गांधी का भारत और भारत का गांधी

विदेश से लौटने के बाद गांधी ने भारत को बहुत नजदीक से देखा ।वैसे विदेश से भी उन्होंने भारत को देखा था, लेकिन जिस भारत को छोड़कर वह विदेश गए थे उस भारत को पहचाना नहीं था उन्होंने ।वहां जाने के बाद उन्होंने भारत को देखा भी और पहचाना भी। स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका से लौटते समय पत्रकारों को उत्तर देते हुए कहा था कि पहले मैं भारत को सिर्फ मां कहता था,अब मैं भारत की पूजा करूंगा यहां से लौटकर। गांधी की दृष्टि में भी भारत पूज्या मा रही है। सत्याग्रह तो इनकी अपनी मौलिक देन है ।सत्य के लिए आग्रह और सत्य का आग्रह दोनों समाहित है इसमें ।इसीलिए तो आइंस्टाइन ने कहा था कि कल भारत क्या, विश्व में कोई विश्वास नहीं करेगा कि इस मुट्ठी भर मांस के पुतले में गांधी ऐसा विश्व मानव का निवास था।वे युद्ध की विभीषिका को अच्छी तरह जानते थे। इसलिए बराबर युद्ध से दूर रहे और अहिंसा के बल पर ऐसी सत्ता का समापन किया जहां सूरज कभी नहीं डूबता था ।गांधी भारतीयता को समझते थे और पूर्ण रूप से भारतीय थे ।उनका हिंदी पक्ष इतना प्रबल था की स्वतंत्रता के बाद बीबीसी के पत्रकारों ने उनसे एक बाइट के लिए बहुत प्रयास किया। उन्होंने गुस्से में आकर यह भी करवा दिया की कह दो गांधी अंग्रेजी नहीं जानता ।है बहुत छोटी सी बात जो आज के संदर्भ में बहु चर्चा में है। वाइन ,वूमेन एंड मीट गांधी को माता का आदेश था डोंट टच । विदेश में उन्होंने कठिन से कठिन परिस्थिति में भी इस संकल्प को नहीं छोड़ा। उन्होंने संसार के लोगों को दिखा दिया कि माता के इस मंत्र में कितनी शक्ति है जो विश्व को हिला कर रख सकती है। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था ,पहले मैं हिंदू हूं, भारतीय हूं फिर गांधी।उनको समझने के लिए हिंद स्वराज को पढ़ना आवश्यक है। हिंद स्वराज को समझे बिना गांधी को समझना व्यर्थ का प्रयास है।
गांधी ने समाज के लिए सात पापों की चिंता की है इससे बचकर अति उत्तम समाज की स्थापना या संवर्धन किया जा सकता है।
१-श्रम हीन धन
२-सिद्धांत हीन राजनीति
३-नैतिकता हीन व्यापार
४-चरित्रहीन शिक्षण
५-विवेक हीन आनंद
६-मानवता हीन विज्ञान
और ७-त्याग ही पूजा
इन सामाजिक सातों पापों पर अगर अनुशासन के द्वारा मनुष्य अपने आप नियंत्रण कर ले तो फिर समाज में किसी तरह की बुराई नहीं रह जाएगी और छोटा बड़ा का भेदभाव मिट जाएगा।
आज लाल बहादुर शास्त्री जी की भी जयंती है ।लाल बहादुर शास्त्री छोटे-मोटे कद में कठोर निर्णय लेने वाले एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने गांधी के सत्य अहिंसा अस्तेय और अपरिग्रह का पूरा पूरा ख्याल रखा ।उन के बहुत सारे संस्मरण हैं ,लेकिन कुछ संस्मरण अविस्मरणीय हो जाते हैं ।शास्त्री जी विशाल भवन में रहते हुए भी अपने लिए मात्र एक कमरे का ही प्रयोग करते थे ,नपे तुले 2-4 कुर्ते और 2-4 धोतियां। भोजन अति ही सामान्य । बच्चों को ऐसी शिक्षा दी, उसके मानस पटल पर ऐसा मंत्र लिखा कि विजय शास्त्री जब दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकन के लिए गए, काउंटर पर खड़े होकर उन्होंने लिपिक से नामांकन सहायक से अनुरोध किया ।लाइन में लगने के बाद बहुत देर के बाद पहुंचे काउंटर पर ,बाबू ने पूछा, झकझोर दिया -क्या नाम है ?
"विजय शास्त्री "
पिता का क्या नाम है ?
लाल बहादुर शास्त्री
कहां रहते हो?
प्रधानमंत्री निवास में
तुम्हारे पिता वहां क्या करते हैं?
वे प्रधानमंत्री हैं ।
कितनी सरलता से उनके उत्तर निकल रहे थे ।उस बाप के बेटे का उत्तर था जिन्होंने तैरकर वाराणसी के लंका से रामनगर के राजघाट पार किया था गंगा को ,।और तब उस लिपिक सहायक का ध्यान टूटा और कहा कि तुम प्रधानमंत्री के लड़के हो और ऐसे खड़े हो !
विजय शास्त्री जी ने उत्तर दिय- जी !मैं प्रधानमंत्री नहीं हूं। मेरे पिताजी प्रधानमंत्री हैं।
और आज प्रधानमंत्री का लड़का तो होना अलग बात किसी तरह उनके नाम को जानने वाला भी व्यक्ति काउंटर पर खड़ा नहीं हो सकता है और धौंस दिखाकर पूरे संस्थान, शिक्षण संस्थान को बर्बाद कर सकता है। एक बार शास्त्री जी ने अपने बच्चे की उत्तर पुस्तिका देखनी चाही।शिक्षक ने बच्चे के द्वारा पत्र भिजवाया कि मैं सारी उत्तर पुस्तिकाओं को लेकर आपकी सेवा में कल उपस्थित हो रहा हूं ।शास्त्री जी ने तुरंत मना करवाया, अपनी जेब से पैसा देकर एक व्यक्ति को विद्यालय तक भेजा और कहा कि नहीं ,मैं आऊंगा ।मैं आकर वहां अभिभावक की दृष्टि से अपने कर्तव्य और अधिकार से मैं वहां उत्तर पुस्तिका देख लूंगा ।और शास्त्री जी गए। जाकर उत्तर पुस्तिका उन्होंने देखी उसमें उन्होंने सरकारी वाहन का उपयोग नहीं किया ।हमारे देश के ऐसे थे हमारे लाल ,भारत के लाल और बहादुर लाल, लाल बहादुर और शास्त्री ।शस्त्र और शास्त्र दोनों की प्रखर धार के प्रचेता जो एक लघु अवधि में अवश्य अविस्मरणीय मिसाल खड़ा कर दिया । मैं उन्हें उनकी जयंती के अवसर पर नमन करता हूं ,प्रणाम करता हूं और अपनी संवेदना के पुष्प उनके चरणों में अर्पित करता हूं।
मैं संवेदना के पुष्प अर्पित करता हूं बापू को, महात्मा गांधी को ,मोहनदास करमचंद गांधी को, इन्होंने सत्य अहिंसा अस्तेय ब्रह्मचर्य अपरिग्रह का मंत्र सिखाया- अपने आचरण से ।
जय जगत ,जय हिंद ।
जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान।
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