सनातन संस्कृति में नागपूजा
भारतीय और सनातन संस्कृति में प्रकृति और जीवों की पूजा विभिन्न कालों से होती आ रही है।मानव सृष्टि और सभ्यता का विकास में संस्कृति का समावेश है! सूर्य, चद्रमा ,वृक्ष, पौधों, गौपूजन की तरह नाग पूजन की परंपरा कायम है।सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने भू लोक में अनेक सृष्टि की तथा मानव की सृष्टि कर मानवीय गुणों का रूप दिया है। दक्ष प्रजापति की पुत्री तथा ऋषि कश्यप की भार्या कद्रु से नागों में शेषनाग, वासुकि ,तक्षक, कर्कोटक ,पद्म , महापद्म, शंख , कालिया, मणिभद्र, रेरावत, धनञ्जय पुत्र और मनसा पुत्री की आविर्भाव हुआ था।शेषनाग पाताल लोक के राजा, भगवान विष्णु के सेवक,और शय्या हुए, वासुकि नाग भगवान शिव के सेवक,और हार, समुद्रमंथन के दौरान मंदार पर्वत को मथानी,त्रिपुरा दाह के समय शिव धनुष का डोर बने थे।पद्मनाग गोमती नदी के तट पर नेमिस क्षेत्र मणिपुर का राजा, शंख नाग वेदों का ज्ञाता, कुलिक(अनंत ) ब्राह्मण कुल एवं ब्रह्मा जी से प्रिय भक्त थे। कश्यप की पत्नी कद्रु की पुत्री मनसा ने जरत्करू पुत्र का जन्म दी ।जरत्करू का विवाह आस्तिक से की है।मनसा शिव की तपस्या से वेद वेदांत के ज्ञाता थी।मनसा देवी के मंदिर हरिद्वार में स्थित है ।मनसा देवी की आराधना श्रावण मास कृष्णपक्ष पंचमी तिथि को बंगाल के गंगा दशहरा और हरिद्वार में बड़े पैमाने पर मनाते है। विश्व मे नागों की प्रजातियां 3000 लगभग है जिसमें अफ्रीका, भारत, अरब, चीन, भूटान, नेपाल आदि देशों में फैले हुए है।नाग पृष्ठवंशी और सरीसृप होते है।वराह पुराण, अग्नि पुराण में नाग का 80 कुलों में 9 नागों की महत्वपूर्ण चर्चा की गई है।दक्षिण भारत में अजंता, मालावार, नागालैंड, नागलोक( भोगवतीपुर ) में नाग वंशों का शासन था।शेषनाग का अवतार त्रेता युग में भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण , द्वापर युग में भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम और कलियुग के प्रारंभिक चरण में पातंजली थे।काशी में गरुड़ के भय से तक्षक नाग कूप में समाहित होकर वेदांत की शिक्षा लिए है।नाग वंश के मणिभद्रक यक्ष रहे और कालिया मथुरा के यमुना नदी में निवास बना कर रहने लगा।द्वापर युग मे भगवान कृष्ण ने कालिया का उद्धार किया था।तक्षक नाग ने अर्जुन के पौत्र अभिमन्यु के पुत्र इन्द्रप्रस्त के राजा परीक्षित को डसने से सातवां दिन मौत हो गई।अपने पिता को डसने पर सरपेष्ठी यज्ञ में तक्षक को भष्म करना चाहा परंतु इंद्र के हस्तक्षेप से तक्षक बच गया। अनंत नाग ने जम्बूकशमीर में अनंतनाग नगर बसाया और नाग वंश का प्रारंभ हुआ था।त्रेता युग में लंका के समीप नागों की माता सुरसा रहती थी ।हनुमान द्वारा माता सीता का पता लगाने के क्रम में समुद्र पार करने के क्रम में नागों की माता सुरसा से मुलाकात कर लंका में प्रवेश किये थे। द्वापर युग में मथुरा में अघासुर नाग को भगवान कृष्ण द्वारा उद्धार किया गया था।नागवंशी वसु ने गिरिबज्र में अपनी राजधानी बनाई और कीकट प्रदेश का विस्तार किया था।नाग संस्कृति का साथ दैत्य और दानव एवं असुर संस्कृति देता था।दक्षिण विंध्य और उत्तर विंध्य तक नागों का फैलाव हुआ।छोटानागपुर दक्षिण
में कीकट प्रदेश जिसे किकटा के नाम से जाना जाता था वहां का राजा गया सुर था।
में कीकट प्रदेश जिसे किकटा के नाम से जाना जाता था वहां का राजा गया सुर था।
छोटानागपुर में नागवंशी की स्थापना सुतिया नागखण्ड का निर्माण किया गया वहीं मगध में 345 ई. पू. शिशुनाग मगध पर साम्राज्य स्थापित किया।बनारस के ब्राह्मण नागवंश पार्वती के गर्भ से 64 ई. में फनीमुकुट का जन्म हुआ था।नागवंशी परंपरा के अनुसार शाकद्वीपीय ब्राह्मण पार्वती का पुत्र नाग के फन के नीचे बैठा था।इस बालक को फनि मुकुट नामकरण किया गया।फनीमुकुट ने 82 ई. से 162 ई. तक नागखण्ड पर साम्राज्य स्थापित की और 66 परगनों की मूलरूप दिया।नागखण्ड का राजा फनीमुकुट ने अपनी राजधानी रामगढ़ में बनाई।रामगढ़, तमाड़, टोरी ,बरवा आदि 46 परगने बने थे और सौर धर्म के अंतर्गत सूर्य की प्रधानता दी गयी।बाद में नागवंशीय चेरो, सबर द्वारा मगध का विस्तार किया गया ।: नाग संस्कृति के देवता भगवान सूर्य है।चैत्र मास में धाता आदित्य के साथ वासुकि नाग , वैशाख मास में अर्यमा आदित्य के साथ कच्छ वीर नाग,जेष्ठ मास के मित्र आदित्य के साथ तक्षक नाग, आषाढ़ मास के वरुण आदित्य के साथ अनंत नाग , श्रावण मास के इंद्र आदित्य के साथ एलापुत्र नाग, भाद्र मास केविवस्वान आदित्य के साथ शंखपाल नाग ,आश्विन मास के पूषा आदित्य के साथ धनंजय नाग ,कार्तिक में विश्वावसु आदित्य के साथ ऐरावत नाग, अगहन में अंश आदित्य के साथ महापद्म नाग, पौष मास में भग आदित्य के साथ कर्कोटक नाग, माघ मास में त्वष्ठा आदित्य के साथ कम्बल नाग, तथा फाल्गुन मास में विष्णु आदित्य के साथ अश्वतर नाग द्वारा वहन करने के अनुरूप रथ को सुसज्जित करते है।नाग को सर्प कहा गया है । पुरातन काल मे झारखंड के दक्षिण क्षेत्रों में नागों के राजा वासुकि ने देवघर के समीप राजधानी बनाया था।वह स्थल बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का रक्षपाल के रूप में वासुकि नाथ के रूप में विराजमान है।सावन मास शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को नाग की उत्पत्ति और सरपेष्टि यज्ञ से वचाव एवं तक्षक नाग को गरुड़ से बनारस में बचाव तथा शिक्षा प्राप्त हुई थी।नागपंचमी में सर्प नाग का दर्शन, पूजन करने से सर्प दोष से मुक्ति तथा विषधर से छुटकारा और मनोकामनाएं पूर्ण होती है ।नाग पंचमी को नाग की आराधना के लिए दूध, धान का लावा सहित गुड़ शक्कर सहित अर्पित करते है।दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
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