एक जानवर की जान इंसानों ने ले ली
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-- वेद प्रकाश तिवारी

एक हथिनी गांव में खाने की तलाश में आती है। लेकिन वो वहां रहने वाले लोगों के वहशीपन से अनजान रहती है । वह सभी पर भरोसा करती है। जब वह उनके द्वारा दिया गया अनानास खाती है तो उसकेेेे मुंह में विस्फोट हो जाता है ।
जिसकी वजह से उसका जबड़ा, मुंह और सुंढ का कुछ हिस्सा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाता है ,क्यों कि उस अनानास के भीतर पटाखे रखे होते हैं ।
वह दर्द और जलन से बेचैन हो जाती है । इधर-उधर भागते हुए वह एक नदी के बीचों-बीच पहुंचती है। उसके जल में अपने सुंढ और मुंह के हिस्से को डुबो लेती है और स्थिर खड़ी हो जाती है । फिर कुछ घंटों बाद वहीं खड़े-खड़े दम तोड़ देती है
उस मादा हाथी का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर के मुताबिक उन्हें नहीं पता था कि इसके पेट में एक बच्चा भी है । लेकिन जब उन्होंने इसका पोस्टमार्टम किया तो उन्हें इस मादा हाथी के पेट में एक महीने का भ्रूण भी मिला । नदी में असहाय खड़ी हथिनी की तस्वीरें आपने भी देखी होंगी । वह अपने दर्द को कम करने के लिए पानी में डूबकर खड़ी थी, लेकिन इसकी और इसके अजन्मे बच्चे की मौत ने इंसानियत को शर्म के समुद्र में डूबो दिया है । इस मादा हाथी का पोस्ट मार्टम करने वाले डॉक्टर का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में 250 से ज्यादा हाथियों के पोस्टमार्टम किए हैं, लेकिन यह पहली बार है जब पोस्टमार्टम के दौरान उन्होंने एक हथिनी के पेट में पल रहे भ्रूण को अपने हाथ में उठाया ।
यह सब सुनने और देखने के बाद किसी भी संवेदनशील आदमी के हृदय में जो बेचैनी हो सकती है उसे आप महसूस कर सकते हैं ।
कबीर कहते हैं -
जीव मति मारो बापुरा, सबका एकै प्राण ।
हत्या कबहूँ न छूटिहैं, जो कोटिन सुनो पुराण ।।
जीव घात न कीजिए, बहुरि लैत वह कान ।
तीर्थ गये न बाँचिहो, जो कोटि हीरा देहु दान ।।
ममता करुणा दया के आधार पर वसुधैव कुटुंबकम का महान सिद्धांत हिंदू धर्म की आधारशिला है । अपनी उदारता के कारण ही या धर्म विश्व के समस्त धर्मों का सिरमौरी बना है । धर्म की महत्ता उसके अनुयायियों के आचरण से ही तय की जा सकती है ।
आत्म तत्व की दृष्टि से प्रकृति के सारे जीव सामान हैं। इसमें ईश्वर का अंश विद्यमान है । चींटी से लेकर हाथी तक में उसी जीव आत्मा का प्रकाश है । जीवों के साथ क्रूरता की जाए तो मनुष्य के लिए इससे बड़ा अधर्म और कुछ नहीं हो सकता । आज विकास के इस युग में , मानव जाति अपने विनाश के लिए के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं । कोरोना वैश्विक महामारी इसका जीता जागता उदाहरण है । उसका मुख्य कारण है मनुष्य की हृदयहीनता ।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पास जानवरों पर अनावश्यक दर्द या पीड़ा रोकने के लिए और पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम के लिए पशु क्रूरता निवारण (पीसीए) अधिनियम, 1960 लागू करने का अधिकार है। हाल ही में जुलाई वर्ष 2018 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक अनोखा फैसला था। कोर्ट ने कहा था कि जानवरों को इंसानों की तरह कानूनी अधिकार मिले। यह आदेश पक्षियों और जलीय जीवों के लिए भी लागू हुआ था।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(A) के मुताबिक हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के मुताबिक कोई भी व्यक्ति किसी जानवर को पीटेगा,ठोकर मारेगा,उस पर अत्यधिक सवारी और बोझ लादेगा,उसे यातना देगा कोई ऐसा काम करेगा जिससे उसे अनावश्यक दर्द हो दंडनीय अपराध है।
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम और खाद्य सुरक्षा अधिनियम में इस बात का उल्लेख है कि कोई भी पशु (मुर्गी समेत) सिर्फ बूचड़खाने में ही काटा जाएगा। बीमार और गर्भधारण कर चुके पशु को मारा नहीं जाएगा।
अगर कोई व्यक्ति किसी पशु को आवारा छोड़ कर जाता है तो उसको तीन महीने की सजा हो सकती है।
बंदरों से नुमाइश करवाना या उन्हें कैद में रखना गैरकानूनी है। वाइल्डलाइफ एक्ट के तहत बंदरों को कानूनी सुरक्षा दी गई है।
इन सारे नियमों के बावजूद आदमी अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए, मनोरंजन के लिए और अपने जिह्वा के स्वाद के लिए जानवरों के साथ हर तरह की हदें पार कर चुका है जिसका परिणाम मनुष्य अपनी आंखों से देख रहा है ।
आज ऐसे लोगों को समझने की जरूरत है कि
जीवन का चरमोत्कर्ष सिर्फ इतना है कि हम मनुष्य बन जाएं ।
-- वेद प्रकाश तिवारी
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