नव वर्ष
नया वर्ष है जाग गया अब मदमाती अँगड़ाई में ।
सजी है दुल्हन सी सरसों पीली चादर की छाईं में ,
कर्णकुंडल हैं लटक रहे आम्र-मधूक हरजाई में ।
पंचम सुर कुहू की मुरली
तितलियों की छमाछम,
मदमाती सी नए बरस में वनपाँखी फुदके हरदम।
पीछे है रंगीला फागुन
आगे वासंती सनकी समीर
मधुवन-मदिर हुआ जन-जन प्रेमासक्त और अधीर ।
नव उमंग , नवल संरचना
नए-नए हैं भाव सबल ,
कर लें आवाहन हमसब
नया बरस अब हुआ प्रबल ।।
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