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जिनसे रिश्ता निभाने जमाने लगे

जिनसे रिश्ता निभाने जमाने लगे

राजेश लखेरा, जबलपुर।

जिनसे रिश्ता निभाने जमाने लगे,
आज वो क्यों हमसे कतराने लगे।

उजालों में मिलना जिनसे लाजमीं नहीं,
वो उन्हें रोज अंधेरे में क्यों बुलाने लगे।

जमाने का दस्तूर अब बदलता निकला,
वो मेरे गांव में भी जहर मिलाने लगे।

  मुफलिसी की झोपड़ी से धुंआ निकला,
 खोपड़ी की बुनियाद में इमारत बनाने लगे।

मेहनत की हमने तो क्या गुनाह किया,
मेरे पसीने की भी कीमत लगाने लगे।

रात में मेरी मौत का सौदा करने वाले,
दिन में आ जख्म में मरहम लगाने लगे।

मेरा पसीने से  धूप में रंग काला हुआ।
बेबसी को रौंद, वो मुंह काला कराने लगे।

खुदा के पास मेरी मौत का पैगाम क्यों नहीं जाता,
वो मेरी जवानी की उमर, कबर में लटकाने लगे।
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