"अदृश्य राक्षस"
वो निशाने पे सजी मिसाइलें
पहाड़ से टूटे पत्थरों की भाँति
गोदामों में पड़े परमाणु बम !
सब के सब हो गए भोथरे
एक अदृश्य विषाणु के सामने !
परिंदों को पिंजडों
में कैद करने का शौक़ीन आदमजात
फड़फड़ाने लगा अपने ही बनाये दड़बों में
एक शब्द लॉकडाउन बन गया
सभी भाषाओं का इकलौता पर्यायवाची
बुल्गारिया से लेकर होनूलुलू तक
इस एक शब्द ने घेर ली जगह शब्दकोशों में
शनै शनै मद्धिम पड़ने लगेगी
लॉकडाउन शब्द की गूँज
जैसे दूर वादियों में गूंजती
आवाज दम तोड़ने
लगती है धीरे-धीरे !
रहेगा वही
दमकता हुआ
चेहरा दुनिया का !
या फिर धरती भी
हो जायेगी दागी चाँद जैसी !
वो बस अड्डों की भीड़-भाड़
लोकल ट्रेनों की धक्का-मुक्की
वो कारों के चीखते हार्न
ऑटो में खूबसूरत बदन से बदन
रगड़ने का क्षणिक सुख
पार्क में दिन-दिन भर
गुटरगूँ करते प्रेमी जोड़े
गर्ल्स हॉस्टल के चौराहे पर
एक सिगरेट शेयर करते
पांच जवां होंठ !
क्या बन जायेंगे
किसी युवा उपन्यासकार के
उपन्यास का कथानक !
सुनाया करेगा कोई
नया नया सेवानिवृत्त हुआ बाबू
मोहल्ले में नये नये जवान हुए
छोकड़ों को अपनी आप बीती !
अभी मरा नहीं है वो रक्तबीज
जिसने पैदा किया है
दुनिया भर में ईज़ाद एक शब्द लॉकडाउन !
कब कहाँ कोई मानव बम फटेगा
बिखर जायेगा
बारूद बन कर
वो अदृश्य राक्षस!
जिससे बचने के लिए
सुस्ताने लगे थे सारी गाड़ियों के चक्के
चैन की सांस लेने लगी थीं रेल की पटरियाँ
आखिर कब तक रहेगी
ऐसी दुनिया
क्या फिर से रहेगी वही दुनिया
जैसी थी कोरोना के पहले!
बेशक हाँ...
क्यों कि आशा ही जीवन है !!
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(रवि प्रताप सिंह,कोलकाता)
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