिमी
राजस्थान में रहने वाले बिश्नोई समाज के लोग पेड़ों की रक्षा और सभी जीवित प्राणियों
के प्रति दया का भाव रखने के लिए प्रसिद्ध हैं। बिश्नोई थार के रेगिस्तान से लगे
इलाक़ों में रहते हैं। आज के पर्यावरण आंदोलनों से बहुत पहले से बिश्नोई लोग अपना
जीवन इस उद्देश्य के लिए क़ुर्बान करते आए हैं।
बिश्नोई
लोग शिकार और शिकारियों के बेहद ख़िलाफ़ हैं. हाल के वर्षों में शिकार के मामलों
को लेकर उन्होंने कई अमीर और बड़ी हस्तियों के ख़िलाफ़ मुक़दमे लड़े हैं,
जिनमें कई बॉलीवुड स्टार भी शामिल हैं।
हिंदुओं
में विश्नोई एक ऐसा पंथ/वर्ण है जिसमें देहावसान के बाद पार्थिव देह को गढ़ा खोद के
दफनाया जाता है , वजह बस इतनी सी है कि पार्थिव देह को जलाने में पेड़ काटकर
लकड़ियों का उपयोग होता है .... जो विश्नोई समाज के लिए नागवार है .... क्योंकि ये
पर्यावरण प्रकृति एवं वन्य जीव प्रेमी कौम है ....
मादा हिरण
यदि मर जाये तो उसके शावकों को विश्नोई समाज की महिलाएं अपना स्तनपान करवाती है
.... अपने बच्चे की तरह पालती है ....
इंडियन
वाइल्ड लाइफ एक्ट के अनुसार दुर्लभ वन्य जीवों को पकड़ना/बांधना गैर कानूनी है ....
किंतु विश्नोई समाज के आंगन में हिरणों के बच्चे ऐसे खेलते हैं जैसे कोई परिवार/घर
मे पैदा हुआ बच्चा खेलता है ....
200 वर्ष
पूर्व मारवाड़ (जोधपुर) के महाराजा ने अपने राज्य में पेड़ काटने का आदेश जारी किया
.... शाही हलकारो कामगारों ने आदेश का पालन करते हुए पेड़ काटने शुरू किए .... पेड़
काटते हुए वो एक दिन विश्नोईयों के एक गांव में पहुंचे एवं अमृता विश्नोई के खेत
से खेजड़ी का पेड़ काटने लगे .... अमृता विश्नोई एवं उनकी 2 बेटियां उन पेड़ों से
चिपक गयी .... मारवाड़ के शाही हलकारो ने अमृता विश्नोई एवं उनकी बेटियों के हाथ
काट डाले .... आंदोलन हुआ पेड़ बचाओ .... इस पूरे आंदोलन में 84 गाँवो के 300 से
ज्यादा विश्नोईयों ने अपनी जान दी .... बात जब जोधपुर के महाराजा तक पहुंची तो वो
खुद अमृता विश्नोई के घर आये एवं माफी मांगी .... पेड़ काटने का शाही आदेश वापस
लिया .... खेजड़ी को रेगिस्तान का राजकीय वृक्ष घोषित किया .... विश्नोई समाज खेजड़ी
को कलप वृक्ष मानकर पूजा करता है ....
राजीव
गांधी ने जोधपुर से सटे मथानिया गांव में कहा था किसानों को जब लाल मिर्च से
ज्यादा फायदा है तो हरि मिर्च की खेती क्यों करते हैं ??
.... मथानिया गांव विश्नोईयों का गांव है एवं यहां की लाल मिर्च
विश्व प्रसिद्ध है ....
1998 में
इसी मथानिया गांव में सलमान खान ने फायरिंग से एक काले हिरण (दुर्लभ चिंकारा) की
हत्या कर दी थी .... तुरंत विश्नोई समाज ने सलमान खान का पीछा शुरू किया .... आगे
सलमान खान की जीप पीछे विश्नोई समाज की गाड़ियां बाइक्स .... जोधपुर शहर की सड़कों
पे आधी रात को सनसनी फैल गयी .... सलमान खान ने उम्मेद भवन प्लेस पहुंच के ही दम
लिया .... सलमान की किस्मत अच्छी थी कि वो उस दिन विश्नोईयों के हत्थे नहीं चढा
वरना फैसला ऑन द स्पॉट हो जाता ....
लेकिन वन्य
जीव एवं पेड़ पर्यावरण कौम विश्नोई समाज ने हार नहीं मानी .... सलमान के खिलाफ
मुकदमा दर्ज करवाया .... लोग ज़मीन जायदाद खेत खलिहान मकान के लिए जितनी लम्बी अवधि
तक मुकदमा नहीं लड़ते .... उतनी लम्बी अवधि तक एक निरीह मासूम हिरण के लिए विश्नोई
समाज ने मुकदमा लड़ा ....
विश्नोई
समाज की तरफ से पैरवी अधिवक्ता उम्मेद सिंह भाटी (राजपूत) ने की एवं विश्नोई समाज
को न्याय दिलाया ....
सलमान खान
आज सलाखों के पीछे है .... हो सकता है सोमवार को जमानत भी हो जाये .... पर विश्नोई
समाज सुप्रीम कोर्ट तक।लड़ेगा ....
