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हवा का रूख (हिंदी ग़ज़ल)

हवा का रूख (हिंदी ग़ज़ल)

बहुतों का दिल दहल रहा है।

देख हवा का रुख बदल रहा है।१।
दिखाने को सलाह पर सलाह है,
लेकिन सच में वह जल रहा है।२।
बाजी पलट दिया अचानक कैसे, 
उसे यही कारामात खल रहा है।३।
तुम मेरा करामात देखते रहो जरा,
देखो उधर तिल-तिल गल रहा है।४।
हम नेस्तनाबूद कर रख देंगें सब,
बेकार में बच्चों सा मचल रहा है।५।
देश दुनियां की पहचान है मुझे,
मैं जानता हूं कहां-कैसे छल रहा है।६।
वही आस्तिन का सांप कहा जाता,
ज़ो हमेशा से आपका बगल रहा है।७।
नहीं बदला "मिश्रअणु" आज भी,
वहीं है आज भी जो कल रहा है।८।
        --:संजय कुमार मिश्र "अणु"
           वलिदाद,अरवल (बिहार)
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