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हनुमज्जन्मोत्सव या हनुमज्जयन्ती ?

हनुमज्जन्मोत्सव या हनुमज्जयन्ती ?


संकलन अश्विनी कुमार तिवारी
सोशल मीडिया पर स्वयंभू धर्माचार्यों और उपदेशकों की बहुलता से भ्रान्तियाँ भी अतिशायिनी हो रही हैं । ऐसा ही एक भ्रान्त उपदेश हनुमान् जी के अवतरण की तिथि के सन्दर्भ में अधिकाधिक व्याप्त ( viral ) हो रहा है । प्रस्तुत है , भ्रमनिवारण का एक प्रयास ।

व्यावहारिक भाषाशास्त्र के अनुसार जयन्ती शब्द के अनेक अर्थों में दुर्गा , पार्वती , कलश के नीचे उगाए हुए जौ , पताका तथा जन्मदिन/स्थापना दिवस प्रधान हैं ।
व्याकरण की दृष्टि में
लटः शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे इस पाणिनीय सूत्र से √जी जये धातु में शतृप्रत्यय करनेपर "जयत्" कृदन्त पद निष्पण्ण होता है और स्त्रीत्व की विवक्षा में उगितश्च सूत्र से ङीप् और शप्श्यनोर्नित्यम् से नुगागम होकर जयन्ती पद प्राप्त होता है जिसका अर्थ होगा - "जीतती हुई (स्त्री) । प्रस्तुत प्रकरण में इसका अर्थ "विजयिनी तिथि" से है ।
”जयं पुण्यं च कुरुते जयन्तीमिति तां विदुः” –स्कन्दमहापुराण, तिथ्यादितत्त्व
यह जयन्ती पद का शाब्दिक अर्थ है । विशेष अर्थ में यह अवतारों तथा महापुरुषों की जन्मतिथि का वाचक है । यथा , परशुराम जयन्ती , बुद्धजयन्ती , स्वामी विवेकानन्द जयन्ती आदि ।


यह जयन्ती पद रोहिणीयुता कृष्णाष्टमी के लिए रूढ भी है ।
अग्निपुराण का वचन है -
कृष्णाष्टम्यां भवेद्यत्र कलैका रोहिणी यदि ।
जयन्ती नाम सा प्रोक्ता उपोष्या सा प्रयत्नतः ।।
इससे जयन्ती व्रत का महत्त्व रोहिणीविरहित जन्माष्टमी से अधिक सिद्ध होता है । यदि रोहिणी का योग न हो तो जन्माष्टमी की संज्ञा जयन्ती नहीं हो सकती–


चन्द्रोदयेSष्टमी पूर्वा न रोहिणी भवेद् यदि ।
तदा जन्माष्टमी सा च न जयन्तीति कथ्यते ॥
–नारदीयसंहिता


इससे सिद्ध हुआ कि जयन्ती और जन्मदिन वस्तुतः एक ही हैं और आधुनिक काल में तो मूर्तामूर्त , जड-चेतन वस्तुओं में अन्तर किए बिना वार्षिक समारोहों को भी जयन्ती कहने की प्रथा चल पडी है - स्वर्णजयन्ती , हीरकजयन्ती आदि समारोह विभिन्न संस्थाओं के भी मनाए जाते हैं किन्तु वहाँ भी उनकी उत्पत्ति की तिथि ही गृहीत है ।
जन्म या जयन्ती को लक्ष्य करके जो हर्षोल्लास या उत्सव मनाया जाता है , उसे जन्मोत्सव कहा जाता है । अत एव जयन्ती एवं जन्मोत्सव में अन्तर करना समुचित नहीं है ।


जैसे कृष्णजन्माष्टमी में रोहिणी नक्षत्र का योग होने से उसकी महत्ता रोहिणीरहित अष्टमी से बढ़ जाती है और उसकी संज्ञा जयन्ती हो जाती है , ठीक वैसे ही कार्तिक मास में कृष्णपक्ष की चतुर्दशी से स्वाती नक्षत्र तथा चैत्र मास में पूर्णिमा से चित्रा नक्षत्र का योग होने से कल्पभेदेन हनुमज्जन्मोत्सव को "हनुमज्जयन्ती” कहने में क्या सन्देह है ??


हनुमान् की जयन्ती कब ?


पूर्णिमाख्ये तिथौ पुण्ये चित्रानक्षत्रसंयुते ॥
चैत्र में हनुमज्जयन्ती मनाने की विशेष परम्परा दक्षिण भारत में प्रचलित है । एकादशरुद्रस्वरूप भगवान् शिव ही हनुमान् जी महाराज के रूप में भगवान् विष्णु की सहायता के लिए चैत्रमास की चित्रा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा को अवतीर्ण हुए हैं –


” यो वै चैकादशो रुद्रो हनुमान् स महाकपिः। अवतीर्ण: सहायार्थं विष्णोरमिततेजस: ॥ "
–स्कन्दमहापुराण,माहेश्वर खण्डान्तर्गत, केदारखण्ड-८/१००


व्रतरत्नाकर और उत्सवसिन्धु के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमज्जन्म कहा गया है -
ऊर्जस्य चासिते पक्षे स्वात्यां भौमे कपीश्वरः ।
मेषलग्ने३ञ्जनीगर्भाच्छिवः प्रादुरभूत् स्वयम् ।।
वाल्मीकीय रामायण (उ का ३५/३१) में लिखा है कि हनुमान् जन्म लेते ही सूर्य को पकडने के लिए उछले और उसी दिन राहु भी सूर्य को निगलना चाहता था । चूँकि सूर्यग्रहण अमावस्या को होता है , अतः वाल्मीकि को भी हनुमज्जयन्ती (कार्तिक) कृष्णचतुर्दशी की ही अभिप्रेत है । यही मान्यता पूर्व , मध्य और उत्तर भारत में प्रचलित है ।
हनुमान् के जनक की ही भाँति उनकी जन्मतिथि की भिन्नता में भी कल्पभेद को ही प्रमुख कारक मानना चाहिए ।