सलमान खान
के चेहरे पे शिकन साफ देखी जा सकती है क्योंकि गैंगस्टर लॉरेंस विश्नोई ने सलमान
खान को जान से मारने की धमकी दी है .... हालांकि लॉरेंस खुद अभी भरतपुर जेल में
बन्द है किंतु उनके कुख्यात गुर्गे और शूटर जोधपुर सेंट्रल जेल में ही कैद है ....
ये सलमान के लिए चिंता का विषय है ....
मारवाड़
(जोधपुर) और बीकानेर स्टेट में लाइन से सैंकड़ों गांव विश्नोई समाज के बसे हुए हैं
.... सेना पुलिस एवं अन्य उच्च सरकारी पदों पे विश्नोई समाज के युवा काबिज़ है ....
इनका मुख्य कार्य खेती बाड़ी एवं पशुपालन है .... शारीरिक कद काठी से विश्नोई लंबे
मजबूत बाहुबली होते हैं .... इनकी और जाटों की गोत्र सम (समान/एक जैसी) होती है
.... जाटों से ही अलग हो के विश्नोई पंथ या समाज का निर्माण हुआ ऐसी मान्यता है
....
राजस्थान
आने वाले देशी विदेशी सैलानियों को ये ख्याल रखना चाहिए .... हमारी मेहमान-नवाजी
विश्व प्रसिद्ध है किंतु आप हमारे यहां आ कर पर्यावरण एवं वन्य जीवों को नुकसान
नहीं पहुंचा सकते .... और यदि आपने ऐसा किया और गलती से विश्नोई समाज के हत्थे चढ़
गए तो फैसला ऑन द स्पॉट ही होता है ........................... धाँय ....
विश्नोई
समाज के इस संघर्ष को हार्दिक साधुवाद ....
विश्नोई
समाज के इस संघर्ष में सम्पूर्ण राजस्थान उनके साथ है !!!! ....
ज्यादातर
माना जाता है की शेर अकेला ही घूमता है, झुण्ड
में शिकार नहीं करता | ये झूठ है | शेर
अक्सर झुण्ड में रहते हैं | शेरों के झुण्ड को अंग्रेजी में Pride
of Lion कहते हैं | कुछ साल पहले 1996 में एक
फिल्म आई थी The Ghost and the Darkness, माइकल डगलस और ओम
पूरी अभिनित ये फिल्म दो आदमखोर शेरों पर है | बहुत साल पहले
जब एक इंजिनियर अफ्रीका में रेलवे लाइन बिछा रहा होता है तो उनका सामना इन दो
आदमखोरों से हुआ था | Stephen Hopkins की ये फिल्म उन्ही दो
शेरों के मसाई काबिले की मदद से किये गए शिकार पर आधारित है |
मसाई
अफ्रीका के केन्या के इलाके में पाए जाने वाले कबीलाई लोग हैं |
सबसे भयानक योद्धाओं में भी इनकी गिनती होती है, साथ ही सबसे सीधे वनवासियों में भी ! पता नहीं कैसे युद्ध और शिकार में
इतने कुशल लोग इतने भले से भी होते हैं | कई कबीलों की तरह
ये भी बाकि दुनियाँ से कटे होते हैं | 1998 में इस्लामिक
संगठन अल क़ायदा की एक आतंकी वारदात में जब केन्या की अमरीकी एमबेस्सी में बम फोड़ा
तो करीब 200 केन्याई भी मारे गए थे | इसलिए इस्लामिक संगठन
अल क़ायदा का नाम इन्हें पता था |
9/11 के
हमले के समय केन्या के Kimeli Naiyomah, अमेरिका
में पढाई कर रहे थे | कुछ दिन पहले उन्होंने मसाई लोगों को
ट्विन टावर के गिरने और अमरीका में करीब 3000 लोगों के मारे जाने के बारे में
बताया | आबादी से कटे मसाई नहीं जानते थे की बहुमंजिला ईमारत
कैसी होती है | मगर इतने लोगों के मरे जाने की बात और अल
क़ायदा का नाम उन्हें समझ आया | कल BBC की
खबर आई है कि संकट में अमरीकी लोगों की मदद के लिए उन्होंने 14 गायें दान में दी
हैं | गाय को मसाई सबसे बड़ा उपहार भी मानते हैं, इसलिए इस से बड़ी मदद वो कुछ भेज नहीं सकते | उनके कई
रोगों से लड़ने में इनसे मदद मिलती है | अपनी स्थिति के हिसाब
से मसाई लोगों का ये दान साबित कर देता है की उनका दिल कितना बड़ा है |
संकट की
घड़ी में नेपाल की निस्स्वार्थ सेवा के लिए कुछ Indians थोड़े दे दिन पहले भारत सरकार को कोस रहे थे | ख़राब
आर्थिक स्थिति में दूसरों की मदद क्यों करें ? कुछ पढ़े लिखे Indians
ऐसे भी हैं जो भारत में पूज्य मानी जाने वाली गाय को खाने की बात
करते दिख जाते हैं | अब ये लोग मसाई कबीले वालों को क्या
कहेंगे ? पिछड़ा तो कह नहीं पाएंगे !
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