मृत्यु भोज को लेकर अब समाज के जागरूक व प्रबुद्ध लोगों की धारणा बदली है। किसी परिजन की मृत्यु के बाद शोकाकुल परिवार में लोगों के पहुंचने पर निश्चित तौर पर उनका दुख कुछ कम होता है। लेकिन जागरूक समाज में भारी तामझाम के साथ मृत्यु भोज करने जैसी कुप्रथा का अब विरोध सामने आने लगा है। कई सामाजिक कार्यक्रमों के दौरान समाजजनों ने मृत्यु भोज नहीं करने की बात कही है। अब तो समाज को दिशा देने वाले धर्मगुरू, संत, आचार्य भी मृत्युभोज की इस कुप्रथा के खिलाफ आ गए हैं।
संतों, धर्मगुरूओं और आचार्यों का भी मत है कि किसी की मृत्यु के बाद पिंडदान और जितना जरूरी हो उतना ही सीमित कार्यक्रम करना चाहिए। पहले इलाज में धनराशि खर्च कर आर्थिक व मानसिक रूप से टूटे। उसके बाद समाज में अपना रुतवा कायम रखने के लिए कर्ज लेकर तामझाम के साथ मृत्युभोज उचित नहीं है।
1. कन्याओं को भोजन कराना ही पर्याप्त है: विमल योगी
साध्वी ऋतंभरा के वात्सल्य ग्राम सिजई के प्रबंधक ब्रह्मचारी विमल योगी महाराज कहते हैं कि किसी की मृत्यु के बाद लोगों के घर पहुंचने से उनका दुख कम होता है। सनातन काल से मृत्यु भोज की प्रथा है, सनातन धर्म में बिना कारण कुछ नहीं होता, लेकिन वर्तमान मंहगाई के परिवेश में भीड़भाड़ कर लाखों रुपए खर्च करना गलत है। प्रथमत: इलाज में रुपए खर्च करके आदमी आर्थिक रूप से टूट जाता है। इसके बाद समाज को दिखाने भारी तामझाम से मृत्युभोज करना गलत है।
2. मृत्यु के बाद सीमित कार्यक्रम होना चाहिए: पं. शिवदत्त
धर्म गुरू आचार्य पंडित शिवदत्त शास्त्री का कहना है यह किसी शास्त्र में नहीं लिखा कि मृत्यु के बाद हजारों लोगों को भोजन कराया जाए, लाखों रुपए खर्च किया जाएं। मृत्यु के बाद कम से कम, जितना जरूरी हो उतना कार्यक्रम करना चाहिए। इसके लिए केवल 13 सदाचारी, संध्या वंदन करने वाले, गायत्री मंत्र जप करने वाले, पांडित्य को धारण करने वाले पात्रों या कन्याओं को मृतक की आत्मशांति के लिए भोजन करना चाहिए।
3. मृत्युभोज से मृतक के मोक्ष का कोई लेना देना नहीं
धर्मगुरु योगीराज गोविंद महाराज दौरिया सरकार कहते हैं कि सनातन संस्कृति में जितनी भी परम्पराएं हैं, उन सब के पीछे कोई न कोई बड़ा रहस्य छिपा है। मृत्यु भोज पर यदि प्रकाश डाला जाए तो इसका व्यापक रूप सर्वथा अनुचित है, उसे सामान्य और उचित पद्धति से किया जाना चाहिए। समाज को भोजन करने से आत्मा की शांति का कोई लेना देना नहीं। जीते जी सत्कर्म, दान, पुण्य इत्यादि करने से सदगति प्राप्त होती है।
मृत्युभोज परिवार की आर्थिक स्थिति व मनोभाव के अनुरूप हो, भारी खर्च करना उचित नहीं है। इस पर रोक लगना समाज के हित में है।
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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/chhatapur/news/the-religious-leader-the-saint-acharya-also-against-this-malpractices-of-mrityabhoj-said-it-is-wrong-to-spend-lakhs-of-rupees-in-the-present-era-127497671.html
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