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नफरतों के दौर

नफरतों के दौर

 नफरतों के दौर को कुछ ऐसे आजमाइये,
फेकें गये पत्थरों को आइना बनाइये। 

कुरान और रामायण तराजू में ना तोलिये,
घर उनके जाइये, मेरे आशियाने भी आइये।

चमन में अमन की राह  चरखे से निकलेगी,
नफरतों के तूफां की आंधी को गांधी बनाइये।

रास्ते में चलने के सलीके का हो यूं असर,
बेदादगर,बेदर्द, सरदर्द को हमदर्द बनाइये।

चमन के महक के राज  कांटो से पूछिये,
राहों में कांटे बिछानेवालों को  यह राज समझाइये।

राजनीति में धर्म के इस्तेमाल को रोकने,
ऐसे नेताओं की घुसपैठ को वोटों से गिराइये।

इश्क में ना जान जाये ना जानेमन को जानें दें, 
सुबह मतला, शाम सेर, रात गजल गुनगुनाइये।

नफरतों के दौर को  कुछ ऐसे आजमाइये,
फेकें गये पत्थरों को आइना बनाइये। 

राजेश लखेरा, जबलपुर।
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