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राधा संग हों प्रत्यक्ष यहीं
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सब ओर से प्रभु रक्षा करते
कैसे उनका गुणगान करें
हे सृष्टि नियन्ता जगद्गुरु
मेरी स्तुति अब स्वीकार करें
ग्राह से गज को मुक्त किए
मेरा मन ग्राह से युक्त अभी
द्रौपदी की लाज बचाई प्रभु
मेरी तो सदा बचानी है
प्रह्लाद की भक्ति प्रिय तुम्हे
मेरी तो अभी अधूरी है
राधा नयनन में बसते सदा
अभी मेरे नयन तो सुने हैं
संतों संग धर्म की रक्षा को
दानव-दल का संहार किए
मेरे चंचल चित्त के कारण ही
चरणनन में अबतक नहीं लिए
बाहर से अन्दर जब देखा
अंत: ही तम से स्वच्छ नहीं
प्रभु अंतर्ज्योति जले अब तो
राधा संग हों प्रत्यक्ष यहीं
सब ओर से---------------------
( सीताशरण मिश्र 'शरणागत ')
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