सनातन
संस्कृति में हम तो आदिकाल से क्वारेंटाईन करते रहें हैं जिसका पालन आज विश्व कर रहा
है
नीरज पाठक
हमारी
सनातन संस्कृति कितनी वैज्ञानिक है? जरा इसे इस बात से समझे , प्राचीन काल से सूतक या छुतिहा को क्यों पालन करना अनिवार्य
माना गया? आज पूरी दुनिया को समझ मे आने लगा है ।भारत की सभ्यता, संस्कृति सबसे पौराणिक एवम् सबसे
विकसित | आदिकाल से हम अपने को क्वारेंटाईन करते आ रहें है हैं जिस बात की समझ अब
विदेशियों को हो रही है |
आज जब सिर
पर घूमता एक वायरस हमारी मौत बनकर बैठ गया तब हम समझें कि हमें क्वारेंटाईन होना
चाहिये,
मतलब हमें ‘‘सूतक’’ से
बचना चाहिये। यह वही ‘सूतक’ है जिसका
भारतीय संस्कृति में आदिकाल से पालन किया जा रहा है। जबकि विदेशी संस्कृति के
नादान लोग हमारे इसी ‘सूतक’ को समझ
नहीं पा रहे थे। वो जानवरों की तरह आपस में चिपकने को उतावले थे ? वो समझ ही नहीं रहे थे कि मृतक के शव में भी दूषित जीवाणु होते हैं ?
हाथ मिलाने से भी जीवाणुओं का आदान-प्रदान होता है ? और जब हम समझाते थे तो वो हमें जाहिल बताने पर उतारु हो जाते । हम शवों को
जलाकर नहाते रहे और वो नहाने से बचते रहे और हमें कहते रहे कि हम गलत हैं और आज
उनको कोरोना का भय यह सब समझा दिया ।
·
हमारे यहॉ बच्चे
का जन्म होता है तो जन्म ‘‘सूतक’’ लागू करके मॉ-बेटे को अलग कमरे में रखते हैं, महिने
भर तक, मतलब क्वारेंटाईन करते हैं।
·
हमारे यहॉ कोई
मृत्यु होने पर परिवार मृत्यु सूतक(तेरहवीं) में रहता है लगभग 12 दिन तक सबसे अलग, मंदिर में पूजा-पाठ भी नहीं। सूतक
के घरों का पानी भी नहीं पिया जाता।
·
हमारे यहॉ शव का
दाह संस्कार करते है, जो लोग अंतिमयात्रा
में जाते हैं उन्हे सबको मृत्यु सूतक लगती है, वह अपने घर
जाने के पहले बाहर ही कही नहाते हैं,
फिर घर में प्रवेश मिलता है।
·
हम मल विसर्जन
करते हैं तो पानी का प्रयोग किया कम से कम
3 बार साबुन से हाथ धोते हैं, तब शुद्ध होते हैं तब
तक क्वारेंटाईन रहते हैं। बल्कि मलविसर्जन के बाद नहाते हैं तब शुद्ध मानते हैं।
इसीलिए हमारे घरों में टॉयलेट/ बाथरूम घरों से दूर रखा जाता था वायव्य कोण में
वास्तु के हिसाब से न कि अटैचेड टॉयलेट। वो attached यूरोपियन toilet में बैठ कर घंटो
अखबार पढ़ते रहे टिशू पेपर को यूज करते रहे।
·
हम जिस व्यक्ति की
मृत्यु होती है उसके उपयोग किये सारे रजाई-गद्दे चादर तक ‘‘सूतक’’ मानकर बाहर फेंक देते हैं। मतलब डिस्ट्रॉय कर
देते हैं।
·
हमने सदैव होम,
हवन किया, समझाया कि इससे वातावरण शुद्ध होता
है, आज विश्व समझ रहा है, हमने वातावरण
शुद्ध करने के लिये घी ,कर्पूर , आम की
लकड़ी, धूप, चंदनऔर अन्य हवन सामग्री
का उपयोग किया।
·
हमने आरती को कपूर
से जोड़ा,
हर दिन कपूर जलाने का महत्व समझाया ताकि घर के जीवाणु मर सकें।
·
हमने वातावरण को शुद्ध करने के
लिये मंदिरों में शंखनाद किये|
·
हमने मंदिरों में
बड़ी-बड़ी घंटियॉ लगाई जिनकी ध्वनि आवर्तन से अनंत सूक्ष्म जीव स्वयं नष्ट हो जाते
हैं।
·
हमने भोजन की
शुद्धता को महत्व दिया और उन्होने मांस मदिरा का भक्षण किया।
