विश्व
पर्यावरण दिवस - प्रकृति के साथ हों!
- योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
आज
विश्व पर्यावरण दिवस है। प्रकृति-उत्पन्न हम अपनी व्यस्तताओं के चलते प्रकृति से
नित दूर होते जा रहे हैं! अपने चारोओर हमने संसाधनों का इतना जाल फैला रखा है कि
प्यारी प्रकृति हमारे पास फटकने ही नहीं पाती! नतीजा है कि हमारे शरीर की
रोग-निरोधक क्षमता नित क्षीण होती जा रही है और कोरोना वायरस को भी चरने को खुला
खेत मिल जाता है। गत पाँच माह के अनुभव से हम यह तो सीख ही गये हैं कि कोविड-19
जैसे रोग से भी बचने के लिए हमारे शरीर की रोग-रोधक क्षमता भी बढ़ानी है और इस लिए
हमें प्रकृति की ओर लौटना ही होगा! अपने परि+आवरण=पर्यावरण को जीवन जीने लायक
बनाना ही होगा! इसका सबूत हमें अभी-अभी मिल चुका है कि 25 मार्च,
20 से तालाबंदी अर्थात् Lockdown हो जाने से
जब लोगों के चलते पर्यावरण दूषित नहीं हुआ तो नीला आकाश भी स्पष्ट दिखने लगा,
भू-जल भी साफ आने लगा और गंगा भी धीरे-धीरे नहाने लायक हो जाने लगी।
वायुमंडल भी साफ दिख रह है। हमें भले बाहर निकलने में, मिलने-जुलने
में परहेज करना पड़ा, परिवार के साथ रहने का अभूतपूर्व अवसर
तो मिला! लिखने-पढ़नेवालों को पर्याप्त समय तो मिला!
अन्य
रोगों को भी कुंभकरण की नींद लेनी तो पड़ी!
'कोरोना'
क्या मानवता के लिए प्रकृति का नया संदेश लेकर नहीं आई है कि हमें
बचना है तो प्रकृति के संग-संग चलना होगा और कोरोना के संग भी जीना सीखना होगा!
पर्यावरण-सुधार
आज विश्वभर की आवश्यकता है। पर्यावरण-पुकार नाम से नीचे दी जा रही यह कविता आपके
पास आज का संदेश लेकर आयेगी, ऐसा
मेरा विश्वास है!
स्वस्ति
पन्थामनु चरेम सूर्य चन्द्रमसाविव।
पुनर्ददताघ्नता
जानता सं गमेमहि।।
- (ऋगवेद 5/51/15)
अर्थात्,
'हम
अविनाशी एवं कल्याणप्रद मार्ग पर चलें। जिस प्रकार सूर्य और चन्द्रमा चिरकाल से
निःसंदेह होकर बिना किसी का आश्रय लिए राक्षासादी दुष्टोंसे रहित पन्थ का अनुसरण
कर अभिमत मार्गपर चल रहे हैं, उसी प्रकार हम भी परस्पर
स्नेहके साथ शास्त्रोपदिष्ट मार्ग पर
चलें।'
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