71 ट्रेनें अपना रास्ता भटक गईं|
अनिल कुमार राय
एक-दो नहीं। खबर है कि 71 ट्रेनें अपना रास्ता भटक गईं। अर्थात चली थी कहीं के लिए, पहुँच गई कहीं और।
यह घोर आश्चर्य की बात है! भारत में तो ऐसा कभी नहीं ही
हुआ था, दुनिया के इतिहास में
भी ऐसी और इतनी व्यापक अनहोनी की कोई खबर नहीं मिलती है। लेकिन उससे भी बड़ा आश्चर्य
है कि रेलवे के प्रशासनिक महकमे में इस पर कोई हड़कंप नहीं मचा और अब तक किसी को
उत्तरदायी ठहराने और उसपर कार्रवाई की भी खबर नहीं है। अर्थात, पूरे माहौल को देखने से ऐसा लग रहा है कि रेलवे में सब
कुछ सामान्य है।
विभिन्न स्रोतों से इसका कारण समझने की कोशिश की -
क्विंट की एक खबर के मुताबिक रेलवे के एक अधिकारी ने
बताया कि ज्यादा ट्रेनों के चलने के कारण रुट में कंजेशन के कारण ट्रेनों को दूसरे
रुट में डाइवर्ट कर दिया जाता है। ...... यह एक अबोध प्रशासनिक उत्तर है। जिस समय
अन्य ट्रेनें कैंसिल हैं, केवल मालगाड़ी और श्रमिक
स्पेशल ट्रेनें ही चल रही हैं, उस समय रेलवे ट्रैक के
इतना अधिक कंजेशन का सवाल ही नहीं उठता है कि उस ट्रैक पर एक-दो ट्रेन भी नहीं
चलाई जा सकती है। इसलिए यह बच्चों को ठग कर चुप कराने वाले उत्तर की तरह लगता है।
महाराष्ट्र के भुसावल जंक्शन के एक ड्राइवर से जब पूछा
तो उसने बताया कि स्टेशन मास्टर को इस बात की कोई खबर नहीं रहती है कि अमुक नम्बर
की ट्रेन कहाँ जाएगी। उसे कंट्रोल रूम से खबर आती है कि ट्रेन को लाइन क्लियर देना
है और स्टेशन मास्टर लाइन क्लियर देकर ट्रेन को आगे बढ़ा देता है। कंट्रोलर को पता
होता है कि अमुक नम्बर की ट्रेन को कहाँ जाना है, लेकिन
काम के अत्यधिक बोझ के कारण ध्यान न देकर 'आगे बढ़ाओ-आगे बढ़ाओ' का कमांड देता चला जाता है, जिसके कारण ट्रेन कहीं से कहीं पहुँच जाती है। ...... यह
भी बच्चों को बहलाने वाला जवाब ही है। क्योंकि यह साधारण भूल नहीं है और इस
असाधारण भूल के लिए अब तक किसी कंट्रोलर की नौकरी नहीं नपी है।
एक मित्र ने कटिहार जंक्शन के एक अधिकारी के हवाले से
बताया कि शुरुआती स्टेशन पर ही गड़बड़ी होती है। हर गाड़ी को एक नंबर दिया जाता है।
जैसे मान लिया कि 111 नंबर की ट्रेन को मुंबई
से कटिहार तक जाना है। उसके लिए रुट भी तय होता है कि अमुक स्टेशन से होते हुए 111 नंबर की ट्रेन कटिहार जाएगी। लेकिन मुंबई स्टेशन पर
घोषणा होती है कि 111 नंबर की ट्रेन राउरकेला
जाएगी। घोषणा सुनकर ही लोग ट्रेन में चढ़ते हैं। अब वह ट्रेन राउरकेला के लोगों को
लेकर कटिहार पहुँचा देती है। ...... बात इतने पर ही नहीं रुकती है। चार-पाँच दिनों
तक मुंबई में भूखे-प्यासे रहकर जो मजदूर ट्रेन में चढ़े, दो -चार दिन ट्रेन में भूखे-प्यासे रहे, अब कटिहार में भूखे-प्यासे और बेहाल रहने के लिए मजबूर
किये जाते हैं। हंगामा होने पर कटिहार में घोषणा होती है कि राउरकेला जाने वाले
लोगों के लिए भागलपुर से ट्रेन खुलने वाली है। अब वे मजदूर बसों में ठूँसे जाकर
भागलपुर पहुंचते हैं। वहाँ दो-चार दिन भूखे-प्यासे रहते हैं। फिर उन्हें आगे
पहुँचाने की प्रक्रिया शुरू होती है।
जाहिर है कि ऐसा एक सोची-समझी चाल या यों कहें कि साजिश
के तहत हो रहा है।
प्रश्न है कि आखिर मजदूरों को इतने अमानवीय रूप से जलील
क्यों किया जा रहा है?
इतनी जलालत और यातनाएँ झेलते-झेलते उन मजदूरों के भीतर
जो अपने को आदमी समझने का अहं है, जाहिर तौर पर उसकी
हत्या हो जाएगी। यातनाएँ झेलते-झेलते उसके भीतर आदमी होने का अहसास इतना मर जायेगा
कि किसी भी शोषण के विरुद्ध प्रतिरोध की उसकी क्षमता नहीं बचेगी।
बस, भयानक बेरोजगारी और भुखमरी उत्पन्न करके उनकी बारगेनिंग
क्षमता समाप्त कर देने के लिए और अमानवीय यातनाओं की परिस्थितियों में डालकर शोषण
के विरुद्ध उनकी प्रतिरोध क्षमता मार देने के लिए लॉक डाउन और फिर घर पहुँचाने के
नाम पर मजदूरों को जलील किया जा रहा है।
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