
दिलीप कुमार पाठक
परकोटे में बैठा पंछी
सोंच रहा था
कुछ यूँ ऐसा,
बरगद है ये अजर अमर
क्या होगा मेरे अण्डों का ?
मगर आया यूँ
एक बवन्डर,
बरगद पे
छा गया कहर.
छोड़ धड़ा को
गिरा धरा पर
चौहतर वर्ष का बूढ़ा बरगद
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