आत्मनिर्भर भारत योजना में लघु-कुटीर उद्योगों के लिए व्यापक अवसर
*आर्थिक पैकेज से मिलेगा फूड प्रोसेसिंग उद्योगों को बड़ा अवसर*आर्थिक पैकेज ने खोला कृषि आधारित उद्योगों के लिए अवसर का दरवाजा
-मनोज कुमार सिंह
कोविड-19 संक्रमण और उससे निबटने की चुनौती बड़ा संकट है। कोरोना भारत सहित दुनिया के 195 से अधिक देशों के लिए स्वास्थ्य के साथ आर्थिक आपदा भी साबित हुआ है। प्रायः देशों में चीन पर निर्भरता कम कर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कवायद शुरू है। कोरोना संकट से बचाव के लिए लॉकडाउन से देश में भी गंभीर आर्थिक संकट की स्थिति है। भारत सरकार के हालिया फैसले और एलान बेपटरी हुई भारतीय अर्थव्यवस्था को सुचारू करने की दिशा में चुनौतीपूर्ण लेकिन सशक्त कदम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ पर जोर दिया है। स्वदेशी और स्वावलंबन के बूते अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाकर भारत को दुनिया के सामने मजबूत मॉडल के रूप में खड़ा करने की दिशा में ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ की नींव डाली है। यह न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश है, बल्कि चिर-प्रतीक्षित आवश्यकता है। आज लॉकडाउन से समाज के सबसे निचले तबके पर घातक असर पड़ा है। भारत के समक्ष दोहरी चुनौती है। पहला स्वास्थ्य और दूसरा प्रवासी मजदूरों की बड़ी आबादी के समक्ष रोजी-रोटी का संकट। इस स्थिति से उबरने के लिए भारत सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत योजना’ के तहत 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराना पलायन प्रभावित राज्यों के लिए कठिन चुनौती है। मोदी सरकार के आर्थिक पैकेज में आपदा के वक्त सीधी मदद के साथ भविष्य के ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था का रोडमैप भी है। बेरोजगारी के संकट से जूझ रहे प्रवासी मजदूरों के लिए दो माह के फ्री राशन के साथ मनरेगा के तहत तत्काल काम देने की व्यवस्था बड़ी राहत है। मनरेगा के लिए केंद्र सरकार ने 40 हजार करोड़ की अतिरिक्त राशि की स्वीकृति दी है। बिहार में इसका लाभ प्रवासी मजदूरों को मिलना शुरू है। बिहार सरकार ने युद्धस्तर पर रोजगार सृजन की दिशा में काम शुरू किया है। ‘काम मांगो अभियान’ के तहत पंचायतों में जॉबकार्ड बनाये जा रहे हैं। बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार बताते हैं कि मनरेगा के तहत 24 हजार करोड़ मानव दिवस सृजित करना और मजदूरों को 200 दिन काम उपलब्ध कराने की दिशा में राज्य सरकार काम कर रही है। इसका प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया है। बिहार के प्रवासी मजदूरों की बेरोजगारी के दर्द पर ‘मनरेगा’ मरहम साबित हो रहा है। आज बाजार में रोजगार नहीं है। ऐसी स्थिति में भले ही मनरेगा में बाजार रेट से मजदूरी कम हो, लेकिन अपने गांव में दो जून की रोटी तो मिलने लगी। फिलहाल, रोजगार के लिए महानगरों में गए मजदूरों का गांव की तरफ यू-टर्न को टिकाऊ बनाने में मनरेगा लाइफलाइन साबित हो सकती है। श्रमशक्ति के ठहराव से राज्य की तस्वीर और तकदीर भी संवरेगी। आर्थिक पैकेज सबसे अधिक पलायन प्रभावित राज्यों में शुमार बिहार जैसे राज्यों के लिए उदारीकरण के दौर में एक बार फिर ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था, कृषि क्षेत्र तथा लघु-कुटीर उद्योगों को अवसर के रूप में तलाशने के लिए महत्वपूर्ण है। सरकार ने घरेलू कृषि उत्पादों को बढ़ावा देने पर फोकस किया है। घरेलू कृषि उत्पादों को ब्रांड बनाने और दुनिया भर में पॉपुलर करने के लिए सरकार फेमस फूड प्रोडक्ट्स के लिए क्लस्टर बनाएगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सूक्ष्म खाद्य उपक्रमों को संगठित करने के लिए 10 हजार करोड़ रुपये की योजना की घोषणा की है। क्लस्टर बनाने और नए बाजारों को भारतीय उत्पाद के निर्यात पर इस कोष को खर्च किया जाएगा। बिहार में कृषि आधारित उद्योगों की मजबूत संभावना है। बिहार के पास बड़ी श्रमशक्ति उपलब्ध है, तो बड़ा बाजार भी है। मधुबनी पेंटिंग, खादी, रेशम और हस्तकरघा उद्योग के अलावा फ़ूड प्रोसेसिंग उद्योग के लिए बड़ा मौका