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फेकन(आँचलिक कहानी)

फेकन(आँचलिक कहानी)

            --:भारतका एक ब्राह्मण.
           संजय कुमार मिश्र "अणु"

ई फेकन के बाबूजी कबहियों न लगवलन।सब दिन बस दूरे...दूरे।हलांकि उनकर माई से दुगो बेटा आउ बेटी भेल सबके भनवलन लेकिन फेकन के ना।फेकन भी बाप के उपेक्षा के जबाव अपन करनी से देवे लगलन।बस आवारागर्दी से।खुब नाम कमईलन।बाबूजी अजीज आके ओकर विआह ठीक कर देलन।ओह समय ई मैट्रिक में पढत रहलन।इधर विआह भेल उधर मैट्रिक में फेल के रिजल्ट आईल।बाबूजी खुब मरले रहलन उ दिन फेकन के।बना के मरलन से तो मरवे करलन सरकार सब समनवो निकाल के फेक देलन।अब फेकन का करतन।बस सब समान ओसहीं छोड के घर से भागलन।संयोग अइसन रहल की एगो बगल गाँव के लईकी घर से भागइत रहे।फेकन अपन साथे ले लेलन।बहरीये रखे लगलन।
     आजकल तो लोग कमाने दिल्ली, सुरत,बंबई जाते हैं पहिले सब कलकत्ता।दू चार महिना बीतल फेकन के मन भर गेल आउ घरे के ख्याल आबे लगल।लईकिया के ओनही सोनागाछी रख देलन पचस हजार में।आवईत ही कह के जे भगलन से भगलन।इहाँ आके सबके कहलन की हम कारू कमाछा के सिद्ध हंई।धोती कुर्ता पहने लगलन।खुब हल्दी चंदन लिलारे में।माला तो देखबे करईत ही चार गो।ओहु कुर्ता के उपर।पुछला पर कहतन की हमर गुरूजी के ई आदेश हे।
          घरवाली से इनकर दू गो बेटी आउ दू गो बेटा हे।बेटवा सब माई पर गेल लेकिन बेटियन धईल बाप पर।बडका बेटबा तो एक दम गऊ हे।बिल्कुल देवता।न लडे के हाल न फुलावे के गाल।छोटका तो कहीं मत।मंदिर पर ढोल बजावईत-बजावईत नाचनीया-बजनीया संगे बजावे लगल।खुब नाम कमयलक।अब तो उ खुब पईसो कमा हे।सुनली हे की अब गान बजान छोड के सनेमा बनावे लगल हे।
            ए सरकार तनी हमरो बडी काम हे।बेटियन के बाद में कहब।हम तो गलती करईते ही बाकि का करीं करनी तो कहयेबे न करत।सही रही तबो झुठ रही तबो।हम जानही गाँव घर के,परिवार के आउ बेटी बहिन के चर्चा न कयल जा हे।लेकिन कब तक छिपाईब सब गोहार होयला पर।करनी छप्पर पर चढ के गोहराव हे।हम सुनले ही।अब कभी मिलब त कहब।तब तक अपने अराम करीं।
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