
मैं कोरोना पाजिटिव
ये जिंदगी ठहर सी गई थी, एक दिन,
राहें,निगाहें, थक गई थी, एक दिन।
एक रात, जिंदगी को बैचेन कर गई,
सुबहा रौशनी करना भूल गई थी, एक दिन।
तभी मेरे परिवार,अपने सपने में आये थे,
मेरे हाथ में अपना हाथ रखते गये, एक दिन।
ईश्वर,माता-पिता को जी भर याद किया,
उनके आशीर्वाद का स्वाद मिल गया था, एक दिन।
दिन गुजरते रहे, सुबहा-शाम ढलती रही,
रोज मुस्कुराता हूँ, हंसना भूल गया था, एक दिन।
पाजिटिव से नेगेटिव का सफर, बहुत कुछ सिखा गया,
कोरोना योद्धाओं, डाक्टरों को गले लगा लो, एक दिन।
हों गर पाजिटिव तो मन रखें पाजीटिव, राजेश,
कोरोना को देश से हम भगा देगें, एक दिन।
राजेश लखेरा, जबलपुर म.प्र.।
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