प्राणीमात्र के हर मनोकामना को पूर्ण करते एकादश रूद्र :- जितेंद्र कुमार गुप्ता , कमांडेंट सीआरपीएफ
बिहार के मधुबनी जिले के राजनगर प्रखंड अंतर्गत मंगरौनी गांव स्थित एकादश रुद्र की चमत्कारिक स्वरुप शिव भक्तों के लिए आस्था व श्रद्धा का केन्द्र रहा है। जिला मुख्यालय मधुबनी से यह देव स्थल महज तीन किमी दूर है। कहते हैं कि जो शिव भक्त सच्चे मन से एकादश रुद्र का अभिषेक करते हैं उनकी सारी मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है। यही कारण है कि देवाधिदेव महादेव के एक ही शक्तिवेदी पर स्थित ग्यारह स्वरुपों का दर्शन करने के लिए देश ही नहीं बल्कि इंगलैंड, जापान, अमेरिका, चीन, श्रीलंका, नेपाल आदि से भी शिव भक्तों, पर्यटकों का सैलाब उमड़ता रहता है। एक ही शक्ति वेदी पर महादेव, शिव, रुद्र, शंकर, नीललोहित, ईशान, विजय, भीम, देवदेवा, भवोद्भाव व कपालिश्च के तांत्रिक विधि से स्थापित होने से संसार में यह अद्वितीय व दुर्लभ स्वरुप माना जाता है। इतना ही नहीं श्री श्री 1108 एकादश रुद्र महादेव मंदिर परिसर में एक साथ कई अन्य देवी-देवताओं के अलौकिक स्वरुप के भी दर्शन हो जाते हैं। यहाँ सुबह में वैदिक रीति से तो शाम में तांत्रिक विधि से पूजन का विधान है। एकादश रुद्र के महात्मय के कारण शिव भक्तों के लिए यह तीर्थस्थल बना हुआ है। हालांकि यह स्थल निजी क्षेत्र में है, लेकिन इस स्थल के पर्यटन क्षेत्र के रुप में विकसित होने के लिए सरकारी सहयोग की अपेक्षा से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस मंदिर के प्रधान पुजारी व सेवक बाबा आत्माराम जी से फेम इंडिया की हुई विशेष भेंटवार्ता के प्रमुख अंश:
मंदिर की स्थापना व एकादश रुद्र के महात्मय के बारे में बताएं ?
प्रसिद्ध तांत्रिक मुनीश्वर झा ने 1953 में इस मंदिर की स्थापना किया। एक ही शक्ति वेदी पर तांत्रिक विधि से स्थापित महादेव के सभी एकादश स्वरुप ढ़ाई सौ वर्ष पुराने काले ग्रेनाइट पत्थर से बना है। यह स्वरुप अद्वितीय व फलदायक है। सभी शिव-लिंग चमत्कारिक हैं। विभिन्न शिवलिंगों पर विभिन्न तरह की आकृति मई 2000 में ही उभरनी प्रारंभ हो गयी थी। महादेव पर अर्द्धनारीश्वर का रुप प्रकट हुआ जो कामाख्या माई सदृश है। बाद में गणेश की भी आकृति गर्भ में प्रकट हुई। शिव पर श्रीराम के सिंहासन की, रुद्र पर संकट मोचक बजरंगबली की पहाड़ लेकर उड़ने वाली, शंकर पर श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र, बांसुरी व बाजुबंध, नीललोहित पर नाग की, ईशान पर राज-राजेश्वरी, पंचमुखी शिवलिंग व महाकाल की गदा की, भीम पर गदा की, देवदेवा पर सूर्य की किरणें व त्रिशूल तथा भवोद्भाव पर उमा-शंकर की आकृति उभरी है। कांचीपीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती व जगन्नाथ पीठाधीश्वर शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती यहाँ आये तो वे भी एक ही शक्तिवेदी पर महादेव के गयारह अलौकिक स्वरुपों को देखकर मंत्रमुग्ध हो गये। साथ ही कहा कि मंडन मिश्र के बाद आत्माराम व उनकी धर्मपत्नी भूवनेश्वरी देवी ही ऐसे दंपत्ति हैं जो संयुक्त रुप से धर्मकार्य में लीन हैं। पुरातत्वविद् फणीकांत मिश्र व भोपाल से आये पुरातत्वविदों की टीम ने भी एकादश रुद्र के स्वरुपों को दुर्लभ करार दिया है और साथ ही राज-राजेश्वरी की मूर्ति को अद्वितीय बताया। बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल भी यहां आये और बेहद प्रभावित हुए।
यहाँ किस विधि से पूजन किया जाता है ?
