जब पत्रकार सत्ता की भाषा बोलने लगें तो समझों वह पत्रकार नहीं सत्ता का दलाल है I
पत्रकारिता में चाटुकारिता नहीं होनी चाहिए I पत्रकारिता में निष्पक्षता और समीक्षात्मक पारदर्शिता होनी चाहिए I पत्रकारिता मतलब विज्ञापन की भाषा नहीं अपितु समाज की ओर अपनापन की भावनाओं को जोड़कर समाज के कल्याण और उसकी मजबूती के लिए व्यक्ति विशेष द्वारा व्यक्त विचार अभिव्यक्ति होती है I पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा गया है I लोकतंत्र यानि लोकनियुक्त सह लोकनियंत्रित तंत्र और पत्रकारिता जो कि लोकतंत्र में लोक की आवाज का प्रतिबिम्ब होता है I पत्रकार को पूर्वाग्रही होकर अपनी लेखनी नहीं चलानी चाहिए बल्कि पत्रकार को सत्यग्राही होना चाहिए उसे तथ्य और खोजपरक विषय को समाजहीत में रखना चाहिए I
इस सृष्टि का प्रथम पत्रकार ब्रम्हर्षी नारदमुनि को माना जाता है I ब्रम्हर्षी नारदमुनि देवता हों या दानव असुर या फिर मानव हो या ऋषि मुनि अपने ज्ञात सत्य को सबके समक्ष निर्भीकता से रख देते थे I सत्य और तथ्य को समाज के समक्ष निष्पक्ष रूप से परोस देने से समाज के लिए वह सम्माननीय बन जाता है I लेकिन यदि किसी से प्रभावित होकर या किसी मनोभावनाओं व पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर संपूर्ण सत्य के बदले किसी का पक्षकार बन मनगढ़ंत रूप में अपनी भाव-भाषा का प्रकटीकरण करे वो पत्रकार कदापि नहीं बल्कि दलाल निश्चित रूप से होता है I वास्तव में पत्रकारिता धन उगाही करने वाला पेशा नहीं है बल्कि समाज में आईना दिखाने के लिए दर्पण है I पत्रकार को समाज के प्रति समर्पित होकर समाज के लिए हीं अपनी कला को अर्पित करना चाहिए I इसलिए पत्रकारिता जगत में काम करने वाले लोगों को अपनी लेखनी के साथ सहज न्याय की भावना रखनी चाहिए I उसे सत्ता को आईना दिखाने में तनिक भी हिचक संकोच नहीं होनी चाहिए I उसकी लेखनी में अपना पराया में अंतर नहीं दिखना चाहिए बल्कि जो दिखे उसे वहीँ लिखना चाहिए I उसको विपक्ष के सहीं आवाज को विस्तारित करने उसको प्रकट करने में मददगार होना चाहिए जिससे कि समाज के समक्ष वास्तविक सत्यता आये I पत्रकारिता में ईमानदारी और न्यायप्रियता का चरित्र समावेषित होना चाहिए I जिसके कि समाज में उसकी प्रसंशा हो न कि उसकी आलोचना और उसके प्रति तिरस्कार का भाव समाज के मन में जागृत हो I पत्रकारिता की लेखनी की सत्यता के कारण भले व्यक्ति विशेष रूठ जाय यहाँ तक कि विरोधी हो जाय वो सर्वथा उचित है लेकिन उसकी गलत लेखनी से समाज आहत और आक्रोशित तथा उद्वेलित हो जाय ऐसी पत्रकारिता को हम पत्रकारिता नहीं बल्कि चाटुकारिता कहते हैं I
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