(भैरव लाल दास) 27 फरवरी, 1990 को बिहार विधान सभा का चुनाव हुआ। 1989 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनने का मुख्य कारण राजीव गांधी सरकार पर लगे बोफोर्स घोटाले के आरोप के साथ-साथ पिछड़ों के सत्ताधिकार की शक्तिशाली अंतर्धारा मौजूद थी। नैतिकता, विचारधारा, विकास, जाति निरपेक्षता आदि को तब पिछड़ों की सत्ता प्राप्ति की ललक को भटकाने वाला विषय माना जाने लगा। राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में कोई लाग लपेट नहीं रखकर ऐसे नेतृत्व की वकालत की गई जो पिछड़ों को सत्ता पर कब्जा कराए।
बिहार विधानसभा अध्यक्ष शिवचंद्र झा द्वारा कर्पूरी ठाकुर को नेता विरोधी दल के पद से हटा दया गया था। इसकी भूमिका विधायक श्रीनारायण यादव ने तैयार की थी। कर्पूरी ठाकुर ने इसे नाजायज तरीका करार दिया। जीवन के अंतिम दिनों में ठाकुर को पार्टी के अंदर के महत्वाकांक्षी विधायकों से त्रस्त रहना पड़ा था। वे उन्हें अपने नियंत्रण में रखना चाहते थे। अनेक यादव नेता कर्पूरी ठाकुर को छोड़कर लोकदल (चरण) में चले गए।
लालू प्रसाद भी उनमें से एक थे। पार्टी की बैठक में कर्पूरी ठाकुर ने यहां तक कह दिया कि अगर वह यादव कुल में पैदा हुए होते तो इस तरह अपमानित नहीं किया जाता। कहा जाता है कि इसी गहरे सदमें के कारण बाद में उनकी मृत्यु भी हो गई। कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के बाद विपक्ष की राजनीति की धुरी नहीं रही। इसी वैक्यूम के बीच लालू प्रसाद का पदार्पण हुआ।
अनूपलाल यादव की एक चूक से लालू को मिला मौका
नेता, विरोधी दल के लिए देवीलाल और शरद यादव ने अनूप लाल यादव का नाम प्राय: तय कर लिया था। लेकिन अनूप लाल यादव से एक चूक हो गई। उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा को अपने घर पर भोज दिया। देवीलाल और शरद यादव इससे बिदक गए। दूसरे यादव नेता की खोज में लालू प्रसाद की खोज की गई क्योंकि शरद के साथ लालू संसद में रह चुके थे।
पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष, 1974 आंदोलन के दौरा गठित 24 सदस्यीय संचालन समिति के सदस्य रह चुके लालू प्रसाद 1977 में लोक सभा और 1980 तथा 1985 में विधानसभा के सदस्य रह चुके थे। भीड़ जुटाने के लिए लालू प्रसाद, रामेश्वर सिंह कश्यप रचित अत्यंत लोकप्रिय रेडियाे नाटक लोहा सिंह की संवादशैली अपनाते थे। वे विरोधी दल के नेता बनाए गए। उन्हें ‘कपटी ठाकुर’ (अधिकांश यादव विधायक कर्पूरी ठाकुर को यही कहा करते थे) की कुर्सी मिल गई।
‘लेफ्ट’ और ‘राइट’ की मदद से लालू ने संभाली सीएम की कुर्सी
1990 के चुनाव के बाद विधायक दल के नेता के लिए तीन प्रत्याशी थे। रामसुंदर दास को वीपी सिंह और जार्ज फर्नांडिस का समर्थन प्राप्त था। चंद्रशेखर की पसंद रघुनाथ झा थे। देवीलाल, शरद यादव, नीतीश कुमार, जगदानंद सहित नौजवान विधायक लालू प्रसाद के समर्थन में थे। जार्ज, अजित सिंह, चिमन भाई पटेल, रामपूजन पटेल तथा मुलायम सिंह यादव द्वारा पटना में काफी विचार विमर्श के बाद सर्वानुमति नहीं बन पाई। नेता पद के लिए हुए चुनाव में लालू प्रसाद को 58, रामसुंदर दास को 54, और रघुनाथ झा को 14 मत मिले।
वामदल और भाजपा के सहयोग से लालू प्रसाद की सरकार बन गई। 10 मार्च 1990 को गांधी मैदान में शपथ ग्रहण हुआ। अपने ठेठ और गंवई अंदाज में, किसी भी मुद्दे को घुमा-फिराकर पिछड़ों के सत्ताधिकार के साथ जोड़ देने में उन्होंने महारत हासिल कर लिया और इससे खासी प्रसिद्धि पाई। अपने को चपरासी का भाई, गांव में दही बेचने वाली मरछिया देवी का बेटा, अहीर के घर पैदा होने वाला, चपरासी क्वार्टर में रहने वाला आदि बोल-बोलकर अपने मतदाताओं से सीधा संवाद करने की लालू प्रसाद ने अनोखी शैली विकसित की।
ऊंची जाति का टूटा वर्चस्व, पिछड़ी जाति के 117 विधायक जीते
1990 में ऊंची जाति के 105 और पिछड़ी जाति के 117 विधायक जीतकर आए। पिछड़ी जातियों में 63 यादव , 18 कुर्मी, 16 बनिया और 12 कोइरी चुनाव जीते थे। अनुसूचित जातियों में 17 दुसाध,12 हरिजन, 10 पासी, 2 रजवार, 1 मुसहर, 1 मेहतर, 1 डोम कुल 44 विधायक चुने गए थे।
किसे-कितनी सीटें मिलीं
इसी प्रकार मासस के 2,होरो गुट को 1, आजसू को 1, झामुमो (नि.) को एक सीट मिली। चुनाव में 120 महिला उम्मीदवार थीं , 11 जीतीं। कांग्रेस के टिकट पर 5 मुसलमान जीतकर आए, कुल 20 मुसलमान विधानसभा पहुंचे। कुल 4320 निर्दलीय उम्मीदवारों में 30 जीते। 6439 लोग चुनाव लड़े थे, जिनमें 5892 की जमानत जब्त हो गई। इस चुनाव में 63,511 बूथ थे, जिस पर 62.04% वोट पड़ा।
1990 के चुनाव के बाद बढ़ा मुख्य निर्वाचन आयुक्त का कद
चुनाव सुधार के लिए नियमों में संशोधन का प्रावधान किया गया कि बूथ लूट के कारण चुनाव बाधिक होने पर किसी खास बूथ पर चुनाव स्थगित करने का अधिकार चुनाव आयोग का होगा। बूथ लूट को अपराध घोषित कर दिया गया और इसमें सहभागी पाएं जाने पर सजा निर्धारित की गई। 1985 में दलबदल कानून लागू होने के बाद यह महत्वपूर्ण कदम था। निर्णय लिया गया कि राजनीतिक दलों द्वारा किया गया खर्च, उम्मीदवार के खर्च में शामिल नहीं होगा। मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समकक्ष पद घोषित किया गया।
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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/news/flashback-opposition-politics-no-longer-axed-after-karpoori-lalus-debut-127506999.html
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