मन व्यथित हृदय विचलित
मन व्यथित हृदय विचलित
ये कैसी घड़ी आयी है
अब हमारे राज्य में
कुशासन ले रही अंगड़ाई है
राज्य के मुख्य चिकित्सालय में
नाबालिक की गूँज रही चीत्कार
शीलहरण की विकृति कर
लिपापोती की हो रही अगुआई है
कौन है रक्षित और कौन सुरक्षित
कातिल और लुटेरों की भरपाई है
रक्षक ही भक्षक बन बैठे
अब तो व्यवस्था भी चरमराई है
नींद से जागो आँखे खोलो
पापियों की हो रही कमायी है
अब भी न जागे तो समझ लो
जरासंधी शासन की अंतिम विदाई है!
__आशुतोष कुमार पाठक दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
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