रोके गये किसान
बिना बहस ही कर लिए,थे'बिल' तीनों 'पास'।
लिया नहीं धा आपने, कृषकों का विश्वास।।
तानाशाही से रही,कब विकास की आस।
कर्म आपके दे रहे, हैं हमको आभाष।।
हमको बातें बांटकर,करते रहे विकास।
भला किया उनका सदा,जो हैं तेरे ख़ास।।
जिसनें तुम को वोट दे,सत्ता दी श्रीमान।
उनकी भी सुन लीजिये,देकर थोड़ा ध्यान।।
अपनी ही मत जोतिए,सुनिए सब की बात।
पग-पग पर तुमने दिए,अब-तक हैं आघात।।
मत ज्यादा इतराइए,पाकर कुर्सी आप।
घड़ा फूटता एक दिन,भर जाता जब पाप।।
इतनी जालिम थी नहीं,कोई भी सरकार।
इसको रत्ती भर नहीं, है कृषकों से प्यार।।
लाठी, डण्डे,गोलियां,और कटीले तार।
अपनों से ही आपका,यह कैसा व्यवहार।।
गोले आंसू गैस के, दागे हैं भरपूर।
आह निहत्थो की तेरा,दम्भ करेगी चूर।।
हम पर हैं पाबंदियां,अपनों को दी ढील।
यह तेरे ताबूत की,बन जाएगी कील।।
खालिस्तानी कह किया,कृषकों अपमान।
ढह जायेगा एक दिन,सिर पर चढ़ा गुमान।।
नहीं किसी के बाप की, दिल्ली है श्रीमान।
फिर क्यों 'बार्डर'बना कर,रोके गये किसान।।
धीरे-धीरे चर रहा,हरे खेत की बेल।
सांड निरंकुश हो गया,डाली जाय नकेल।।
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28नवम्बर 2020
~जयराम जय
'पर्णिका',11/1,कृष्ण विहार आवास विकास
कल्याणपुर कानपुर-208017(उ प्र)
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