मौज

मौज

आचार्य जानकीवल्भ शास्त्री

संकलनकर्ता आचार्य राधमोहन मिश्र माधव
सब अपनी-अपनी कहते हैं !
    कोई न किसी की सुनता है , 
    नाहक कोई सिर धुनता  है , 
    दिल बहलाने को चल फिरकर , 
फिर सब अपने में रहते हैं !
    सबके सिर पर है भार प्रचुर 
    सबका हारा बेचारा  उर , 
    अब ऊपर ही ऊपर हँसते , 
भीतर दुर्भर दुख सहते हैं !
     ध्रुव सत्य किसी को न मिला ,
     सबके पथ में है शिला , शिला , 
      ले जाती जिधर बहा धारा ,
सब उसी ओर चुप बहते हैं ।
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