आज सलामत रहे तो
आशुतोष कुमार पाठकआज सलामत रहे तो
कल की सहर देखेंगे
आज पहरे मे रहे तो
कल का पहर देखेंगें।
सासों के चलने के लिए
कदमों का रुकना ज़रूरी है
घरों में बंद रहना दोस्तों
हालात की मजबूरी है।
अब भी न संभले तो
बहुत पछताएंगे
सूखे पत्तों की तरह हालात की
आंधी मे बिखर जाएंगे।
यह जंग मेरी या तेरी नहीं
हम सब की है
इस की जीत या हार भी
हम सब की है।
अपने लिए नहीं
अपनों के लिए जीना है
यह जुदाई का ज़हर
दोस्तो घूंट घूंट पीना है।
आज महफूज़ रहे तो
कल मिल के खिलखिलाएँगे
गले भी मिलेगे और
हाथ भी मिलाएंगे।
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