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जाने जिगर

जाने जिगर

       --:भारतका एक ब्राह्मण.
        संजय कुमार मिश्र 'अणु'
मुझे नहीं जाना है बाहर।
हम ठीक हैं घर के अंदर।१‌
      मेरी जिंदगी बड़ी प्यारी है-
      नहीं बनना है इसे बदतर।२।
लोग हाथ धोकर पड़े है-
आज अपने ही बिस्तर।३।
      थोड़ी लापरवाही में अभी-
      मिट जायेगा अस्थि-पंजर।४।
वो भीड़ में खोज रहा है-
करने को काया जर्जर।५।
       निकलने से पहले सोच ले-
       अपने बारे में खूब बेहतर।६‌
बाहर जाना मौत बुलाना है-
एक पल सोच ले जरा ठहर।७।
     किसी पर भरोसा नहीं है-
      हवा में हीं फैल गया जहर।८।
कितने घर बर्बाद हो गए-
उजड़ रहा है बसा शहर।९।
  अब होंठों पर हंसी नहीं है-
  भयभीत हैं आज हर नजर।१०।
अब मिलना जरूरी नहीं है-
जबाव दे रहा है जाने जिगर।११।
           वलिदाद,अरवल (बिहार)
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