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निजी विद्यालयों का राष्ट्रीय करण देश हित में जरूरी है |

निजी विद्यालयों का राष्ट्रीय करण देश हित में जरूरी है |


डॉ राकेश दत्त मिश्र 

वर्तमान परिवेश को देखते हुए कहना पड़ रहा है कि देश में इस समय देश के लिए वैदिक शिक्षा महत्वपूर्ण है | आज जितने भी निजी विद्यालय है कहने को वो अधिकांश या तो आई सी एस ई से या सी बी एस ई बोर्ड से संबद्ध रखते है । परन्तु वे लोग सरकार के द्वारा बनाए गए नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं ।खासकर मिशनरियों के द्वारा संचालित विद्यालयों का कहना होता है कि हम अपने नियमों पर ही चलते हैं । सरकार के द्वारा बनाये गए नियमों की अवहेलना यह आमतौर पर करते रहते हैं और आज भी कर रहे हैं । यह बहुत ही दुखद स्थिति है । 

आज कोरोना जैसे महामारी में भी सभी निजी विद्यालय सभी बच्चों से पूरी फिस ले रहे हैं ।परन्तु उनके यहाँ कार्यरत शिक्षकों को वेतन देने में आनाकानी कर रहे हैं । जबकि कोरोना लोक डाउन के मामले में सरकार का स्पष्ट दिशा निर्देश है कि सभी स्कूल शिक्षकों को पूरी तनखा देंगे और बच्चों से 3 माह तक फीस नहीं लेंगे । अब सवाल यह उठता है कि इन स्कूलों का यह कहना है कि हम फीस नहीं लेंगे तो देंगे कहां से ? अब यहां प्रश्न पैदा हो जाता है कि यह लोग जो इतनी मोटी रकम फीस के तौर पर लेते हैं आ रहें है आखिर वह जाती कहां है ? उदाहरण के लिए हम मान लेते है :- 

विद्यालय 1000रु से लेकर 3000रु तक प्रति माह प्रत्येक बच्चे से फीस की राशी विभिन्न मदो में लेता हैं । प्रत्येक विद्यालय के प्रत्येक वर्ग में कम से कम ५० से ६० बच्चे रहते हैं । जिसका अर्थ हुआ प्रत्येक वर्ग से ५०००० से लेकर डेढ़ लाख रुपैया प्रत्येक वर्ग से आता है , इसमें से प्रत्येक वर्ग का एक शिक्षक भी माना जाए तो उक्त शिक्षक को १५००० से लेकर २५००० तक वेतन के रूप में दिया जाता हैं । अब हम इसका औसत निकाले तो तीस हजार से लेकर एक लाख पच्चीस हजार रु प्रत्येक माह में स्कुल को एक वर्ग से वचत होती है और प्रत्येक विद्यालय कम से कम १४ वर्ग तो अवश्य संचालित करता है जिसका मतलब अगर प्रत्येक वर्ग से २५००० तो १४ वर्ग से (25000 x 14 = 3,50,000) की वचत लेकिन विद्यालयों में कई सेक्शन भी होते है | अगर प्रत्येक वर्ग में दो सेक्शन भी हुआ तो तो आप अंदाजा लगाये प्रत्येक माह जो लगभग ७,००,००० जो बचाते हो वह पैसा आखिर जाता कहां है ? । इस प्रकार साल का करोड रुपैया एक स्कूल के द्वारा बचाया जाता है । जब यह निजी विद्यालय के लोग इतनी भारी धनराशि इकट्ठा करते हैं तो 3 महीने इनको अपने पास से वेतन देने के लिए इधर उधर क्यों भटकना पड़ रहा है ? भारत सरकार को चाहिए इसकी उच्च स्तरीय जांच करें और जनता को भी अवगत करे कि आखिर मोटी रकम जो फीस के रूप में ली जाती है तो बचा हुआ पैसा जाता कहां है ? 

अभी हाल में एक और नई व्यवस्था लागु की गई है और विद्यालयों ने कहा कि शिक्षकों के द्वारा ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा है । वे लोग अपनी ड्यूटी लोकडाउन के कारण घर में रहते हुए भी कर रहे हैं । हमें तो लगता है कि यह समस्या केवल एक शहर का ऐसा नहीं है यही हालत कमोबेश सम्पूर्ण भारत की है । इसलिए हमारा तो सरकार से मांग है कि जिस प्रकार इन्दिरा जी के समय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था , उसी प्रकार इन सारे प्राइवेट स्कूलों का राष्ट्रीयकरण किया जाए । सरकार को समान शिक्षा व्यवस्था लागू करने के लिए सारे देश में वैदिक शिक्षा बोर्ड का गठन करना चाहिए। साथ ही इस बात की व्यवस्था भी करनी चाहिए कि देश में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था लागू कर बच्चों के चरित्र निर्माण पर ध्यान दिया जाए । जब व्यक्ति का निर्माण हो जाएगा तो राष्ट्र का निर्माण अपने आप हो जाएगा । इसलिए वैदिक शिक्षा बोर्ड की ओर सरकारों को यथाशीघ्र कदम बढ़ाना चाहिए।दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |

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