है। बिहार में आम, शाही लीची, गन्ना, मगही पान, मक्का, मखाना, शहद और लाल आलू से जुड़े फूड प्रोसेसिंग उद्योग, फिशरी-हैचरी से जुड़े उद्योगों की बड़ी संभावनाएं हैं। बिहार के पास उपजाऊ भूमि, प्रचुर जल संसाधन, कुशल-मेहनती लोग हैं। आत्मनिर्भर भारत योजना का लाभ उठाकर बिहार अपने को फूड प्रोसेसिंग हब के रूप में खड़ा कर सकता है। बिहार के उत्पादों के लिए नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी अंतरराष्ट्रीय बाजार भी उपलब्ध है। हालांकि, बिहार सरकार का मानना है कि बिहार जैसे पिछड़े राज्यों को अपेक्षित लाभ देने के लिए पैकेज में हिस्सेदारी तय करनी चाहिए। लघु, सूक्ष्म एवं मध्यम श्रेणी के उद्यम के लिए बिना गारंटी ऋण के लिए केंद्र ने तीन लाख करोड़ का पैकेज दिया है। तीन लाख करोड़ में बिहार के उद्यमियों के लिए हिस्सेदारी तय नहीं होगी, तो यहां के उद्यमी लाभान्वित नहीं होंगे और राहत पैकेज का उद्देश्य सिद्ध नहीं होगा। । बिहार में उपलब्ध संभावनाओं को ख़ारिज नहीं किया जा सकता। पैकेज के उद्देश्यों के अनुरूप बैंकों को ऋण उपलब्ध करना ही होगा। 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में कृषि और उससे जुड़े सेक्टर पर भी सरकार का महत्वपूर्ण फोकस है। बाजार तक पहुंच बढ़ाने, सप्लाई और कोल्ड चेन को दुरुस्त करने पर जोर दिया गया है। सर्वविदित है कि देश की 130 करोड़ लोगों का पेट भरनेवाले किसान फसलों की वाजिब कीमत नहीं मिलने, भंडारण के अभाव में उत्पादों को अधिक समय तक नहीं रख पाने या सड़ जाने से अधिक बदहाल-लाचार हैं। किसानों को हर समय उत्पादन का वाजिब मूल्य मिल सके, इसके लिए 65 साल पुराने आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव और कृषि उपज के रख-रखाव, परिवहन एवं मार्केटिंग सुविधाओं के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक लाख करोड़ के एग्री इंफ्रा फंड की घोषणा महत्वपूर्ण हैं। इसके आलावा पशुपालन, मछलीपालन, मधुमक्खीपालन, हर्बल खेती को पैकेज में शामिल करना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा। केंद्र सरकार ने ऑपरेशन ग्रीन का दायरा बढ़ाकर टॉप टू टोटल कर दिया है। सप्लाई चेन बाधित होने से किसानों को अपना उत्पाद बाजारों में बेचना मुश्किल हो जाता है। लॉकडाउन में यह बड़ी समस्या बनकर सामने आई। किसानों को इस परेशानी से बचाने के लिए सरकार ने ऑपरेशन ग्रीन का दायरा बढ़ाकर आलू, प्याज और टमाटर के साथ सभी फल सब्जियों तक कर दिया है। इसके तहत 50 फीसदी सब्सिडी माल ढुलाई और 50 फीसदी सब्सिडी कोल्ड स्टोरेज में भंडारण पर दी जाएगी। सरकार का यह कदम किसानों के लिए दूरगामी लाभ का हो सकता है। खासकर बिहार जैसे कृषि आधारित प्रदेश के लिए। हालांकि, यह प्रावधान अभी पायलट प्रोजेक्ट के रूप में छह माह के लिए ही किया गया है। झारखंड के अलग होने के बाद बिहार उद्योगविहीन हो गया। बिहार की 80 फीसद आबादी गांव में बसती है और कृषि पर आश्रित है। लिहाजा कृषि, पशुपालन, लघु-कुटीर उद्योग ही बिहार और बिहार जैसे पिछड़े राज्यों की आर्थिक रीढ़ हो सकते हैं। सिक्के के दो पहलू की तरह हर संकट और चुनौती का दूसरा पहलू अवसर होता है। बिहार जैसे गरीब और पिछड़ा प्रदेश में कोरोना संकट ने चुनौती खड़ी की है, तो उसके पीछे अवसर भी खड़ा है। बिहार हर साल सूखा और बाढ़ की दोहरी मार झेलता रहा है। आज दुश्वारियों ने राह दिखाई है। बिहार की श्रमशक्ति जो महानगरों में पलायन कर गई थी, लौट आई है। कोरोना संकट बड़ा संकट है, लेकिन बिहार के लिए यह अपनी संभावनाओं के शीर्ष तक पहुंचने का मौका भी है। खेती के साथ गांव में परम्परागत कुटीर उद्योग, कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना से बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा, जिससे आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और आर्थिक विषमता काफी हद तक दूर होगी। जरुरत है रिवर्स पलायन से लौटी श्रमशक्ति के ठहराव और उनकी उद्यमशीलता पर भरोसा कर नए सिरे से प्राथमिकताएं तय करने की। तब बदलेगी बिहार की तस्वीर और लिखी जा सकती है विकास और मजबूत अर्थव्यवस्था की नयी इबारत।
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