
"सकारात्मक संक्रांति"
मीरा जैन
उम्र के इस पड़ाव में भी कामिनीदेवी के जीवन का हर पहलू , उनका हर कार्य सकारात्मकता से ओतप्रोत था यही वजह थी कि वे इस उम्र में भी स्वस्थ तथा मस्त व समाज को नई दिशा देने हेतु सदैव प्रयासरत रहती.
सक्रांति पर्व पर प्रति वर्ष सुहागिन महिलाओं को बुला उनका हल्दी कुमकुम कर उपहार के साथ ढेर सारा आशीर्वाद भी देती थी किंतु पति को खोने के पश्चात आज उनके जीवन की यह पहली सक्रांति थी मन उदासी के झूले में झूल रहा था उन्हें ज्ञात था आज अकेले ही सक्रांति पर्व मनाना है यही सोच सोच उनकी आंखें बार-बार नाम हुई जा रही थी , पड़ोस में से आती सुहागिन महिलाओं की आवाज उन्हें रह रह कर विचलित कर रही थी लेकिन कुछ देर पश्चात थी उनके मन का अवसाद धुल गया खुशियों मे पंख लग गये उन्हे पहली बार महसूस हुआ कि उनके द्वारा किए गए अतीत के प्रयास आज सार्थक हो गए जब पड़ोस की लता ने आकर उनके पैर छुए और हाथ पकड़ उन्हें अपने साथ यह कहते हुए ले गई -
" चाची जी ! जल्दी से चलिए , सभी आपका इंतजार कर रहे हैं आपके आशीर्वाद के बगैर हमारी संक्रांति अधूरी है।"
मीरा जैनदिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
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