उनके ख्वाबों को गढ़े
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
जब मेरी रचना
इस अराजक दौर में
हो गई थी निराश
उस समय में ये-
'दिव्य रश्मि' का मिला प्रकाश
और मैं-
गहन तमिस्रा से निकल बाहर
जब देखने लगा इधर-उधर
खोलकर जब ज्ञान चक्षु
लगने लगा अग-जग सुंदर
लगातार सात सालों से
हो रही है निरंतर प्रकाशित
देश समाज के समस्या को
कर रहा है सम्यक उद्घाटित
कुसुमपुर की ये दिव्य रश्मि'
जन-जन को दे रहा संदेश
निडर,निष्पक्ष, नित्य निरंतर
आलोकित कर रहा पथ 'राकेश'
हमारी शुभकामना है यह-
निरंतर इसी तरह बढ़े
जो गुमनाम थे अंधेरे में
उनके ख्वाबों को गढ़े
वलिदाद,अरवल(बिहार)
दिव्य रश्मि पत्रिका के सातवें प्रकाशन वर्ष की शुभकामना सहित।
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