·
हमने भोजन करने के
पहले और बाद में भीअच्छी तरह से हाथ धोये, और
उन्होने गंदे हाथ ही चम्मच का सहारा लिया या फिर अगर हाथ से खाया भी तो हाथ धोने
के जगह टिशू पेपर से पोछ लिया।
·
हमने घर में पैर
धोकर अंदर जाने को महत्व दिया ,चप्पल जूता
खोलकर।
·
हम थे जो सुबह से पानी से नहाते
हैं, कभी-कभी हल्दी या नीम डालते थे और वो कई दिन नहाते ही
नहीं
·
हमने मेले लगा
दिये कुंभ और सिंहस्थ के सिर्फ शुद्ध जल से स्नान करने के लिये।
·
हमने अमावस्या पर
नदियों में स्नान किया, शुद्धता के लिये
ताकि कोई भी सूतक हो तो दूर हो जाये।
·
हमने बीमार
व्यक्तियों को नीम से नहलाया ।
·
सदियों पूर्व से
हमने भोजन में हल्दी को अनिवार्य कर दिया, और
वो अब हल्दी पर सर्च रिसर्च कर रहे हैं।
·
हम चन्द्र और
सूर्यग्रहण की सूतक मान रहे हैं, ग्रहण में
भोजन नहीं कर रहे और वो इसे अब मेडिकली
प्रमाणित कर रहे हैं।
·
हम थे जो किसी को
भी छूने से बचते थे, हाथ नहीं लगाते थे
और वो चिपकते रहे।
·
हम थे जिन्होने दूर से हाथ जोडक़र
अभिवादन/प्रणाम को महत्व दिया और वो हाथ से हाथ मिलाते रहे, गले
से गले मिलाते रहे, चुम्मा चाटी संस्कृति को बढ़ावा देते
रहे।
·
हम तो उत्सव भी
मनाते हैं तो मंदिरों में जाकर, सुन्दरकाण्ड
का पाठ करके, धूप-दीप हवन करके वातावरण को शुद्ध करके और वो
रातभर मांसशराब पी-पीकर।
·
हमने होली जलाई
कपूर,
पान का पत्ता, लोंग, गोबर
के उपले और हविष्य सामग्री सब कुछ सिर्फ वातावरण को शुद्ध करने के लिये।
·
हम नववर्ष व
नवरात्री मनाते हैं,
9-9 दिन घरों-घर आहूतियॉ दी जायेंगी, वातावरण
को शुद्ध करने के लिये।
·
हम देवी पूजन के नाम पर घर में
साफ-सफाई करेंगे और घर को जीवाणुओं से क्वरेंटाईन करेंगे।
·
हमनें गोबर को
महत्व दिया, हर जगह लीपा और हजारों जीवाणुओं
को नष्ट करते रहे, वो इससे घृणा करते रहे|
·
हम हैं जो दीपावली
पर घर के कोने-कोने को साफ करते हैं, चूना
पोतकर जीवाणुओं को नष्ट करते हैं, पूरे सलीके से विषाणु
मुक्त घर बनाते हैं और वहीं प्लास्टिक पेंट के चलन में कई सालों तक पुताई भी नहीं होती।
·
अरे हम तो हर दिन
कपड़े भी धोकर पहनते हैं और अन्य देशो में तो एक ही कपड़े सप्ताह भर तक पहन लिये
जाते हैं।
·
हम अतिसूक्ष्म जीव
विज्ञान को समझते हैं आत्मसात करते हैं और वो सिर्फ कोरोना के भय में समझने को
तैयार हुए।
·
हम उन जीवाणुओं को
भी महत्व देते हैं जो हमारे शरीर पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं। आज हमें गर्व होना
चाहिए कि हम ऐसी देव संस्कृति में जन्मे हैं जहां ‘‘सूतक’’ याने क्वारेंटाईन का महत्व है। यह हमारी जीवन
शैली है |
·
हम जाहिल, दकियानूसी,
गंवार नहीं हम सुसंस्कृत, समझदार, अतिविकसित महान संस्कृति को मानने वाले हैं। आज हमें गर्व होना चाहिए कि
पूरा विश्व हमारी संस्कृति को सम्मान से देख रहा है , वो
अभिवादन के लिये हाथ जोड़ रहा है, वो शव जला रहा है, वो सूतक को मानेगा वो हमारा अनुसरण कर रहा है।
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com