भोजपुरी के शेक्सपियर को पुण्यतिथि पर शत शत नमन |
राजेश कुमार सिन्हा
"नौ बरस क जब हम भइनी,
विधा पढ़न-पाठ पर गइनी,
वर्ष एक तक जब मारल-मति,
लिखे ना आइल राम-गति..!!
मन में तनिक ना विद्या भावत,
घुमनी फिरनी गाय चरावत,
गइयाँ चार रहीं घर माहीं,
तिनके नित चरावन जाहीं..
19वीं शताब्दी के अंत की बात है. बिहार के 'सारन' जिले में एक साधारण ‘नाई परिवार’ के घर एक बालक का जन्म हुआ. जब ये बालक बड़ा हुआ, तो उसने अपनी रचनाओं के माध्यम से भोजपुरी साहित्य को पूरे विश्व से परिचय कराया.
जी हां! यह कोई और नहीं बल्कि विलक्षण प्रतिभा के धनी भोजपुरी साहित्य के ‘शेक्सपियर’ कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर थे.भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी. इसी भाषा को आगे चलकर उन्होंने अपनी काव्य और नाटकों की भाषा बनाया.
जानना दिलचस्प हो जाता है कि कैसे पूरे विश्व में भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी की अलख जलाई और खुद भोजपुरी के शेक्सपियर बन गए –
बचपन में गाय चराने के दौरान सीखा नाच-गाना
बिहार के सारन जिले के गंगा और सोन नदी के किनारे बसे 'कुतुबपुर' गांव में एक 'नाई परिवार' के यहां 18 दिसंबर 1887 को 'दल सिंगार ठाकुर' की पत्नी शिवकली देवी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.
नाम रखा गया 'भिखारी ठाकुर'. हालांकि कुछ लोग इन्हें राय बहादुर भी कहा करते थे.समय बीता और भिखारी ठाकुर बड़ा होता गया.परिवार गरीबी का दंश झेल रहा था. इसलिए बड़ा पुत्र होने के नाते भिखारी ठाकुर को बचपन से ही पारिवारिक पेशे में लगना पड़ा.
इनके परिवार का बाल काटने के अलावा छठी, मुंडन, जनेऊ, शादी, श्राद्ध आदि मौकों पर निमंत्रण बांटने का भी काम था. विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में पुरोहितों को सहयोग देना, इनका खानदानी पेशा था. जिसे भिखारी ठाकुर ने भी अपनाया.
भिखारी ठाकुर का पढ़ाई में मन बिल्कुल भी नहीं था. नाच-गाने और लड़कपन की बिंदास जिंदगी इससे ज्यादा सरल थी.
घर में 4 गाय थीं, जिन्हें वह हर रोज चराने के लिए ले जाया करते थे. वहीं, चरवाहों के साथ खेल-कूद में भिखारी ने नाचना-गाना भी सीख लिया था.
यही वो समय था, जब वो अपनी पढ़ाई और परिवार की जिम्मेदारियों से मुक्त दूर कहीं खेत में या उनकी पगडंडियों पर चलते हुए मस्ती कर लिया करते थे. वो इस समय स्वतंत्र थे, और उनके अंदर जो इच्छा थी, गाने की, नाचने की, जिसे वो अब तक मारे-मारे फिरते, वो सब यहां बाहर आ जाता.
और इसके बाद जब उन्होंने लिखना शुरू किया, तो किसी को भी नहीं पता था कि यह 9 साल का नन्हां बालक भोजपुरी बोली के लिए वरदान साबित होगा.
भिखारी ठाकुर अपने बचपन के बारे में लिखते हैं,
"नौ बरस क जब हम भइनी,
विधा पढ़न-पाठ पर गइनी,
वर्ष एक तक जब मारल-मति,
लिखे ना आइल राम-गति..!!
मन में तनिक ना विद्या भावत,
घुमनी फिरनी गाय चरावत,
गइयाँ चार रहीं घर माहीं,
तिनके नित चरावन जाहीं..!!"
"अल्प काले में लिखे लगनी,
एकरा बाद खड़गपुर भगनी,
ललसा रहे जे बहरा जाईं,
छुड़ा चलाके दाम कमाईं,
गइनी मेदिनीपुर के जिला,
ओइजा देखनी रामलीला..!
भिखारी ठाकुर के नाटक व गीत में समकालीन सामाजिक सांस्कृतिक समस्याओं का बहुत ही जीवंत और मार्मिक विवरण मिलता है। लोकरंजन उनका स्वभाव था। गीतात्मकता विषमता विरोध, महिला और दलित कल्याण उनकी रचनाओं की प्रमुख विशेषता है। वह अपने आप में एक सांस्कृतिक व भोजपुरी साहित्य के आंदोलन थे। भिखारी ठाकुर का रंगकर्म भोजपुरी लोकजीवन की विविध पक्षों का साहित्य है और उनका नाट्य भोजपुरी लोकजीवन की सांस्कृतिक पहचान है। समाजसुधारक भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी संस्कृति व साहित्य को एक नई पहचान देन के साथ समाज में फैली कुरीतियों पर जमकर हल्ला बोला। विदेशिया, गबर-घिचोर के साथ-साथ बेटी-वियोग और बेटी बेंचवा जैसे नाटकों के जरिये उन्होंने समाज में एक नई चेतना फैलाई। महाकवि भिखारी केवल भोजपुरी ही नहीं हिन्दी के भी महाकवि एवं नाटककार हैं। बाल-विवाह, मजदूरी के लिए पलायन और नशाखोरी जैसे मामलों पर उन्होने उस समय सवाल खड़े किए जब कोई इसके ओरत सोचना तो दूर बोलने को भी तैयार नही था। इनके नाटकों से ख़ुश होकर अंग्रेजी सरकार ने रायबहादुर की उपाधि दी थी।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com