"हनुमज्जयन्ती शब्द हनुमज्जन्मोत्सव की अपेक्षा विलक्षणरहस्यगर्भित है "


आज हनुमज्जयन्ती महोत्सव है। आजकल वाट्सएप्प से ज्ञानवितरण करने वाले एक मूर्खतापूर्ण सन्देश सर्वत्र प्रेषित कर रहे हैं कि हनुमज्यन्ती न कहकर इसे हनुमज्जन्मोत्सव कहना चाहिए ; क्योंकि जयन्ती मृतकों की मनायी जाती है । यह मात्र भ्रान्ति ही है ।


पहले जयन्ती का अर्थ प्रस्तुत किया जाता है --


जयं पुण्यं च कुरुते जयन्तीमिति तां विदुः --स्कन्दमहापुराण,तिथ्यादितत्त्व,


जो जय और पुण्य प्रदान करे उसे जयन्ती कहते हैं । कृष्णजन्माष्टमी से भारत का प्रत्येक प्राणी परिचित है । इसे कृष्णजन्मोत्सव भी कहते हैं । किन्तु जब यही अष्टमी अर्धरात्रि में पहले या बाद में रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो जाती है तब इसकी संज्ञा "कृष्णजयन्ती" हो जाती है --


रोहिणीसहिता कृष्णा मासे च श्रावणेSष्टमी ।


अर्द्धरात्रादधश्चोर्ध्वं कलयापि यदा भवेत् ।


जयन्ती नाम सा प्रोक्ता सर्वपापप्रणाशिनी ।।


और इस जयन्ती व्रत का महत्त्व कृष्णजन्माष्टमी अर्थात् रोहिणीरहित कृष्णजन्माष्टमी से अधिक शास्त्रसिद्ध है । इससे यह सिद्ध हो गया कि जयन्ती जन्मोत्सव ही है । अन्तर इतना है कि योगविशेष में जन्मोत्सव की संज्ञा जयन्ती हो जाती है । यदि रोहिणी का योग न हो तो जन्माष्टमी की संज्ञा जयन्ती नहीं हो सकती--


चन्द्रोदयेSष्टमी पूर्वा न रोहिणी भवेद् यदि ।


तदा जन्माष्टमी सा च न जयन्तीति कथ्यते ॥--नारदीयसंहिता


अयोध्या में श्रीरामानन्द सम्प्रदाय के सन्त कार्तिक मास में स्वाती नक्षत्रयुक्त कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को हनुमान् जी महाराज की जयन्ती मनाते हैं --


"स्वात्यां कुजे शैवतिथौ तु कार्तिके कृष्णेSञ्जनागर्भत एव मेषके ।


श्रीमान् कपीट्प्रादुरभूत् परनतपो व्रतादिना तत्र तदुत्सवं चरेत् ॥


--वैष्णवमताब्जभास्कर


कहीं भी किसी मृत व्यक्ति के मरणोपरान्त उसकी जयन्ती नहीं अपितु पुण्यतिथि मनायी जाती है । भगवान् की लीला का संवरण होता है । मृत्यु या जन्म सामान्य प्राणी का होता है । भगवान् और उनकी नित्य विभूतियाँ अवतरित होती हैं । और उनको मनाने से प्रचुर पुण्य का समुदय होने के साथ ही पापमूलक विध्नों किम्वा नकारात्मक ऊर्जा का संक्षय होता है । इसलिए हनुमज्जयन्ती नाम शास्त्रप्रमाणानुमोदित ही है --


"जयं पुण्यं च कुरुते जयन्तीमिति तां विदुः" --स्कन्दमहापुराण, तिथ्यादितत्त्व


जैसे कृष्णजन्माष्टमी में रोहिणी नक्षत्र का योग होने से उसकी महत्ता मात्र रोहिणीविरहित अष्टमी से बढ़ जाती है । और उसकी संज्ञा जयन्ती हो जाती है । ठीक वैसे ही कार्तिक मास में कृष्णपक्ष की चतुर्दशी से स्वाती नक्षत्र तथा चैत्र मास में पूर्णिमा से चित्रा नक्षत्र का योग होने से कल्पभेदेन हनुमज्जन्मोत्सव की संज्ञा " हनुमज्जयन्ती" होने में क्या सन्देह है ??


एकादशरुद्रस्वरूप भगवान् शिव ही हनुमान् जी महाराज के रूप में भगवान् विष्णु की सहायता के लिए चैत्रमास की चित्रा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा को अवतीर्ण हुए हैं --


" यो वै चैकादशो रुद्रो हनुमान् स महाकपिः।


अवतीर्ण: सहायार्थं विष्णोरमिततेजस: ॥


--स्कन्दमहापुराण,माहेश्वर खण्डान्तर्गत, केदारखण्ड-८/१००


पूर्णिमाख्ये तिथौ पुण्ये चित्रानक्षत्रसंयुते ॥


चैत्र में हनुमज्जयन्ती मनाने की विशेष परम्परा दक्षिण भारत में प्रचलित है ।


इसलिए वाट्सएप्प में कोपी पेस्ट करने वालों गुरुजनों के चरणों में बैठकर कुछ शास्त्र का भी अध्ययन करो । वाट्सएप्प या गूगल से नहीं अपितु किसी गुरु के सान्निध्य से तत्त्वों का निर्णय करो ।✍🏻आचार्यसियारामदासनैयायिक
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