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बाल विवाह

बाल विवाह

---- * बिबेका नन्द मिश्र, के द्वारा रचित (भाई बन्धु पत्रिका से साभार प्रकाशित )

जिस प्रकार 'दहेज-प्रथा' व अन्तर्जातीय विवाह अपने समाज के लिए  चिंतनीय विषय हैं उसी प्रकार 'बाल विवाह' भी एक ऐसी सामाजिक कुरीति है जिस पर शाकद्वीपीय समाज के साथ-साथ अन्य समाज के लोगों को भी जागरूक होने की आवश्यकता है। 

'बाल विवाह' एक विश्वव्यापी कुरीति है।दुनिया भर में करीब 65 करोड़ लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी गयी है। विश्व के 40 % बाल विवाह सम्पूर्ण भारत में  होते हैं। इसीलिए  बाल विवाह के मामले में  विश्व में भारत का दूसरा स्थान हैं। भारत में 49% लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आयु से पूर्व ही हो जाता हैं। भारत में, बाल विवाह केरल राज्य, जो सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य है, में अब भी प्रचलन में है। आँकड़ो के अनुसार, बिहार में सबसे अधिक 68% बाल विवाह होते हैं। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार  भारत के कई क्षेत्रों में बाल विवाह की समस्या अब भी बनी हुई  है। यदि इस पर ठोस काम नही हुए तो भारत मे 2030 तक 15 करोड़ बाल विवाह हो चुके होंगे ।

कम उम्र में विवाह किये जाने का लड़के और लड़कियों दोनों पर शारीरिक, बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ता है, शिक्षा प्राप्ति के अवसर कम हो जाते हैं और व्यक्तित्व का विकास सही ढंग से नही हो पाता है। 

गरीबी, लड़कियों की शिक्षा का निम्न स्तर, लड़कियों को आर्थिक बोझ समझना इत्यादि बाल विवाह के कुछ प्रमख कारण हैं ।बालिका शिक्षा की दर में सुधार, किशोरियों के कल्याण के लिये सरकार द्वारा किये गए निवेश व कल्याणकारी कार्यक्रम और इस कुप्रथा के खिलाफ  बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे सार्वजनिक संदेश इत्यादि कुछ प्रयासों से बाल विवाह की दर में कमी देखने को मिली है।बाल विवाह प्रतिषेध से संवंधित कानून 1929 में पारित हुआ जिसमें 1949,1978 व 2006 में संशोधन भी हुए ।

पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत में बाल विवाह की दर में कमी आई है किंतु कुछ राज्यों जैसे-बिहार, बंगाल और राजस्थान में अब भी यह कुप्रथा बदस्तूर जारी है।उक्त राज्यों में करीब 40 फीसदी की दर से बाल विवाह का प्रचलन है।

सिमरिया, चतरा ,झारखंड की निवासी  एवं मगधर्मसंसद की राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष जिनको लोग बाल विवाह के खिलाफ मुहिम के लिए काम करने के कारण सर्वत्र जानते हैं,  ने एक बातचीत में  बताया कि ..."सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ कड़े कानूनों के बावजूद ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह एक प्रमुख समस्या बनी हुई है।" श्रीमती मिश्रा ने यह भी बताया कि ..."खुद उन्होंने बाल विवाह के अब तक लगभग डेढ़ दर्जन मामले उजागर किये हैं एवं 'चाइल्ड लाइन' व प्रशासन के सहयोग से ऐसे विवाहों को रुकवाए हैं ।"
 
बिहार की पुरानी शाकद्वीपीय संस्था सूर्य पूजा परिषद से जुड़े एवं प्रतिष्ठित पत्रिका 'दिव्यररश्मि' के संपादक डॉ राकेश दत्त मिश्र  बताते हैं कि " बाल विवाह भारत मे  दिल्ली सल्तनत के समय अस्तित्व में  आया । लड़कियों को विदेशी शासकों से बलात्कार और अपहरण से बचाने के लिये भारतीय  लोग एक हथियार के रूप में प्रयोग करने लगे । एक दूसरा कारण भी था  । बड़े बुजुर्गों को अपने पौतो को देखने की चाह अधिक होती थी इसलिये वो कम आयु में ही बच्चों की शादी कर देते थे ।"

सामाजिक मुद्दों पर प्रखर एवं ' कल्याण फाउंडेशन ऑफ इंडिया' नामक  संस्था की निर्देशिका बीकानेर की  श्रीमती कामिनी भोजक बताती हैं कि.." विश्व मे भारत एवं भारत मे राजस्थान का नाम बाल विवाह के अपेक्षाकृत अधिक मामलों के लिए लिया जा सकता है। राज्य में अक्षय तृतीया (आखातीज) और पीपल पूर्णिमा  के आसपास पुलिस व प्रशासन बाल विवाह को रोकने के लिए कमर कसता है, लेकिन बाल विवाह करने वाले लोग अब इसे गुपचुप तरीके से अन्य अबूझ सावों पर  जाकर कर रहे हैं। हालांकि मामले उजागर होने व दोषियों पर कार्रवाई होने से ऐसे मामलों में कमी भी देखने को मिल रही है।" 

यद्यपि 'बाल विवाह' समाज के सभी तबकों के लिए चिंतनीय व महत्वपूर्ण विषय है तथापि अपने शाकद्वीपीय समाज को भी इस बारे में जागरूक रहने की आवश्यकता है क्योंकि यह एक ऐसी कुप्रथा है जो कहीं कहीं 'बाल तस्करी' या  'ठगी विवाह'  के रूप में भी दिखती है । 'ठगी विवाह'  के मामलों में देखा गया है कि विवाह कहीं और कर के कहीं और उसे बेच दिया जाता है । यद्यपि इन मामलों में पुलिस व प्रशासन की अपनी भूमिकाएँ होती हैं ,फिर भी हम भी समाज के एक जिम्मेदार अंग होने के नाते अपने आसपास की गतिविधियों पर नज़र रख कर तथा शिक्षा इत्यादि मुद्दों पर जनजागरण में सहयोग कर इस कुप्रथा के ख़िलाफ़ जंग में योगदान दे सकते हैं ।
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