यहाँ सुबह में वैदिक व शाम में तांत्रिक विधि से पूजन किया जाता है। प्रत्येक सोमवारी को रूद्राभिषेक व षोडषोपचार पूजन का भी विधान है। साथ ही शाम में भक्तों के महाप्रसाद ग्रहण करने के लिए भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। इससे भक्तों का सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
मंदिर परिसर स्थित अन्य देवी-देवताओं के महात्मय के बारे में बतायें?एकादश रुद्र मंदिर के बगल में ही राधे-श्याम मंदिर है। इस मंदिर में ग्रेनाइट पत्थर व अष्टधातु से बने भगवान विष्णु का दशावतार स्वरुप है। यहां श्रीविद्या यंत्र भी है। इसके दर्शन-पूजन से सरस्वती व लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। साथ ही महाकाली, महासरस्वती व महालक्ष्मी यंत्र भी है। परिसर स्थित अति प्राचीन सरोवर से प्राप्त ब्रह्मा, विष्णु व महेश का चरण पादुका भी है। परिसर स्थित पवित्र सरोवर के तट पर विष्णु पद गया क्षेत्र स्थित है। जो व्यक्ति अपने पितरों का पिंडदान करने गया नहीं जा पाते हैं, उनके पितरों को यहां पिंडदान करने से भी मुक्ति मिल जाती है। इस परिसर में महाकाल मंदिर व अति विशिष्ट पीपल वृक्ष है। इस पीपल वृक्ष के स्पर्श मात्र से टोने-टोटके व पिशाच के प्रभाव से मुक्ति मिल जाता है। इसी जगह आम व महुआ का आलिंगनबद्ध वृक्ष है। विवाह पूर्व वर-वधू की लंबी आयु की कामना के लिए इस वृक्ष का पूजन किया जाता है। इस वृक्ष के पूजन से विवाहोपरांत दांपत्य जीवन सुखमय रहा करता है। एकादश रुद्र मंदिर में मां काली व राज-राजेश्वरी की प्रतिमा भी स्थापित है। विघ्नहर्ता भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित है। उमा-महादेव के आलिंगनबद्ध मुद्रा में अद्वितीय प्रतिमा भी इस मंदिर परिसर में स्थापित है। एकादश रुद्र के पूजन के क्रम में डमरू तांडव का भी यहां विधान है। डमरू तांडव के श्रवण मात्र से भक्तों के शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं।
इस मंदिर परिसर के विकास के लिए आपके स्तर से क्या पहल की गयी है ?
मैं चाहता हूं कि इस मंदिर परिसर को पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किया जाये। इसके लिए वर्षों से प्रयास जारी है। लेकिन अब तक जिला प्रशासन, पर्यटन विभाग व सरकार से कोई सहायता प्राप्त नहीं हुई है। हालांकि जिला प्रशासन ने इस मंदिर परिसर के विकास, सौन्दर्यीकरण व पर्यटन स्थल के रुप में विकसित करने के लिए पर्यटन विभाग, बिहार सरकार के सचिव के पास प्रस्ताव भेज चुकी है, लेकिन अब तक विभाग की कोई भी पहल धरातल पर नहीं दिख रही है। कई राजनेता, मंत्री और मुख्यमंत्री यहां पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामना सिद्धि कर चुके हैं।
मंदिर परिसर में आप किस तरह की सुविधा बहाल करने की सरकार से अपेक्षा रखते हैं ?
एकादश रुद्र के पूजन-दर्शन को लेकर भक्तों की काफी भीड़ जुटती रहती है। खासकर सोमवारी के दिन। सावन मास के सोमवारी में तो भक्तों का सैलाब ही उमड़ पड़ता है। लेकिन भक्तों की सुविधा एवं ठहराव के लिए मंदिर परिसर में कोई व्यवस्था नहीं है। मैं सरकार से अपेक्षा रखता हूं कि वे मंदिर परिसर में धर्मशाल की व्यवस्था करें। मंदिर परिसर का सौन्दर्यीकरण, लाइटिंग की व्यवस्था भी करें।
आप श्रद्धालुभक्तों को क्या संदेश देना चाहेंगे ?
बाबा एकादश रुद्र में आस्था रखें। एकादश रुद्र भगवान आपकी हर मनोकामना पूर्ण करेंगे। दुर्गुणों से बचें। सत्य के मार्ग पर चलें। सद्गुण अपनायें। अहंकारी नहीं परोपकारी बनें। व्यभिचारी नहीं सदाचारी बने। लोभ, मोह, क्रोध, घृणा, ईष्या, काम, द्वेष से बचें। भगवत् कृपा से जो मिला है उसे प्रसाद मानकर संतुष्ट रहें। कारण इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता है।
ऊँ नमः शिवाय! ऊँ एकादश रूद्राय!! जय बाबा एकादश रुद्र!!!
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