नवगीत
रिश्ते क्यों गैठे-गैठे
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घर है लेकिन समझ न आता
घर के है टुकड़े कितने
सोच रहा बैठे -बैठे
पीपल नीम आम सब काटे
कंक्रीट के महल बनाये
घर हैं कहाँ बगीचे वाले
फ्लैट अधिकतर को भाये
गूलर फूल हुआ अपनापन
साथ रहें ऐंठे -ऐंठे
नहीं बोलते मोर पपीहा
कागा कोयल गौरैया
कोलाहल है शहर गाँव में
डिस्को डीजे है भईया
दंग मृदंग कहानी कविता
आज दिखें रूठे -रूठे
पाले दिल में खिचे हुए है
सम्बन्धो में है अनबन
जिसके मन की नहीं करो तो
वही दिखाता है ठनगन
हाथ माथ पर धरे सोचता
रिश्ते क्यों गैठे-गैठे
घर है लेकिन समझ न आता
घर के हैं टुकड़े कितने
क्या खोया है क्या पाया है
सोच रहा बैठे -बैठे
◆
~जयराम जय कानपुर
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